6 अक्टूबर का दिन विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जब अरब मुल्कों ने इजरायल पर एक साथ हमला किया। यह योम किप्पुर युद्ध (Yom Kippur War) था, जो 1973 में शुरू हुआ और मध्य पूर्व की तस्वीर बदल गया। अरब देशों ने सोचा कि वे इजरायल को नेस्तनाबूद कर देंगे, लेकिन यहूदियों ने अपने हौसले और शौर्य से अमर विजयगाथा लिख दी। यह लेख उस ऐतिहासिक संघर्ष, आक्रमण की पृष्ठभूमि, और इजरायल की विजय को बताएगा, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा है।
योम किप्पुर, यहूदियों का सबसे पवित्र दिन, जब वे प्रार्थना और आत्मचिंतन में डूबे थे, उसी दिन 6 अक्टूबर 1973 को मिस्र और सीरिया ने आक्रमण शुरू किया। इनके साथ कई अन्य अरब देशों का समर्थन था, जो इजरायल को कमजोर करने की साजिश थी। लेकिन यहूदियों का जज्बा और उनकी सेना की ताकत ने इस हमले को नाकामयाब कर दिया। यह युद्ध न केवल सैन्य जीत थी, बल्कि हिंदू-यहूदी शौर्य का प्रतीक बना।
आक्रमण की पृष्ठभूमि: अरब गठबंधन का इरादा
योम किप्पुर युद्ध की जड़ें 1967 के छह दिवसीय युद्ध में थीं, जब इजरायल ने मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, और अन्य अरब देशों को करारी हार दी थी। इस हार ने अरब देशों में अपमान और बदले की भावना पैदा की। मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात और सीरिया के हाफिज असद ने इस अपमान को मिटाने की कसम खाई। उन्होंने सोवियत संघ से हथियार और सैन्य सहायता ली, और 6 अक्टूबर 1973 को योम किप्पुर के दिन हमले की योजना बनाई।
इस गठबंधन में मिस्र और सीरिया के अलावा कई अन्य इस्लामिक देश शामिल थे, जो इजरायल को अकेला छोड़कर खत्म करना चाहते थे। मिस्र ने सूएज नहर पर 1000 तोपों और 80,000 सैनिकों के साथ हमला बोला, जबकि सीरिया ने गोलान हाइट्स पर 1400 तोपों और 60,000 सैनिकों से आक्रमण किया। यह एक सुनियोजित हमला था, जो इजरायल की कमजोरियों का फायदा उठाना चाहता था, क्योंकि उनके ज्यादातर सैनिक छुट्टी पर थे। लेकिन अरब देशों ने यह नहीं सोचा कि यहूदियों का हौसला इतना मजबूत होगा।
शुरुआती हमला: हार का खतरा
6 अक्टूबर की सुबह आक्रमण शुरू हुआ, जब इजरायल के सैनिक योम किप्पुर की प्रार्थना में व्यस्त थे। मिस्र ने सूएज नहर पार कर सिनाई प्रायद्वीप में घुसपैठ की, और उनकी सेना ने इजरायली रक्षा रेखा को तोड़ दिया। उसी समय, सीरिया ने गोलान हाइट्स पर हमला कर इजरायली सेना को पीछे धकेल दिया। पहले 24 घंटों में इजरायल को 500 से अधिक सैनिकों और 100 टैंकों का नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री गोल्डा मीर ने आपातकाल घोषित किया, और देश में दहशत फैल गई।
यहूदियों ने शुरुआत में हार का खतरा देखा। उनकी सेना तैयार नहीं थी, और अरब देशों की संख्या में भारी बढ़त थी। लेकिन इस संकट में भी उनका हौसला नहीं टूटा। अमेरिका ने सहायता का वादा किया, लेकिन वह मदद पहुंचने में समय लगने वाला था। यहूदियों ने अपने दम पर लड़ने का फैसला किया, और यही हिम्मत उनके लिए विजय का आधार बनी।
शौर्य का जवाब: अमर विजयगाथा
तीसरे दिन से इजरायल ने पलटवार शुरू किया, जो उनकी शौर्य की कहानी बन गया। जनरल एरियल शैरॉन ने मिस्र की तीसरी सेना को घेर लिया और सूएज नहर पार कर मिस्र की ओर बढ़ा। गोलान हाइट्स पर इजरायली सेना ने सीरिया को पीछे धकेला और उनके कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लिया। अमेरिका ने आपातकालीन हथियार भेजे, जिसमें 800 टैंक और 1000 विमान शामिल थे।
इजरायली सेना ने रणनीति और हौसले से अरब गठबंधन को चुनौती दी। 14 अक्टूबर को मिस्र की सेना को भारी नुकसान हुआ, और 22 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र ने युद्धविराम की मांग की। लेकिन इजरायल ने 24-25 अक्टूबर तक लड़ाई जारी रखी और मिस्र की सेना को काहिरा के पास घेर लिया। यह जीत न केवल सैन्य थी, बल्कि यहूदियों की अमर विजयगाथा बनी, जो उनके शौर्य का प्रतीक है।
युद्ध का प्रभाव: वैश्विक बदलाव
योम किप्पुर युद्ध ने मध्य पूर्व की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। मिस्र ने इजरायल से शांति समझौता किया, जो 1979 में कैंप डेविड समझौते के रूप में सामने आया। इजरायल ने गोलान हाइट्स पर अपना कब्जा बनाए रखा, जो आज भी उनकी रक्षा का हिस्सा है। इस युद्ध ने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध को और तेज कर दिया, लेकिन इजरायल ने अपनी ताकत साबित की।
यह युद्ध हिंदू-यहूदी शौर्य का प्रतीक बन गया। भारत में भी इस जीत को देशभक्तों ने सराहा, क्योंकि यह छोटे देश की बड़ी जीत थी। अरब देशों का गठबंधन विफल हुआ, और इजरायल की विजय ने दुनिया को दिखाया कि हिम्मत और एकता से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है।
विरासत और प्रेरणा: अमर गाथा का संदेश
6 अक्टूबर की यह विजयगाथा आज भी जीवित है। इजरायल में योम किप्पुर युद्ध के स्मारक बने हैं, जहाँ लोग इस शौर्य को याद करते हैं। स्कूलों में बच्चों को इस युद्ध की कहानियाँ सिखाई जाती हैं, जो युवाओं में हौसला जगाती हैं। यहूदियों के लिए यह दिन न केवल जीत का, बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रतीक है।
इस विरासत में शौर्य और हिम्मत है। अरब मुल्कों के एक साथ हमले के बावजूद इजरायल ने दिखाया कि सच्चा योद्धा वही है जो संकट में भी डटकर लड़ता है। यह अमर विजयगाथा हिंदू-यहूदी गौरव का हिस्सा बनी, जो हर देशभक्त को प्रेरित करती है। भारत में भी यह कहानी हिंदू शौर्य के साथ जोड़ी जाती है, जो हमें एकता और बलिदान का पाठ सिखाती है।
विजय का गर्व
6 अक्टूबर को अरब मुल्कों ने इजरायल पर एक साथ हमला किया, लेकिन यहूदियों ने अपनी हिम्मत और शौर्य से अमर विजयगाथा लिख दी। यह जीत न केवल इजरायल का गौरव है, बल्कि हर उस देशभक्त के लिए प्रेरणा है जो अपनी मिट्टी की रक्षा के लिए लड़ता है।