31 मई: मालवा की शेरनी अहिल्या देवी होल्कर... जिन्होंने 300 मंदिरों का किया पुर्ननिर्माण, जिसे तोड़ गए थे मज़हबी आक्रांता

31 मई: मालवा की शेरनी अहिल्या देवी होल्कर… जिन्होंने 300 मंदिरों का किया पुर्ननिर्माण, जिसे तोड़ गए थे मज़हबी आक्रांता

31 मई से पूरे देश में एक अनूठा उत्सव शुरू हो रहा है। यह साल लोकमाता देवी अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती के बाद उनके जयंती वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। मालवा की इस महान रानी का जीवन समाज, संस्कृति और राष्ट्र के लिए हमेशा समर्पित रहा। मालवा क्षेत्र की शासक के रूप में देवी अहिल्या बाई ने शिव भक्ति में लीन होकर कुशल रणनीति और कूटनीति का ऐसा उदाहरण पेश किया, जो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

वह अकेली ऐसी महिला शासक थीं, जिन्होंने 28 सालों तक शासन किया, और इस दौरान न तो उनके राज्य में कोई युद्ध हुआ और न ही कभी अकाल पड़ा। कुशल सुशासन, उत्पादन का बेहतरीन प्रबंधन, और न्यायप्रियता के साथ-साथ सेवा और धर्म की धनी अहिल्या बाई ने आधुनिक विचारों को अपनाते हुए भी अपनी सनातन परंपराओं को पल्लवित किया। हिंदुत्व के स्वाभिमान को जगाने के लिए उन्होंने टूटे हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया और 300 मंदिर बनवाए। देश भर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों और चारों धामों के मंदिरों का पुनर्निर्माण कर उन्होंने आध्यात्मिक और सनातनी धर्म का संरक्षण किया। आइए, इस महान रानी की गौरव गाथा को याद करें और उनके कार्यों से प्रेरणा लें।

मालवा की रानी: एक अनूठी शासक

अहिल्या बाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था। उनके पिता मानकोजी शिंदे एक साधारण किसान थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा और संस्कारों से समृद्ध किया। अहिल्या बाई की प्रतिभा को मालवा के होल्कर वंश के सूबेदार मल्हार राव होल्कर ने पहचाना और उन्हें अपने बेटे खांडेराव होल्कर से विवाह के लिए चुना। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। 1754 में खांडेराव की मृत्यु के बाद अहिल्या बाई को सती होने से मल्हार राव ने रोका और उन्हें मालवा की शासक बनाया।

मालवा की रानी बनने के बाद अहिल्या बाई ने अपने शासन को धर्म, न्याय और सेवा के सिद्धांतों पर चलाया। उन्होंने अपने राज्य में शांति और समृद्धि कायम की। उनके शासनकाल में न कोई युद्ध हुआ और न ही अकाल पड़ा। उनकी प्रजा उन्हें “लोकमाता” कहकर पुकारती थी, क्योंकि वह अपनी प्रजा की हर तकलीफ को अपनी समझती थीं। अहिल्या बाई ने अपने शासन में कुशल कूटनीति और रणनीति का परिचय दिया, जिसके चलते मालवा एक समृद्ध और शांतिपूर्ण राज्य बन गया।

हिंदुत्व की रक्षा: 300 मंदिरों का पुनर्निर्माण

18वीं सदी में भारत में मजहबी आक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों और तीर्थों पर भारी कहर बरपाया था। कई मंदिरों को तोड़ा गया, और हिंदू धर्म की आध्यात्मिक धरोहर को नष्ट करने की कोशिश की गई। ऐसे समय में अहिल्या बाई होल्कर ने हिंदुत्व के स्वाभिमान को जगाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने देश भर में 300 मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, जो आक्रांताओं के हाथों नष्ट हो गए थे।

काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, और द्वादश ज्योतिर्लिंगों सहित चारों धामों के मंदिरों का उन्होंने जीर्णोद्धार करवाया। उनके इस कार्य ने हिंदू धर्म को नया जीवन दिया। अहिल्या बाई की शिव भक्ति और सनातन धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा उनके हर कार्य में दिखाई देती थी। उन्होंने न केवल मंदिरों का पुनर्निर्माण किया, बल्कि उनके आसपास धर्मशालाएं, कुंड, और घाट भी बनवाए, ताकि तीर्थयात्री आसानी से दर्शन कर सकें।

कुशल शासन और सेवा भावना

अहिल्या बाई न केवल धर्म रक्षक थीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थीं। उन्होंने अपने राज्य में उत्पादन का बेहतरीन प्रबंधन किया। कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देकर उन्होंने मालवा को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया। उनके शासन में किसानों को सहायता दी गई, और व्यापार को प्रोत्साहन मिला। अहिल्या बाई स्वयं हर दिन दरबार में बैठकर प्रजा की समस्याएं सुनती थीं और तुरंत उनका समाधान करती थीं। उनकी न्यायप्रियता की कहानियां आज भी मालवा में प्रचलित हैं।

सेवा और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा अद्वितीय थी। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी भोग-विलास को महत्व नहीं दिया। वह सादा जीवन जीती थीं और अपना अधिकांश समय प्रजा की सेवा और धर्म कार्यों में लगाती थीं। उनके शासन में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं था। हिंदू, मुस्लिम, और अन्य समुदायों के लोग उनके राज्य में शांति से रहते थे।

आधुनिक विचारधारा और सनातन परंपराओं का संगम

अहिल्या बाई होल्कर एक ऐसी शासक थीं, जिन्होंने आधुनिक विचारधारा को अपनाते हुए भी सनातन परंपराओं को संरक्षित किया। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया और अपने राज्य में कई पाठशालाएं खुलवायीं। साथ ही, उन्होंने सनातन धर्म के मूल्यों को अपने शासन का आधार बनाया। उनके शासन में मंदिरों और तीर्थों का पुनर्निर्माण केवल धार्मिक कार्य नहीं था, बल्कि यह हिंदू समाज को एकजुट करने और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का प्रयास था।

अहिल्या बाई की दूरदर्शिता का एक उदाहरण यह है कि उन्होंने मालवा में कई कुओं, बावड़ियों, और सड़कों का निर्माण करवाया। ये सभी कार्य आज भी उनके कुशल प्रशासन की मिसाल देते हैं। उनकी बनवाई हुई संरचनाएं, जैसे इंदौर का अहिल्या घाट, आज भी उनके योगदान की गवाही देती हैं।

हिल्या बाई से प्रेरणा

आज 31 मई 2025 को, जब हम अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती मना रहे हैं, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और सेवा से बड़ा कोई कार्य नहीं है। अहिल्या बाई ने यह दिखाया कि एक महिला शासक भी अपने शासन को कुशलता से चला सकती है और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। उनके द्वारा पुनर्निर्मित मंदिर आज भी हिंदू धर्म की शान हैं और हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की प्रेरणा देते हैं।

आज के समय में, जब हम आधुनिकता और परंपराओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, अहिल्या बाई का जीवन एक मिसाल है। हमें उनके जैसे कुशल प्रशासन, धर्म के प्रति निष्ठा, और सेवा भाव को अपनाना चाहिए। उनकी जयंती वर्ष हमें उनके कार्यों को याद करने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का अवसर देता है।

एक अमर गाथा

अहिल्या बाई होल्कर मालवा की शेरनी ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म की सच्ची रक्षक थीं। 250 मंदिरों का पुनर्निर्माण करके उन्होंने न केवल सनातन धर्म को बचाया, बल्कि हिंदू समाज को एक नई पहचान दी। उनकी यह गाथा हमें गर्व से भर देती है। आज उनकी जयंती पर हम उनके बलिदान, सेवा, और धर्म निष्ठा को सलाम करते हैं। अहिल्या बाई होल्कर की यह अमर कहानी हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

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