केरल की मालाबार भूमि, जो कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जानी जाती थी, 1921 में एक ऐसे खूनी नरसंहार की गवाह बनी, जिसने हिंदू समुदाय को गहरे जख्म दिए। यह वह दौर था जब मोपला विद्रोह की आड़ में जिहादियों ने एक सुनियोजित साजिश के तहत 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया।
मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया, हिंदू परिवारों को लूटा गया, और उनकी आबरू को तार-तार किया गया। यह नरसंहार केवल हिंसा नहीं था, बल्कि सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति पर एक सुनियोजित हमला था। इतिहास के इस काले अध्याय को दशकों तक छुपाया गया, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस सच्चाई को उजागर करें और उन हिंदू भाइयों-बहनों की शहादत को याद करें, जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी।
1921 का मालाबार: जब विद्रोह ने लिया जिहादी रंग
1921 में मालाबार क्षेत्र में मोपला समुदाय, जो ज्यादातर मुस्लिम किसान और मज़दूर थे, ने अंग्रेजों की जमींदारी नीतियों और भारी करों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया। शुरुआत में यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ था, लेकिन जल्द ही इसने एक खतरनाक मोड़ ले लिया। खलीफत आंदोलन, जो उस समय भारत में सक्रिय था, ने मोपला समुदाय को भड़काने में अहम भूमिका निभाई।
कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने इसे “काफिरों” के खिलाफ जिहाद का रूप दे दिया, और इसका निशाना मालाबार के हिंदू समुदाय को बनाया गया। अगस्त 1921 से शुरू हुई यह हिंसा कई महीनों तक चली, जिसमें हिंदुओं को बेरहमी से निशाना बनाया गया।
खूनी मंजर: हिंदुओं पर टूटा कहर
मोपला नरसंहार की भयावहता को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। हिंदुओं के गाँवों को आग के हवाले कर दिया गया, उनके घरों को लूट लिया गया, और जो लोग जिहादियों के सामने झुकने से इनकार करते थे, उन्हें तलवारों से काट दिया गया। कुछ स्रोतों के अनुसार, इस नरसंहार में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हत्या हुई। हिंदू महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, और कई परिवारों को अपनी जान बचाने के लिए जंगलों में शरण लेनी पड़ी। मालाबार के कई गाँव, जो कभी हिंदुओं की हँसी-खुशी से गूँजते थे, इस हिंसा के बाद वीरान हो गए।
मंदिरों पर हमला: सनातन धर्म को मिटाने की साजिश
मोपला नरसंहार केवल हिंदुओं की हत्या तक सीमित नहीं था; यह सनातन धर्म को मिटाने की एक गहरी साजिश थी। मालाबार क्षेत्र के सैकड़ों प्राचीन मंदिरों को निशाना बनाया गया। मूर्तियों को तोड़ा गया, मंदिरों की संपत्ति को लूटा गया, और पवित्र स्थानों को अपवित्र करने की कोशिश की गई। यह हिंसा हिंदू संस्कृति के मूल पर हमला थी, जिसका मकसद हिंदुओं को उनकी जड़ों से काटना था। इस नरसंहार ने हिंदू समुदाय को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी तोड़ने की कोशिश की।
समकालीन गवाह: साक्ष्यों में छुपी सच्चाई
मोपला नरसंहार के दौरान कई समकालीन साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह हिंदुओं के खिलाफ एक जिहादी साजिश थी। मालाबार के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सी.ए. इनेज़, ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह विद्रोह जल्द ही हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में बदल गया। उन्होंने बताया कि हिंदुओं को या तो धर्म परिवर्तन करना पड़ा या उनकी हत्या कर दी गई।
ब्रिटिश सरकार की एक आधिकारिक रिपोर्ट में 2,337 हिंदुओं की हत्या की पुष्टि की गई, लेकिन कई स्वतंत्र स्रोतों का दावा है कि यह संख्या 10,000 से अधिक थी। केरल के तत्कालीन गवर्नर, लॉर्ड रीडिंग, ने इसे “हिंदुओं के खिलाफ धार्मिक उन्माद” करार दिया।
गांधी से सावरकर तक: नरसंहार पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ
मोपला नरसंहार के बाद भारतीय नेताओं की प्रतिक्रियाएँ भी इस घटना की गंभीरता को दर्शाती हैं। महात्मा गांधी ने इस हिंसा को हल्के में लेते हुए मोपला समुदाय को “नन्हा-मुन्ना” कहा और उनकी हिंसा को जायज़ ठहराने की कोशिश की, जिससे हिंदू समुदाय में गहरा आक्रोश फैला।
दूसरी ओर, वीर सावरकर और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं ने इस नरसंहार की कड़ी निंदा की। सावरकर ने इसे हिंदुओं के खिलाफ एक सुनियोजित जिहाद बताया और हिंदुओं को एकजुट होने की प्रेरणा दी। अंबेडकर ने भी इस हिंसा को हिंदुओं के खिलाफ एक धार्मिक हमला करार दिया।
इतिहास का गलत चित्रण: सच्चाई को छुपाने की कोशिश
मोपला नरसंहार को इतिहास में “किसान विद्रोह” के रूप में पेश किया गया, जिसने इसकी जिहादी प्रकृति को पूरी तरह छुपा दिया। कुछ इतिहासकारों ने इसे स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बताकर इसकी सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। इस नरसंहार में हिंदुओं की हत्या, मंदिरों के विनाश, और हिंदू महिलाओं के अपमान का कोई ज़िक्र नहीं किया गया। यह एक सुनियोजित कोशिश थी, ताकि हिंदू समुदाय अपने अतीत के दर्द को न भूल सके और एकजुट न हो सके।
आज के लिए सबक: हिंदू जागरूकता की ज़रूरत
मोपला नरसंहार हमें यह सिखाता है कि हिंदुओं की एकता और जागरूकता ही उनकी रक्षा कर सकती है। 1921 में हिंदू समुदाय संगठित नहीं था, जिसके कारण वे इस हिंसा का आसान शिकार बन गए। आज, जब हिंदू समाज फिर से कई चुनौतियों का सामना कर रहा है—चाहे वह धर्म परिवर्तन हो, सांस्कृतिक हमले हों, या मंदिरों पर अतिक्रमण—हमें इस घटना से प्रेरणा लेनी होगी। हमें अपने इतिहास को जानना होगा और उससे सबक लेकर अपने समुदाय को मज़बूत करना होगा।
स्मरण और श्रद्धांजलि: हिंदू शहादत को सम्मान
मोपला नरसंहार की यह कहानी हमें अपने अतीत के उन शहीदों को याद करने का अवसर देती है, जिन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी शहादत व्यर्थ न जाए। मालाबार के उन 10,000 हिंदुओं की याद में हमें एकजुट होकर अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा करनी होगी।
यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस सच्चाई को हर हिंदू तक पहुँचाएँ और आने वाली पीढ़ियों को अपने गौरवपूर्ण इतिहास से अवगत कराएँ। आइए, उन शहीदों को नमन करें और उनके बलिदान को हमेशा याद रखें।