रानी दुर्गावती का नाम हिंदू वीरता का निशान है। 1524 में कालिंजर में चंदेल राजवंश में पैदा हुईं, वे गोंडवाना की रानी बनीं। उनके पति दलपत शाह की मौत के बाद उन्होंने अपने छोटे बेटे विर नारायण के लिए राज संभाला। 1564 में मुगलों से लड़ा गया उनका युद्ध गंगा क्षेत्र के पास गूंजा। 5 जुलाई 2025 को उनकी वीरता को याद करते हुए हम उन्हें सलाम करते हैं। उनकी समझ और हिम्मत ने हिंदू स्वाभिमान को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
हिंदू स्वाभिमान की रक्षा
16वीं सदी में भारत पर मुगल हमले बढ़ गए थे। अकबर की सेनाओं ने गोंडवाना पर कब्जा करने की कोशिश की। रानी दुर्गावती ने अपने राज्य और हिंदू संस्कृति की हिफाजत का फैसला लिया। 1564 में नरई और डिमनी के जंगलों में उन्होंने मुगल सेना से भिड़ंत की। बचपन से तीरंदाजी और घुड़सवारी में माहिर, उन्होंने खुद मोर्चा संभाला। उनका यकीन था कि हिंदू अस्मिता को बचाना जरूरी है। यह युद्ध गंगा क्षेत्र के पास लड़ा गया, जहां शौर्यगान गूंजा।
वीरता का मुकाबला
रानी दुर्गावती ने मुगल सत्ता से टक्कर ली। उनकी सेना छोटी थी, पर उनका हौसला मजबूत था। उन्होंने हाथी पर चढ़कर मोर्चा संभाला और मुगलों को हैरान कर दिया। बचपन से तलवारबाजी में निपुण, वे युद्ध के मैदान में एक मिसाल थीं। इससे पहले भी उन्होंने छोटे-छोटे झगड़ों में अपनी वीरता दिखाई थी, जैसे कि स्थानीय बागियों को शांत करना। 24 जून 1564 को नरई के युद्ध में मुगल सेनापति आसफ खान के खिलाफ उन्होंने मोर्चा लिया।
घायल होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सैनिकों को हिम्मत दी। उनके हाथ में तलवार लिए मुगल सैनिकों ने डरना शुरू कर दिया था। उनके वीर सैनिकों ने हर कदम पर मुगल हमले रोके और रणभूमि में शौर्य दिखाया। रानी ने अपने घावों की चिंता न करते हुए मुगल अफसर को चुनौती दी, जो उनकी अटल हिम्मत का निशान था। यह युद्ध हिंदू वीरता का प्रतीक बना और औरतों के लिए भी प्रेरणा बना।
रणनीति और पराक्रम
रानी की जीत का राज उनकी होशियारी था। उन्होंने जंगलों का फायदा उठाया और छिपकर हमले की योजना बनाई। उनके सैनिकों ने मुगल सेना को घेरकर मारा। शासन के दौरान उन्होंने खेती और पानी की व्यवस्था को बढ़ाया, जो उनकी समझ थी। अपने बेटे विर नारायण को भी युद्ध में शामिल किया, जो उनकी ताकत का हिस्सा था। उनका नारा था, ‘धर्म की रक्षा के लिए प्राण देने को तैयार हूँ।’ यह योजना मुगलों को हराने का आधार बनी।
इतिहास का दमन
वामपंथी इतिहासकारों ने रानी की वीरता को कम समझा। उनकी हिंदू अस्मिता की लड़ाई को अनदेखा किया गया। मुगल समर्थक लेखकों ने उनके बलिदान को गलत तरीके से बताया और जीत को अपना कहा। उनकी कहानी को किनारे रखा गया, पर लोगों के दिल में उनकी यादें जिंदा रहीं। उनकी वीरता को दबाना मुमकिन नहीं हुआ।
अमर विरासत
रानी दुर्गावती की कहानी आज भी हिंदुस्तान की धरती पर गूंजती है। 1564 में 24 जून को घायल होने के बाद उन्होंने खुद को कुर्बान कर दिया, पर उनकी वीरता अमर हो गई। उनकी बेटी की शादी से जुड़ी बातें भी प्रेरणा देती हैं। हर साल उनकी याद में कार्यक्रम होते हैं। उनकी कहानी हिंदू स्वाभिमान का आधार है और आजादी की लड़ाई के वीरों को हिम्मत देती रही। आज हम उनकी याद में वादा करते हैं कि सनातन गौरव को बचा कर रखेंगे।
उनका युद्ध हमें सिखाता है कि त्याग और शौर्य से ही जीत संभव है। गंगा की लहरों पर गूंजा उनका शौर्यगान आज भी हिम्मत देता है।