28 जून को हम उस दानवीर भामाशाह को नमन करते हैं, जिनके त्याग ने हिंदू समाज और सनातन धर्म की रक्षा में अनमोल योगदान दिया। एक साधारण ओसवाल जैन व्यापारी, भामाशाह ने अपनी सारी संपत्ति महाराणा प्रताप को सौंपकर मेवाड़ की स्वतंत्रता और हिंदू स्वाभिमान को अमर बनाया। उनके दान ने न केवल प्रताप की सेना को बल दिया, बल्कि मुगल शासक अकबर के खिलाफ सनातन संस्कृति की मशाल को जलाए रखा। उनकी गाथा हिंदू समाज के लिए गर्व का प्रतीक है।
हल्दीघाटी के बाद हिंदू समाज के लिए बलिदान
1576 में हल्दीघाटी का युद्ध हिंदू समाज के लिए कठिन समय था। महाराणा प्रताप ने अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया, लेकिन हार के बाद वे जंगलों में छिपकर छापामार युद्ध लड़ने को मजबूर थे। मेवाड़ की सेना भूखी थी, हथियार टूट चुके थे, और आशा फीकी पड़ रही थी। ऐसे संकट में भामाशाह आगे आए। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति—सोना, चाँदी और गहने—राणा प्रताप को सौंप दी।
यह दान इतना बड़ा था कि इससे 25,000 सैनिकों की सेना को दो साल तक चलाया जा सका। भामाशाह ने कहा कि हिंदू धर्म और मेवाड़ की रक्षा मेरा कर्तव्य है। इस धन से प्रताप ने अपनी सेना को फिर से संगठित किया, नए हथियार खरीदे, और मुगलों के खिलाफ युद्ध तेज़ किया। चित्तौड़ और मेवाड़ के कई हिस्सों को मुगलों से छीना गया। भामाशाह का यह त्याग हिंदू समाज के लिए एक मिसाल बन गया, जिसने दिखाया कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए धन से बढ़कर समर्पण ज़रूरी है।
सनातन धर्म की रक्षा में योगदान
भामाशाह का योगदान सिर्फ़ धन तक सीमित नहीं था। जैन धर्म के अनुयायी होने के बावजूद, उन्होंने सनातन संस्कृति को मज़बूत करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने मंदिरों और धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए धन और संसाधन दिए। उनके दान ने मेवाड़ में सनातन धर्म की परंपराओं को जीवित रखा, जो अकबर के कट्टर शासन के तहत दबाव में थीं।
भामाशाह ने राणा प्रताप के साथ रणनीतियाँ बनाईं और युद्ध में उनकी सलाह दी। उनकी बुद्धिमानी ने मेवाड़ को मुगल आधिपत्य से बचाने में मदद की। उनका यह समर्पण हिंदू समाज को सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी समुदाय से हो, अपना योगदान दे सकता है। भामाशाह का जीवन इस बात का सबूत है कि सनातन धर्म की ताकत एकता और त्याग में है।
हिंदू स्वाभिमान को अमर बनाने की प्रेरणा
भामाशाह का दान हिंदू स्वाभिमान का प्रतीक बन गया। जब महाराणा प्रताप जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने न केवल धन दिया, बल्कि हिंदू समाज में आशा की किरण जगाई। उनके त्याग ने यह संदेश दिया कि सनातन धर्म का हर सिपाही, चाहे वह योद्धा हो या व्यापारी, स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा ले सकता है।
उनके दान से प्रेरित होकर मेवाड़ की प्रजा ने भी प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाया। भामाशाह की कहानी आज भी हिंदू समाज को प्रेरित करती है कि सच्चा बलिदान धन से नहीं, बल्कि दिल और धर्म की भावना से होता है। उनकी गाथा सिखाती है कि हिंदू स्वाभिमान को कोई भी ताकत दबा नहीं सकती, जब तक त्याग और समर्पण जैसे योद्धा साथ हैं।