9 अगस्त: काकोरी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लूटा खजाना वापस लिया, पर वामपंथियों ने इसे ‘काकोरी क्रांति’ नहीं बल्कि ‘काकोरी कांड’ कहा

आज, 9 अगस्त 2025 को, हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐतिहासिक घटना, काकोरी कांड की 100वीं वर्षगांठ को याद करते हैं। 9 अगस्त 1925 को, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के वीर क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर अंग्रेजों का खजाना लूटकर ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया।

राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, और अन्य ने इस साहसिक कदम से स्वतंत्रता की अलख जगाई। वामपंथी विचारधारा ने इसे ‘काकोरी क्रांति’ के बजाय ‘काकोरी कांड’ कहकर इस वीरता को बदनाम करने का प्रयास किया। यह लेख काकोरी के वीरों की शहादत, उनकी योजना, और वामपंथी आलोचना के खिलाफ सच्चाई को उजागर करता है, जो हर देशभक्त के लिए गर्व का विषय है।

काकोरी कांड का उदय: स्वतंत्रता का संकल्प

काकोरी कांड की जड़ें 1922 के चौरी-चौरा कांड से जुड़ी हैं, जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। इस निर्णय से क्रांतिकारी युवा निराश हो गए, जिनका मानना था कि अहिंसा से आजादी संभव नहीं। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के नेतृत्व में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, और अन्य ने हथियार खरीदने के लिए धन जुटाने का फैसला किया।

8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल के घर हुई बैठक में इस योजना को अंतिम रूप दिया गया। अगले दिन, 9 अगस्त 1925 को, 10 क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ जा रही 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन पर हमला बोला। ठाकुर रोशन सिंह ने इस योजना में अपनी रणनीति और साहस से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कदम न केवल धन के लिए था, बल्कि अंग्रेजों को यह संदेश देने के लिए था कि हिंदुस्तानी अब गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे।

शौर्य की गाथा: खजाना लूट का पराक्रम

9 अगस्त 1925 की सुबह, काकोरी रेलवे स्टेशन से कुछ दूर, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने ट्रेन की चेन खींचकर उसे रोक दिया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, और अन्य क्रांतिकारी तुरंत कार्रवाई में जुट गए। उनके पास जर्मन माउजर पिस्तौल थीं, जो उनकी शक्ति और रणनीति का प्रतीक थीं। गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिराया गया। अशफाक उल्ला खान ने हथौड़े से बक्सा तोड़ा और चांदी के सिक्कों व नोटों से भरे थैले चादरों में बांधकर जंगल की ओर ले जाया गया।

ठाकुर रोशन सिंह ने इस दौरान ट्रेन के आसपास की निगरानी कर विरोधियों को दूर रखा, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने अपनी तेजस्वी रणनीति से अंग्रेजी गार्ड को नियंत्रित किया। पूरी घटना 45 मिनट में संपन्न हुई, जिसमें लगभग 4,679 रुपये, 1 आना, और 6 पाई लूटे गए। दुर्भाग्यवश, एक यात्री की गोली लगने से मृत्यु हो गई, जिसने इस घटना को जटिल बना दिया। फिर भी, यह कदम हिंदुस्तानी शौर्य का प्रतीक बना, जो अंग्रेजों की नाक में दम कर गया।

चंद्रशेखर आजाद: काकोरी कांड में योगदान

चंद्रशेखर आजाद ने काकोरी कांड में अपनी रणनीति और साहस से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 9 अगस्त 1925 को, ट्रेन लूट के दौरान उन्होंने अंग्रेजी गार्ड को नियंत्रित करने और साथियों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी संभाली। उनकी तेजस्वी योजना ने सुनिश्चित किया कि क्रांतिकारी बिना ज्यादा नुकसान के खजाना हासिल कर सकें।

आजाद ने ट्रेन पर चढ़कर गार्ड को धमकाया और हथियारों के प्रदर्शन से अंग्रेजी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर किया। उनकी सतर्कता ने यह भी सुनिश्चित किया कि योजना के दौरान कोई बड़ी हिंसा न हो, हालांकि एक यात्री की मृत्यु से घटना विवादास्पद हो गई। काकोरी के बाद, आजाद ने HRA को मजबूत करने का काम शुरू किया, जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) बना। उनकी इस भूमिका ने काकोरी को एक प्रेरणादायक घटना बनाया।

वामपंथी आलोचना: क्रांति को कलंक

काकोरी कांड के बाद वामपंथी विचारकों ने इसे ‘काकोरी क्रांति’ के बजाय ‘काकोरी कांड’ कहकर बदनाम करने की कोशिश की। उनका तर्क था कि यह हिंसक घटना थी और एक यात्री की मृत्यु ने इसे अपराध बना दिया। वामपंथियों का मानना था कि आजादी अहिंसा और संगठित आंदोलन से ही संभव है, न कि सशस्त्र संघर्ष से। उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, और अन्य को लुटेरा कहकर उनकी वीरता को कम करने का प्रयास किया।

यह दृष्टिकोण न केवल इन वीरों के बलिदान को नकारता है, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गई इस लड़ाई को भी कम आंकता है। सच्चाई यह है कि काकोरी कांड ने अंग्रेजों को यह संदेश दिया कि हिंदुस्तानी अब उनकी गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे, जो वामपंथियों की समझ से परे था।

अंग्रेजी हुकूमत का जवाब: शहादत का समय

काकोरी कांड ने ब्रिटिश सरकार को सकते में डाल दिया। उन्होंने इस घटना को ‘सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध’ घोषित कर दिया और HRA के 40 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया। दो महीने की जांच के बाद सितंबर 1925 में गिरफ्तारियां शुरू हुईं। 6 अप्रैल 1927 को अदालत ने फैसला सुनाया, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई।

17 दिसंबर 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा, 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद, और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई। चंद्रशेखर आजाद फरार रहे और 1931 में शहादत तक लड़ते रहे। इन वीरों की कुर्बानी ने देश में क्रांति की ज्वाला को और भड़काया।

हिंदू गौरव और विरासत

काकोरी कांड हिंदू शौर्य और देशभक्ति का प्रतीक है। राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी से पहले ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए, जबकि अशफाक उल्ला खान ने शायरी के माध्यम से अपनी वीरता दिखाई। ठाकुर रोशन सिंह, जो उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले थे, ने अपने साहस और बलिदान से हिंदू गौरव को नई ऊँचाई दी।

चंद्रशेखर आजाद की काकोरी में रणनीति और बाद की शहादत ने हिंदुस्तानी शौर्य को अमर कर दिया। उनकी एकता और साहस ने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को भी दर्शाया, जो वामपंथियों की सांप्रदायिकता की आलोचना को गलत साबित करता है। इस घटना ने बाद के क्रांतिकारियों, जैसे भगत सिंह, को प्रेरणा दी, जिन्होंने इसकी प्रशंसा किरती पत्रिका में की। काकोरी रेलवे स्टेशन पर आज भी संग्रहालय है, जहां इन वीरों की यादें संजोई गई हैं।

आज का संदेश: वीरों को नमन

9 अगस्त 2025 को, काकोरी के वीरों, विशेष रूप से चंद्रशेखर आजाद की शहादत हमें प्रेरणा देती है। जब आधुनिक समय में देश की एकता और संस्कृति पर खतरे मंडरा रहे हैं, इन क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करना जरूरी है। वामपंथी विचारधारा ने इसे ‘कांड’ कहकर अपमानित करने की कोशिश की, लेकिन सच्चाई यह है कि यह क्रांति थी, जो अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने का एक कदम थी। हमें अपनी जड़ों पर गर्व होना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को इन वीरों की गाथा बतानी चाहिए।

अमर क्रांति

9 अगस्त 2025 को, हम काकोरी कांड की 100वीं वर्षगांठ पर उन वीरों को नमन करते हैं, जिन्होंने 9 अगस्त 1925 को अंग्रेजों से खजाना लूटकर स्वतंत्रता की अलख जगाई। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, और अन्य की वीरता वामपंथियों की ‘कांड’ वाली टिप्पणी को कम नहीं कर सकती, क्योंकि यह हिंदुस्तानी शौर्य और गौरव का प्रतीक है। सुदर्शन परिवार इन क्रांतिकारियों की याद को जीवित रखने का संकल्प लेता है, जिनका बलिदान अनंतकाल तक प्रेरित करेगा। काकोरी की गाथा हिंदुस्तान के इतिहास में अमर रहेगी!

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