समुद्र की गहराइयों में एक हिंदू सागर योद्धा ने यूरोप की शक्ति को झुका दिया, जिनका नाम था कान्होजी आंग्रे। शिवाजी महाराज के इस वीर सैनिक ने अंग्रेज, पुर्तगाली और डच जैसी यूरोपीय ताकतों को ललकारा। 1698 से 1729 तक उनकी वीरता ने मराठा समुद्र को अजेय बनाया। उनकी तलवारों ने हिंदू स्वाभिमान को लहराया और सनातन गौरव की नई कहानी लिखी। यह है कान्होजी आंग्रे की वह वीर गाथा, जो हर भारतीय के दिल में जोश भरती है।
यूरोप का समुद्र आधिपत्य और कान्होजी का संकल्प
17वीं सदी के अंत में यूरोपीय शक्तियां भारतीय समुद्रों पर राज करना चाहती थीं। अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी, पुर्तगाली और डच ने मराठा तटों पर कब्जा जमाया। वे व्यापारिक चौकियां बनाकर मराठा नौसेना को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। पर कान्होजी आंग्रे ने शिवाजी महाराज के सपनों को जिंदा रखने की कसम खाई। उनका मकसद था मराठा जलक्षेत्र की रक्षा और हिंदू संस्कृति का सम्मान।
1698 में उन्हें नौसेना का सरदार बनाया गया। उन्होंने हल्की नौकाओं से गुरिल्ला हमले शुरू किए। अंग्रेजी, पुर्तगाली और डच जहाजों को निशाना बनाकर उन्होंने मराठा तटों को सुरक्षित किया। उनकी रणनीति ने साबित किया कि हिंदू सागर योद्धा किसी भी चुनौती से लड़ सकता है। कोंकण तट पर उनकी मौजूदगी ने दुश्मनों को परेशान कर दिया।
समुद्र में वीरता: यूरोप की हार
1703 में कान्होजी ने अंग्रेजी जहाजों क्वीन और एल्बियन को ध्वस्त किया। उनकी तेज नौकाओं ने अंग्रेजी बेड़े को तितर-बितर कर दिया। यह जीत मराठा नौसेना की ताकत का प्रतीक बनी। 1721 में उन्होंने बॉम्बे पर घेराबंदी की, जिससे अंग्रेजी व्यापार रुक गया। साथ ही, पुर्तगाली जहाजों को भी उन्होंने कई बार शिकस्त दी।
डच के खिलाफ भी कान्होजी ने मोर्चा खोला। 1717 में उनके नौसैनिकों ने डच व्यापारिक जहाजों पर हमला कर माल लूटा। उनकी सेना में मराठा नाविकों की एकता थी। वे ज्वार-भाटे और रात के अंधेरे का फायदा उठाते थे। उनकी नौकाएं यूरोपीय बेड़ों पर टूट पड़तीं। सोशल मीडिया पर लोग लिखते हैं, ‘कान्होजी ने समुद्र में हिंदू गौरव को बुलंद किया।’
नौसेना रणनीति और बलिदान
कान्होजी की जीत का राज उनकी चतुराई थी। उन्होंने भारी जहाजों के बजाय हल्की और तेज नौकाएं इस्तेमाल की। ये नौकाएं समुद्र में छिपकर अंग्रेज, पुर्तगाली और डच पर हमला करतीं। कोंकण तट का गहरा ज्ञान उनकी ताकत था। स्थानीय मछुआरों ने भी उनका साथ दिया। यह एकता हिंदू समाज की शक्ति थी।
1729 में कान्होजी की मृत्यु हुई, पर उनकी नौसेना यूरोपीय शक्तियों के लिए खतरा बनी रही। अंतिम सांस तक उन्होंने ‘हिंदू ध्वज’ को ऊंचा रखा। उनकी शहादत ने मराठा समुद्र की रक्षा को अमर कर दिया। यह बलिदान सनातन वीरता की अनुपम मिसाल बन गया। उनकी नौसेना ने मराठा स्वतंत्रता की नींव रखी।
कान्होजी आंग्रे की अमर विरासत
कान्होजी आंग्रे की गौरव गाथा आज भी समुद्र की लहरों में गूंजती है। कोंकण तट पर उनके स्मारक बने हैं। हर साल उनकी वीरता को याद करने के लिए उत्सव मनाए जाते हैं। उनकी कहानी हर हिंदू को प्रेरित करती है कि सच्चा योद्धा वही है जो अपने धर्म और देश के लिए लड़े।
सनातन गौरव की इस जंग ने सिखाया कि हिंदू शक्ति समुद्र में भी अजेय है। कान्होजी ने यूरोप की समंदर बादशाहत को तोड़ा। उनकी वीरता ने दिखाया कि बलिदान से ही स्वतंत्रता की राह बनती है। आज हम उनके बलिदान को नमन करते हैं और हिंदू स्वाभिमान को जीवित रखने का संकल्प लेते हैं।