4 जुलाई: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर नमन, हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति के अमर रक्षक की गाथा

जिस महान व्यक्तित्व की आज 4 जुलाई को पुण्यतिथि है, वे अपने विचारों में जीवंत हैं। स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने हिंदुत्व को नई दिशा दी, आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं। उन्होंने कहा, ‘एक हिंदू का धर्मान्तरण केवल एक हिंदू का कम होना नहीं, बल्कि एक शत्रु का बढ़ना है।’ मजहबी आक्रमण के खिलाफ निर्भीक खड़े होकर उन्होंने पश्चिम को बताया कि हिंदू धर्म और दर्शन ही मनुष्यता का पाठ सिखा सकता है।

हिंदू संस्कृति की रक्षा का संकल्प

19वीं सदी में भारत गुलामी और अज्ञानता से जूझ रहा था। पश्चिमी मिशनरियों ने हिंदू धर्मांतरण की कोशिशें तेज कीं। स्वामी विवेकानंद ने हिंदू समाज को एकजुट करने का बीड़ा उठाया, क्योंकि वे जानते थे कि आंतरिक शक्ति ही बाहरी चुनौतियों का जवाब है। उन्होंने धर्मांतरण के खतरे को गंभीरता से लिया और ‘एक हिंदू का धर्मान्तरण एक शत्रु का बढ़ना है’ कहकर समाज को सचेत किया। उनका मानना था, ‘शक्ति ही जीवन है, निर्बलता मृत्यु है,’ जो हिंदू अस्मिता को मजबूत करने का आधार बना। इसके लिए उन्होंने ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान भी शुरू किए।

वैचारिक युद्ध और वैश्विक प्रभाव

विवेकानंद ने पश्चिमी मिशनरियों और आलोचकों से डटकर मुकाबला किया। ‘ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका’ के उद्घोष से उन्होंने अमेरिका और यूरोप में हिंदू दर्शन का डंका बजाया। वेदांत और योग के प्रचार से उन्होंने पश्चिमी सोच को प्रभावित किया। उन्होंने कहा, ‘जो अपने को कमजोर समझता है, वही पतन को प्राप्त होता है,’ जो हिंदू समाज को आत्मविश्वास से भरने वाला था। 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना ने शिक्षा और सेवा के जरिए भारतीय संस्कृति को नई दिशा दी। उनकी शिक्षाओं ने विश्वभर के युवाओं को भी प्रेरित किया।

रणनीति और संगठन की शक्ति

विवेकानंद की सफलता का आधार उनकी दूरदर्शिता था। उन्होंने युवाओं को एकजुट किया और आध्यात्मिकता को आधुनिकता से जोड़ा। ‘कर्म योग’ और ‘राज योग’ जैसी रचनाओं ने समाज में उत्साह भरा। मठों और मिशनों के जरिए उन्होंने हिंदू संस्कृति का प्रसार बढ़ाया। उनका दृढ़ विश्वास था, ‘सेवा ही सच्चा धर्म है,’ जो हिंदू समाज के लिए बल प्रदान करता है। उन्होंने गरीबों के लिए स्कूल भी स्थापित किए।

इतिहास का दमन

वामपंथी विचारकों ने विवेकानंद की विरासत को कम आंका। उनकी हिंदू अस्मिता की बातों को नजरअंदाज किया गया। धर्मांतरण के खिलाफ उनकी आवाज को दबाने की कोशिश हुई। वामपंथी इतिहासकारों ने उनकी उपलब्धियों को हाशिए पर रखा, पर उनकी शिक्षाएं आज भी हिंदू समाज का सहारा हैं। उनकी पुस्तकों को भी पढ़ने से रोका गया था।

अमर विरासत

स्वामी विवेकानंद की गाथा आज भी भारत की धरती पर गूंजती है। बेलूर मठ उनकी स्मृति का प्रतीक बना है। हर साल 4 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि पर स्मृति सभाएं आयोजित होती हैं। उनकी उक्ति ‘उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य न मिल जाए’ स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करती रही। उनकी विचारधारा आज भी राष्ट्रीय एकता का आधार है।

उनकी मृत्यु 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को हुई, पर उनका प्रभाव शाश्वत है। हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति के इस रक्षक ने विचारों की ताकत दिखाई। आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हैं और हिंदू अस्मिता को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लेते हैं। उनकी गाथा हमें सिखाती है कि त्याग से ही समाज प्रगति करता है।

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