भारत, जिसे प्राचीन काल से देवभूमि और मंदिरों की नगरी कहा जाता है, आज अपनी सांस्कृतिक पहचान पर एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। हाल के आँकड़ों ने हिंदू समाज को हिलाकर रख दिया है। आजादी के बाद से भारत में हिंदू मंदिरों की संख्या में 300% की कमी दर्ज की गई है। यह आँकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि हिंदू संस्कृति और धर्म पर एक सुनियोजित हमले की साजिश को उजागर करता है।
इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ा हाथ ईसाई मिशनरियों का है, जिन्होंने विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में धर्म परिवर्तन का एक खतरनाक अभियान चलाकर हिंदू जनसंख्या को निशाना बनाया है। यह हिंदू समाज के लिए खतरे की घंटी है, और हमें अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट होकर इस साजिश का जवाब देना होगा।
मंदिरों की स्थिति: तमिलनाडु अव्वल, लेकिन संकट गहरा
आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्तमान में कुल 6,48,907 हिंदू मंदिर मौजूद हैं। इनमें सबसे ज्यादा मंदिर तमिलनाडु में हैं, जहाँ 79,154 मंदिर हैं। इसके बाद कर्नाटक में 61,232, आंध्र प्रदेश में 47,152, और महाराष्ट्र में 77,283 मंदिर हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि यह संख्या आजादी के समय मौजूद 7.5 लाख मंदिरों की तुलना में बहुत कम है। आजादी के बाद से मंदिरों की संख्या में 300% की कमी आई है, और यह गिरावट खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे ज्यादा देखी गई है।
पूर्वोत्तर राज्यों में मंदिरों की संख्या बेहद कम है—मिजोरम में सिर्फ 32, मेघालय में 128, नागालैंड में 43, और अरुणाचल प्रदेश में 96 मंदिर बचे हैं। यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है, जब हम देखते हैं कि इन राज्यों में आजादी के समय हिंदू जनसंख्या बहुसंख्यक थी, लेकिन अब यहाँ की 90% से ज्यादा जनसंख्या को ईसाई मिशनरियों ने धर्म परिवर्तन कराकर ईसाई बना दिया है। आजादी के समय इन राज्यों में ईसाई जनसंख्या मात्र 3% थी, लेकिन मिशनरियों के सुनियोजित अभियान ने हिंदू संस्कृति को यहाँ से लगभग मिटा दिया है।
हिंदू मंदिरों पर हमला: एक सुनियोजित साजिश
हिंदू मंदिर केवल पूजा-पाठ के स्थान नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक पहचान के प्रतीक हैं। मंदिरों की यह गिरावट कोई संयोग नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का परिणाम है। ईसाई मिशनरियों ने पिछले सात दशकों में भारत के विभिन्न हिस्सों, खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में, धर्म परिवर्तन का एक खतरनाक खेल खेला है। वे गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता का फायदा उठाकर हिंदुओं को लालच, दबाव और प्रलोभन के जरिए ईसाई बनाते रहे हैं।
इसके साथ ही, मंदिरों को तोड़ने, उनकी जमीन पर कब्जा करने, और उन्हें रखरखाव के अभाव में नष्ट होने देने की घटनाएँ भी बढ़ी हैं। कई राज्यों में मंदिरों की जमीनें सरकारी नियंत्रण में हैं, और वहाँ से होने वाली आय का उपयोग मंदिरों के रखरखाव के लिए नहीं, बल्कि अन्य कार्यों के लिए किया जाता है। यह हिंदू समाज के साथ एक बड़ा अन्याय है। कुछ जगहों पर मंदिरों को जानबूझकर नष्ट कर उनकी जगह चर्च बनाए गए हैं। यह हिंदू संस्कृति पर एक खुला हमला है, जिसे हमें किसी भी कीमत पर रोकना होगा।
ईसाई मिशनरियों की साजिश: हिंदू संस्कृति को मिटाने का षड्यंत्र
पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ सबसे ज्यादा चिंताजनक हैं। मिजोरम, नागालैंड, और मेघालय जैसे राज्यों में आज 90% से ज्यादा जनसंख्या ईसाई है, जो आजादी के समय मात्र 3% थी। यह बदलाव कैसे आया? मिशनरियों ने स्कूल, अस्पताल, और सामाजिक सेवा के नाम पर स्थानीय लोगों को अपने जाल में फँसाया। उन्होंने गरीब और अशिक्षित हिंदुओं को पैसे, शिक्षा, और नौकरी का लालच दिया, और बदले में उन्हें हिंदू धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया।
मिशनरियों ने हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया। कई मंदिरों को तोड़ दिया गया, और उनकी जगह चर्च बना दिए गए। जो मंदिर बचे, उन्हें रखरखाव के अभाव में नष्ट होने दिया गया। मिशनरियों ने स्थानीय लोगों को हिंदू धर्म से दूर करने के लिए यह भी प्रचार किया कि हिंदू धर्म पिछड़ा और अंधविश्वास से भरा है, जबकि ईसाई धर्म आधुनिक और प्रगतिशील है। यह हिंदू संस्कृति पर एक सुनियोजित साजिश है, जिसका मकसद हमारी सांस्कृतिक पहचान को मिटाना है।
इसके अलावा, मिशनरियों ने विदेशी फंडिंग का सहारा लिया है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों से प्राप्त धन का उपयोग वे धर्म परिवर्तन के लिए करते हैं। यह एक गहरी साजिश है, जिसके तहत हिंदू समाज को कमजोर करने और भारत की सांस्कृतिक एकता को तोड़ने की कोशिश की जा रही है।
हिंदू समाज की उदासीनता और सरकार की नाकामी
यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर हिंदू समाज और सरकार ने इस संकट को रोकने के लिए क्या किया? हिंदू समाज की उदासीनता भी इस गिरावट का एक बड़ा कारण है। हमने अपनी संस्कृति और मंदिरों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। मंदिरों के प्रति हमारी आस्था कम होती जा रही है, और हम उन्हें केवल धार्मिक स्थल तक सीमित समझने लगे हैं, जबकि मंदिर हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक एकता के केंद्र रहे हैं।
दूसरी ओर, सरकारों की नीतियाँ भी हिंदू मंदिरों के खिलाफ रही हैं। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण थोपा गया, लेकिन उनकी आय का उपयोग मंदिरों के रखरखाव के लिए नहीं किया गया। मंदिरों की जमीनें हड़प ली गईं, और उनके प्राचीन स्वरूप को नष्ट होने दिया गया। यह विडंबना है कि एक हिंदू बहुल देश में हिंदू मंदिरों को ही सबसे ज्यादा उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
कई राज्यों में मंदिरों की आय का उपयोग गैर-हिंदू कार्यों के लिए किया जाता है, जो हिंदू समाज के साथ एक खुला अन्याय है। सरकारें मिशनरियों की गतिविधियों पर भी कोई सख्त कार्रवाई नहीं करतीं, जिसके कारण उनकी गतिविधियाँ बेरोकटोक चल रही हैं। यह हिंदू समाज के लिए एक बड़ा खतरा है, और हमें इस नाकामी के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट हों
हिंदू मंदिरों की यह दुर्दशा हिंदू समाज के लिए एक चेतावनी है। अगर हम अभी नहीं जागे, तो हमारी सांस्कृतिक पहचान पूरी तरह से मिटा दी जाएगी। हमें अपनी संस्कृति और मंदिरों की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा। हमें मिशनरियों की साजिश को उजागर करना होगा और उनके धर्म परिवर्तन के अभियान को रोकना होगा। इसके लिए हमें निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:
मंदिरों की सुरक्षा और पुनर्जनन: मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना होगा और उनकी आय का उपयोग उनके रखरखाव और प्रचार के लिए करना होगा। प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार होना चाहिए।
धर्म परिवर्तन पर रोक: सरकार को धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून बनाना चाहिए और मिशनरियों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। लालच और दबाव से होने वाले धर्मांतरण को रोकना होगा।
हिंदू जागरूकता अभियान: हिंदू समाज को अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति जागरूक करना होगा। स्कूलों में हिंदू धर्म और संस्कृति की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़े।
मंदिरों को सामाजिक केंद्र बनाना: मंदिरों को फिर से सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाना होगा, जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कार्यों को बढ़ावा दिया जाए।
विदेशी फंडिंग पर रोक: मिशनरियों को मिलने वाली विदेशी फंडिंग पर सख्त निगरानी और रोक लगानी होगी। यह धन धर्म परिवर्तन के लिए इस्तेमाल होता है, जो भारत की एकता के लिए खतरा है।
मांग: हिंदू संस्कृति की रक्षा करें
हिंदू समाज सरकार से मांग करता है कि मंदिरों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ। मिशनरियों की गतिविधियों पर सख्त निगरानी रखी जाए और धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कठोर कानून बनाए जाएँ। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए और उनकी आय का उपयोग उनके रखरखाव और प्रचार के लिए किया जाए। साथ ही, हिंदू समाज को एकजुट होकर अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी। हमें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा और मंदिरों को फिर से अपनी सांस्कृतिक पहचान का केंद्र बनाना होगा।
हिंदू मंदिर हमारी सभ्यता और संस्कृति की नींव हैं। अगर वे नष्ट हो गए, तो हमारी पहचान भी मिट जाएगी। यह समय है कि हम जागें और हिंदू संस्कृति पर हो रहे इस हमले का जवाब दें। मिशनरियों की साजिश को नाकाम करना होगा और हिंदू मंदिरों को फिर से उनकी खोई हुई गरिमा दिलानी होगी। हमें अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति गर्व करना होगा और इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा।