रानी चेन्नम्मा: केलादी की शेरनी, जिसने औरंगज़ेब को ललकारा और शिवाजी के बेटे को बचाया

केलादी की छोटी-सी रियासत में जन्मी रानी चेन्नम्मा एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होंने मुगल बादशाह औरंगज़ेब की ताकत को धूल चटाई। 17वीं सदी में जब औरंगज़ेब का आतंक हिंदुस्तान पर छाया था, तब इस शेरनी ने न सिर्फ़ उसकी धमकियों को ठुकराया, बल्कि मराठा नायक शिवाजी के बेटे राजाराम को अपनी शरण में लेकर मुगलों को मात दी। रानी चेन्नम्मा की बहादुरी और सनातन संस्कृति की रक्षा की कहानी हर हिंदू के दिल में गर्व जगाती है। उनकी गाथा नन्हे केलादी की ताकत और हिंदुत्व के जज्बे का प्रतीक है, जिसने मुगल-केलादी युद्ध में इतिहास रचा।

शुरुआती जीवन: केलादी की नन्हीं रानी

रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1624 को कर्नाटक के केलादी में हुआ। वह नायक वंश की बेटी थीं और बचपन से ही तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और रणनीति में माहिर थीं। उनकी शादी केलादी के राजा सोमशेखर नायक से हुई, लेकिन 1663 में राजा की मृत्यु के बाद रानी ने अपने सौतेले बेटे शिवप्पा नायक के साथ मिलकर रियासत संभाली। छोटा-सा केलादी एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था, जो अपने मसालों और साहस के लिए जाना जाता था।

रानी चेन्नम्मा ने न सिर्फ़ राजकाज को मज़बूत किया, बल्कि अपनी प्रजा को सनातन धर्म और स्वाभिमान की भावना दी। उनकी दूरदर्शिता और नन्हे राज्य की ताकत ने औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली शासक को भी हैरान कर दिया।

शिवाजी के बेटे को शरण: औरंगज़ेब की धमकी

1679 में मराठा नायक शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब ने उनके बेटे राजाराम पर हमले तेज़ कर दिए। राजाराम, अपनी जान बचाने के लिए दक्षिण की ओर भागे और 1689 में केलादी पहुँचे। रानी चेन्नम्मा ने बिना डरे राजाराम को शरण दी। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के रक्षक को आश्रय देना मेरा कर्तव्य है।

औरंगज़ेब ने जब यह सुना तो गुस्से से आग बबूला हो गया। उसने रानी को धमकी भरे पत्र भेजे कि राजाराम को तुरंत मुगलों के हवाले करो, वरना केलादी को तबाह कर दूंगा। लेकिन रानी चेन्नम्मा ने जवाब दिया कि मैं सनातन धर्म की रक्षा के लिए किसी से नहीं डरती। उनकी इस हिम्मत ने औरंगज़ेब को बौखला दिया और मुगल-केलादी युद्ध की शुरुआत हुई।

मुगल-केलादी युद्ध: शेरनी की जीत

1689 में औरंगज़ेब ने अपनी विशाल मुगल सेना को केलादी पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। मुगल सेनापति औरंगज़ेब के भरोसेमंद सरदार थे, जिनके पास हज़ारों सैनिक, तोपें और हथियार थे। दूसरी ओर, केलादी की छोटी-सी सेना थी, लेकिन रानी चेन्नम्मा का जज़्बा अटूट था। उन्होंने अपनी सेना को जंगल युद्ध और छापामार रणनीति सिखाई।

केलादी के घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रानी की सेना ने मुगलों को छकाया। रानी खुद युद्ध में उतरीं और तलवार लेकर दुश्मनों का सामना किया। कई महीनों तक चले इस युद्ध में रानी ने मुगल सेना को बार-बार पीछे धकेला। आखिरकार, मुगलों को हार माननी पड़ी और वे केलादी से खाली हाथ लौटे। रानी चेन्नम्मा की इस जीत ने सनातन समाज में उनके नाम को अमर कर दिया।

सनातन संस्कृति की रक्षक

रानी चेन्नम्मा की बहादुरी सिर्फ़ युद्ध तक सीमित नहीं थी। उन्होंने केलादी में मंदिरों की रक्षा की, विद्वानों को संरक्षण दिया और हिंदू परंपराओं को बढ़ावा दिया। उनका युद्ध औरंगज़ेब की कट्टरता के खिलाफ था, जो मस्जिदों को तोड़ने और हिंदुओं पर जज़िया कर थोपने के लिए कुख्यात था।। रानी का यह कदम सनातन धर्म की रक्षा थी।

उनके इस साहस ने मराठा योद्धाओं और दक्षिण के अन्य हिंदू राजाओं को प्रेरणा दी। सोशल मीडिया पर आज लोग लिखते हैं कि रानी चेन्नम्मा हिंदुत्व की सच्ची शेरनी थीं, जिन्होंने औरंगज़ेब जैसे अत्याचारी को सबक सिखाया। उनकी कहानी हिंदू समाज को सिखाती है कि छोटा राज्य हो या बड़ा, सनातन धर्म की रक्षा के लिए हिम्मत ज़रूरी है।

औरंगज़ेब की हार, हिंदुत्व की जीत

रानी चेन्नम्मा की जीत ने औरंगज़ेब के घमंड को चूर किया। राजाराम को शरण देकर उन्होंने मराठा गौरव को बचाया और मुगलों को दिखा दिया कि हिंदू शक्ति को दबाना आसान नहीं। 1690 के बाद औरंगज़ेब ने केलादी पर दोबारा हमला करने की हिम्मत नहीं की। रानी ने अपने शासनकाल में केलादी को मज़बूत रखा और प्रजा के लिए मिसाल बनीं।

उनकी मृत्यु 1696 में हुई, लेकिन उनकी गाथा आज भी ज़िंदा है। कर्नाटक में रानी चेन्नम्मा को “केलादी की शेरनी” कहा जाता है। उनके सम्मान में स्मारक और मूर्तियाँ बनी हैं। हर साल 23 अक्टूबर को उनकी जयंती पर लोग उनके साहस को याद करते हैं।

वामपंथी इतिहास की चुप्पी

आज कुछ वामपंथी इतिहासकार रानी चेन्नम्मा की गाथा को सिर्फ़ क्षेत्रीय युद्ध कहकर छोटा करते हैं। वे औरंगज़ेब की कट्टरता और “लव जिहाद” जैसी साजिशों को नज़रअंदाज़ करते हैं। लेकिन हिंदू समाज जानता है कि रानी चेन्नम्मा की लड़ाई सनातन धर्म की रक्षा की लड़ाई थी। उनकी कहानी को दबाने की कोशिश वामपंथी सेक्युलरिज़्म की नाकामी दिखाती है। एक सोशल मीडिया यूज़र ने लिखा कि चेन्नम्मा जैसी शेरनियाँ ही हिंदुत्व की असली ताकत हैं।

रानी चेन्नम्मा केलादी की वो शेरनी थीं, जिन्होंने औरंगज़ेब जैसे अत्याचारी को ललकारा और शिवाजी के बेटे राजाराम को बचाया। मुगल-केलादी युद्ध में उनकी जीत सनातन संस्कृति और हिंदू गौरव का प्रतीक है। छोटे-से केलादी ने विशाल मुगल सेना को हराकर दिखाया कि हिम्मत और धर्म की ताकत के आगे कोई नहीं टिक सकता।

आज रानी चेन्नम्मा की कहानी हर हिंदू को प्रेरणा देती है कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए डटकर मुकाबला करना ज़रूरी है। उनकी गाथा हमें सिखाती है कि औरंगज़ेब जैसे तानाशाहों को जवाब देने के लिए एक शेरनी का जज़्बा चाहिए। रानी चेन्नम्मा अमर रहें, हिंदुत्व अमर रहे!

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