भारतवर्ष की पवित्र धरती ने अनेक वीरांगनाओं को जन्म दिया, जिन्होंने अपने साहस, त्याग और संस्कारों से इतिहास के पन्नों को स्वर्णिम बनाया। इनमें सर्वोपरि हैं राजमाता जीजाबाई, जिनकी मातृशक्ति और दृढ़ संकल्प ने न केवल एक पुत्र को जन्म दिया, बल्कि एक युगपुरुष, हिंदवा सूर्य छत्रपति शिवाजी महाराज को गढ़ा। जीजाबाई वह दीपशिखा थीं, जिनके संस्कारों और मार्गदर्शन ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और हिंदवी स्वराज्य का स्वप्न साकार किया। उनकी कहानी हर उस भारतीय के लिए प्रेरणा है, जो अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के लिए जीता है।
जीजाबाई का प्रारंभिक जीवन और संस्कार
राजमाता जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी, 1598 को महाराष्ट्र के सिंदखेड़ में हुआ था। उनके पिता, लखुजी जाधव, एक सम्मानित मराठा सरदार थे, जिन्होंने उन्हें वीरता, धर्म और देशभक्ति के संस्कार दिए। बचपन से ही जीजाबाई में हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा थी। उनकी शादी जयसिंहराव भोसले से हुई, जो बाद में मराठा साम्राज्य के संस्थापक परिवार का हिस्सा बने। लेकिन यह जीजाबाई का साहस और दूरदर्शिता ही थी, जिसने भोसले वंश को एक नए युग की ओर ले गई।
जीजाबाई का जीवन आसान नहीं था। उनके पति शाहजी भोसले को मुगल और आदिलशाही सल्तनतों के बीच सत्ता के खेल में उलझना पड़ा। ऐसे में जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को न केवल एक मां की तरह पाला, बल्कि उन्हें एक योद्धा, रणनीतिकार और धर्मरक्षक के रूप में तैयार किया। उनके संस्कारों में हिंदू धर्म, स्वराज्य का स्वप्न और अन्याय के खिलाफ संघर्ष की भावना गहरे तक समाई थी।
शिवाजी के निर्माण में जीजाबाई की भूमिका
शिवाजी महाराज को हिंदवा सूर्य बनाने में राजमाता जीजाबाई की भूमिका अतुलनीय है। उन्होंने शिवाजी को बचपन से ही रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियां सुनाकर धर्म और वीरता का पाठ पढ़ाया। जीजाबाई ने उन्हें सिखाया कि हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करना हर योद्धा का परम कर्तव्य है। उस समय, जब मुगल और अन्य विदेशी शासक हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे थे, धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे थे, और भारतीय संस्कृति को कुचलने का प्रयास कर रहे थे, जीजाबाई ने शिवाजी के मन में स्वराज्य का बीज बोया।
जीजाबाई ने शिवाजी को न केवल तलवार चलाना सिखाया, बल्कि रणनीति, कूटनीति और न्यायपूर्ण शासन की कला भी सिखाई। उन्होंने शिवाजी को बताया कि सच्चा शासक वही है, जो अपनी प्रजा को माता-पिता की तरह संभाले और धर्म की रक्षा करे। शिवाजी की हर विजय, चाहे वह तोरण का किला हो या औरंगजेब के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध, जीजाबाई के संस्कारों की छाप लिए थी।
गौ-रक्षा और हिंदू धर्म की रक्षा
जीजाबाई के लिए हिंदू धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं था। वह गौ-माता को भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानती थीं। उस समय मुगल और अन्य इस्लामिक शासकों द्वारा गौ-हत्या को बढ़ावा देना हिंदुओं के लिए एक बड़ा आघात था। जीजाबाई ने शिवाजी को सिखाया कि गौ-रक्षा केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता का आधार है। शिवाजी ने अपनी माता के इस आदर्श को अपनाया और अपने शासन में गौ-रक्षा को प्राथमिकता दी।
जीजाबाई का यह विश्वास कि हिंदू धर्म और संस्कृति को बचाना हर भारतीय का कर्तव्य है, आज के राइट विंग विचारकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने पुत्र को सिखाया कि विदेशी आक्रांताओं और उनकी नीतियों के सामने झुकना नहीं, बल्कि डटकर मुकाबला करना ही सच्ची वीरता है। यही कारण है कि शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब जैसे क्रूर शासकों को चुनौती दी और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की।
स्वराज्य का स्वप्न और राइट विंग की प्रेरणा
जीजाबाई का स्वराज्य का स्वप्न केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं था। यह एक ऐसा भारत था, जहां हिंदू धर्म, संस्कृति और परंपराएं सुरक्षित हों। उन्होंने शिवाजी को सिखाया कि स्वराज्य का अर्थ है प्रजा का कल्याण, धर्म की रक्षा और अन्याय के खिलाफ निरंतर संघर्ष। यह विचार आज के राइट विंग आंदोलनों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जो भारत को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने और विदेशी प्रभावों से मुक्त करने की बात करते हैं।
जीजाबाई की शिक्षाएं आज भी हमें सिखाती हैं कि सच्चा राष्ट्रवाद वही है, जो अपनी संस्कृति, धर्म और परंपराओं को गर्व के साथ संजोए। उन्होंने शिवाजी को एक ऐसा योद्धा बनाया, जो न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि नैतिकता और धर्म के मैदान में भी अडिग रहा। उनकी यह विरासत राइट विंग विचारकों के लिए एक मार्गदर्शक है, जो हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा को अपना लक्ष्य मानते हैं।
जीजाबाई की विरासत
राजमाता जीजाबाई का जीवन एक मां, योद्धा और रणनीतिकार का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने न केवल शिवाजी को जन्म दिया, बल्कि उन्हें वह संस्कार और शक्ति दी, जिसने मराठा साम्राज्य को विश्व के इतिहास में अमर कर दिया। उनके बलिदान और समर्पण ने सिद्ध किया कि नारी शक्ति किसी भी राष्ट्र के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान दे सकती है।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए साहस और त्याग की आवश्यकता होती है। आज, जब भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जनन देने की दिशा में बढ़ रहा है, जीजाबाई की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने मूल्यों और परंपराओं के लिए डटकर खड़ा होना चाहिए।
राजमाता जीजाबाई भारतवर्ष की वह नारी शक्ति हैं, जिनके संस्कारों ने हिंदवा सूर्य छत्रपति शिवाजी को जन्म दिया। उनकी शिक्षाएं, उनका साहस और उनकी दृढ़ता आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। जीजाबाई ने सिखाया कि सच्चा स्वराज्य केवल सत्ता का नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और प्रजा के कल्याण का स्वप्न है। उनकी यह विरासत राइट विंग विचारकों के लिए एक मशाल है, जो हमें हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए प्रेरित करती है।