29 जून 1999 को कारगिल की बर्फीली चोटियों पर एक सैनिक ने देशभक्ति की ऐसी मिसाल कायम की, जो हर हिंदुस्तानी के दिल में जोश भर देती है। कैप्टन विजयंत थापर, 2 राजपूताना राइफल्स का नन्हा शेर, ने अपने सभी साथियों के शहीद होने के बाद भी दुश्मन से अकेले लोहा लिया।
गोलियों की बौछार और बमों की गड़गड़ाहट में उन्होंने न डरते हुए नोल हिल पर तिरंगा फहराया। उनकी वीरता ने भारत को विजय दिलाई और उनकी शहादत ने उन्हें अमर कर दिया। यह कहानी है उस जवान की, जिसने सेना की शान और देश की आन के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया।
कारगिल की रणभूमि: अकेले का युद्ध
1999 का कारगिल युद्ध भारत के लिए चुनौती का समय था। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की ऊँची चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया था। कैप्टन विजयंत थापर को उनकी बटालियन, 2 राजपूताना राइफल्स, के साथ टोलोलिंग और नोल हिल जैसी खतरनाक चोटियों को वापस लेने का जिम्मा सौंपा गया। 12-13 जून को टोलोलिंग की लड़ाई में विजयंत ने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। उनकी रणनीति और साहस ने दुश्मन को पीछे धकेल दिया, जिससे भारत को पहली बड़ी जीत मिली।
लेकिन असली गाथा 29 जून को नोल हिल पर लिखी गई। यह मिशन बेहद मुश्किल था। दुश्मन ऊँची चोटियों पर मज़बूत बंकरों में छिपा था, और गोलियाँ हर तरफ बरस रही थीं। विजयंत की टुकड़ी के जवान एक-एक कर शहीद हो गए। चारों ओर मृत्यु का तांडव था, लेकिन विजयंत का हौसला नहीं डगमगाया। उन्होंने अकेले मोर्चा संभाला। राइफल और ग्रेनेड लेकर वे दुश्मन के बंकरों की ओर बढ़े। हर कदम पर मौत थी, पर उनके दिल में सिर्फ़ एक मकसद था—भारत का तिरंगा लहराना।
वीरता की चमक: नोल हिल पर विजय
नोल हिल की चढ़ाई खून और बारूद से रंगी थी। विजयंत ने दुश्मन की चौकियों पर एक के बाद एक हमला बोला। उनकी चीखें और आदेश रणभूमि में गूँज रहे थे— “आगे बढ़ो, भारत माता की जय!” उनके साहस ने बचे हुए सैनिकों में नई जान फूँकी। आखिरकार, उन्होंने नोल हिल पर कब्ज़ा कर लिया। तिरंगा लहराया, और भारत की जीत पक्की हुई। लेकिन इस विजय की कीमत भारी थी। एक दुश्मन की गोली ने विजयंत को छलनी कर दिया। 29 जून 1999 को, 22 साल की उम्र में, वे वीरगति को प्राप्त हुए।
उनके बलिदान ने कारगिल युद्ध में भारत की जीत की नींव मज़बूत की। नोल हिल की विजय ने दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर किया। विजयंत को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो उनकी वीरता का गवाह है। सोशल मीडिया पर लोग लिखते हैं, “विजयंत थापर ने दिखाया कि एक सच्चा जवान मरकर भी अमर हो जाता है।” उनका पत्र, जो उन्होंने अपने परिवार को लिखा था, आज भी युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाता है।
देशभक्ति की मशाल
कैप्टन विजयंत थापर की कहानी सिर्फ़ एक सैनिक की नहीं, बल्कि देशभक्ति की मशाल है। जब उनके साथी शहीद हो गए, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। अकेले दुश्मन से भिड़ गए, क्योंकि उनके लिए भारत माता से बढ़कर कुछ नहीं था। उनकी वीरता ने सेना के हर जवान को प्रेरित किया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, तिरंगे की शान को कोई नहीं झुका सकता।
कारगिल की चोटियों पर विजयंत ने जो खून बहाया, वह हर भारतीय के लिए जोश का संदेश है। उनकी शहादत बताती है कि सेना का जवान सिर्फ़ हथियारों से नहीं, बल्कि दिल के जुनून से लड़ता है। आज 29 जून को, हम उनके बलिदान को याद करते हैं और संकल्प लेते हैं कि उनकी देशभक्ति की आग हमारे दिलों में हमेशा जलती रहेगी।