देवभूमि का वो सन्यासी, जिसने नेहरू को दिखाया आर्यावर्त का असली चेहरा

भारत के इतिहास में कुछ ऐसे क्षण हैं, जो हिंदू समाज के गौरव और साहस की अमर गाथा बन गए। ऐसी ही एक कहानी है आर्य समाज के वीर सन्यासी, स्वामी विद्यानंद विदेह की, जिन्होंने 1962 में भारत की चीन से हार के बाद अजमेर में एक सार्वजनिक मंच पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जोरदार थप्पड़ जड़कर हिंदुस्तान के मूल निवासियों—आर्यों—का गौरव स्थापित किया।

यह वह पल था जब देवभूमि का एक सन्यासी नेहरू और कांग्रेस की पश्चिमी मानसिकता को न केवल ललकारा, बल्कि हिंदू समाज को उसकी जड़ों से जोड़ने का संदेश दिया। स्वामी विद्यानंद की यह वीर गाथा आज भी हर हिंदू और आर्य समाज के अनुयायी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

नेहरू का अपमान और सन्यासी की हुंकार

1962 का भारत-चीन युद्ध देश के लिए एक काला अध्याय था। नेहरू की कमजोर कूटनीति और सैन्य तैयारियों की कमी ने भारत को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। इस हार ने हिंदू समाज में गहरे आक्रोश को जन्म दिया, क्योंकि नेहरू की नीतियों ने न केवल देश की सीमाओं को कमजोर किया, बल्कि हिंदुस्तान की सांस्कृतिक आत्मा पर भी प्रहार किया। इसी दौरान अजमेर में वेद संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में नेहरू ने मंच से एक ऐसा बयान दिया, जिसने हिंदू समाज के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई।

नेहरू ने कहा, “इस देश में हमेशा से शरणार्थी आए—शक, हूण, मुस्लिम, अंग्रेज, आर्य—और यहाँ की संस्कृति में घुल-मिल गए।” यह बयान आर्य संस्कृति और हिंदू समाज के लिए अपमानजनक था। नेहरू ने न केवल आर्यों को बाहरी बताकर हिंदुस्तान की मूल सभ्यता का अपमान किया, बल्कि अपनी विफलताओं को छिपाने की कोशिश भी की। लेकिन मंच पर मौजूद स्वामी विद्यानंद विदेह, जो कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे, इस अपमान को बर्दाश्त न कर सके।

उन्होंने मंच से उठकर नेहरू के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ा और माइक पर गरजते हुए कहा, “आर्य कहीं से आए नहीं, यही के मूल निवासी हैं। सबूत में मैं हूँ, मेरे बाप-दादा यहीं पैदा हुए, उनके बाप-दादा भी यहीं पैदा हुए। इस राष्ट्र का नाम ही आर्यावर्त है। लेकिन आप, नेहरू, इस देश के मूल निवासी नहीं। आपकी रगों में हिंदुस्तानी नहीं, अरबी खून दौड़ता है। अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते, तो हम चीन से न हारते, और तिब्बत आज भी भारत का अभिन्न अंग होता।”

यह क्षण न केवल नेहरू की पश्चिमी सोच के खिलाफ एक करारा जवाब था, बल्कि हिंदू समाज और आर्य संस्कृति के गौरव का प्रतीक बन गया। स्वामी विद्यानंद ने उस दिन साबित कर दिया कि हिंदू सन्यासी केवल ध्यान और तप में लीन नहीं रहते, बल्कि जरूरत पड़ने पर वे अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए शेर की तरह दहाड़ सकते हैं।

नेहरू और कांग्रेस की नाकामी

नेहरू और कांग्रेस की नीतियाँ हमेशा से हिंदू समाज और आर्य संस्कृति के खिलाफ रही हैं। उनकी पश्चिमी शिक्षा और विदेशी विचारधारा ने भारत को कमजोर करने का काम किया। 1962 की हार इसका सबसे बड़ा सबूत है। नेहरू की कमजोर कूटनीति, सैन्य बल की अनदेखी, और चीन के प्रति उनकी नरम नीति ने देश को अपमान का घूंट पीने को मजबूर किया। अगर उस समय सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दृढ़ निश्चयी नेता देश के प्रधानमंत्री होते, तो न केवल भारत युद्ध जीतता, बल्कि तिब्बत भी आज भारत का हिस्सा होता।

कांग्रेस ने हमेशा हिंदू समाज को कमजोर करने की कोशिश की। नेहरू की किताबों, जैसे डिस्कवरी ऑफ इंडिया, में हिंदू धर्म और आर्य संस्कृति को पिछड़ा और मिथकीय बताया गया, जबकि वास्तव में आर्यावर्त की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक सभ्यताओं में से एक है। नेहरू ने वेदों और शास्त्रों को महत्व देने के बजाय पश्चिमी विचारों को थोपा, जिससे हिंदू समाज अपनी जड़ों से कटता गया। दूसरी ओर, आर्य समाज ने वेदों की शिक्षा, गौ रक्षा, और सामाजिक सुधारों के माध्यम से हिंदू समाज को एकजुट और सशक्त करने का काम किया।

स्वामी विद्यानंद: आर्य समाज का गौरवशाली योद्धा

स्वामी विद्यानंद विदेह आर्य समाज के एक सच्चे सन्यासी और योद्धा थे। उनकी लेखनी और विचारधारा ने हिंदू समाज को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखा। उनकी पुस्तक “नेहरू: उत्थान और पतन”, जो 1963 में कांग्रेस सरकार द्वारा बैन कर दी गई थी, नेहरू की नीतियों की पोल खोलती थी। इस पुस्तक में स्वामी ने स्पष्ट रूप से लिखा कि नेहरू की नीतियाँ भारत की सांस्कृतिक आत्मा पर प्रहार थीं और उनकी पश्चिमी सोच ने देश को कमजोर किया। उनकी डायरी, “विदेह गाथा: एक आर्य सन्यासी की डायरी” (भाद्रपद 2037 विक्रमी संस्करण), आर्य समाज के सिद्धांतों और हिंदू गौरव की अमर कहानी है।

स्वामी विद्यानंद ने आर्य समाज के मूल सिद्धांतों—वेदों की ओर लौटो, अंधविश्वास का त्याग करो, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दो—को अपने जीवन में उतारा। उन्होंने हिंदू समाज को जागृत करने के लिए न केवल लेखनी का सहारा लिया, बल्कि अपने साहसिक कदमों से भी मिसाल कायम की। नेहरू को थप्पड़ मारने की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो हिंदू समाज को यह संदेश देती है कि अपनी संस्कृति और सम्मान की रक्षा के लिए हमें हर चुनौती का सामना करना होगा।

हिंदू समाज और आर्य समाज के लिए प्रेरणा

स्वामी विद्यानंद की यह वीर गाथा हर हिंदू और आर्य समाज के अनुयायी के लिए एक मिसाल है। उन्होंने दिखाया कि सच्चा सन्यासी वह नहीं जो केवल हिमालय की गुफाओं में तप करता है, बल्कि वह है जो समाज के लिए लड़ता है, अपनी संस्कृति की रक्षा करता है, और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है। आज, जब हिंदू संस्कृति और आर्यावर्त पर लगातार हमले हो रहे हैं—चाहे वह गौकशी के रूप में हो, धार्मिक स्थलों पर अतिक्रमण के रूप में हो, या पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के रूप में—हमें स्वामी विद्यानंद जैसे सन्यासियों की जरूरत है।

आर्य समाज ने हमेशा हिंदू समाज को सशक्त करने का काम किया है। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित इस आंदोलन ने वेदों की शिक्षा को पुनर्जनन दिया, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने का आह्वान किया, और गौ रक्षा को प्राथमिकता दी। स्वामी विद्यानंद ने इन सिद्धांतों को जीवंत रखा और नेहरू जैसे नेताओं की गलत नीतियों को उजागर किया। उनकी गाथा हमें सिखाती है कि हिंदू समाज को अपनी संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा।

कांग्रेस की नीतियों का पतन

कांग्रेस और नेहरू की नीतियों ने न केवल 1962 में देश को हार का मुँह दिखाया, बल्कि हिंदू समाज की एकता को भी कमजोर करने का काम किया। नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदू संस्कृति को दबाया गया, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण थोपा गया, और गौ रक्षा जैसे मुद्दों को अनदेखा किया गया। दूसरी ओर, आर्य समाज ने हमेशा हिंदू समाज को जागृत करने और उसकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का काम किया। स्वामी विद्यानंद की घटना इस बात का प्रतीक है कि हिंदू समाज को अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा, न कि कांग्रेस की तुष्टिकरण नीतियों के सामने झुकना होगा।

आज का संदेश और मांग

स्वामी विद्यानंद विदेह की यह वीर गाथा आज के हिंदू समाज के लिए एक आह्वान है। हमें उनकी तरह साहस और दृढ़ता के साथ अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी। सरकार से हमारी मांग है कि स्वामी विद्यानंद के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिया जाए। उनकी पुस्तक “नेहरू: उत्थान और पतन” पर से प्रतिबंध हटाया जाए और इसे स्कूलों व विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाए, ताकि नई पीढ़ी हिंदू गौरव और आर्यावर्त की सच्चाई को समझे। साथ ही, स्वामी विद्यानंद की स्मृति में स्मारक बनाए जाएँ, जो हिंदू समाज को प्रेरित करते रहें।

हमें आर्य समाज के सिद्धांतों को अपनाना होगा—वेदों की ओर लौटना, अंधविश्वासों का त्याग करना और हिंदू समाज को एकजुट करना। यह समय है कि हम नेहरू और कांग्रेस की गलत नीतियों के खिलाफ खड़े हों और आर्यावर्त के गौरव को पुनर्जनन दें। स्वामी विद्यानंद विदेह की गाथा हमें सिखाती है कि सच्चा हिंदू वह है, जो अपने धर्म और संस्कृति के लिए हर कीमत पर लड़े।

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