6 जुलाई : जन्मजयंती पर राष्ट्रपुत्र डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को हम याद करते हैं, जिन अमर शहीद के नाम पर हम नारा ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है’ लगाते हैं। उनका जन्म 1901 में कोलकाता में हुआ था। उनकी शिक्षा में गहन प्रवीणता थी और 33 साल की उम्र में वे बंगाल के शिक्षा मंत्री बने।
1951 में उन्होंने जनसंघ बनाया। कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगा दिया। 6 जुलाई 2025 को हम उनकी याद में सलाम करते हैं। उनका बलिदान हिंदू स्वाभिमान और देश की एकता का निशान है। धर्मनिरपेक्ष राजनीति की साजिश में उनकी रहस्यमय मौत हुई, पर उनका हौसला आज भी जिंदा है।
हिंदू स्वाभिमान की रक्षा
1947 में आजादी के बाद भी भारत को कई मुश्किलें झेलनी पड़ीं। कश्मीर में अलगाव और अनुच्छेद 370 ने देश को बांटने की कोशिश की। डॉ. श्यामा प्रसाद ने हिंदू स्वाभिमान को बचाने का फैसला लिया। उन्होंने कहा, ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।’ मुस्लिम लीग और नेहरू सरकार की नीतियों के खिलाफ वे डटकर लड़े। उनका मकसद था कि हिंदू अस्मिता को मजबूत करना।
वीरता का मुकाबला
डॉ. श्यामा प्रसाद ने कश्मीर की लड़ाई में वीरता दिखाई। 1953 में उन्होंने बिना परमिट कश्मीर में प्रवेश किया। सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल की और अपनी बात मनवाने की कोशिश की। उनकी सेहत खराब होती गई, पर उनका हौसला नहीं टूटा। 23 जून 1953 को उनकी मृत्यु हो गई, पर उनकी आवाज आज भी गूंजती है। यह संघर्ष हिंदू वीरता का निशान बना।
रणनीति और पराक्रम
डॉ. श्यामा प्रसाद की कामयाबी का राज उनकी समझ थी। उन्होंने जनसंघ बनाकर हिंदू विचारों को एकजुट किया। शिक्षा और संस्कृति से उन्होंने युवाओं को जोड़ा। अपने भाषणों में उन्होंने देश की एकता का सपना दिखाया। उन्होंने नेहरू से बहस की और अपनी बात दृढ़ता से रखी। उनका नारा था, ‘एक देश-एक विधान।’ यह सोच ने देश को नई राह दिखाई।
कश्मीर में श्यामा का बलिदान
1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद कश्मीर पहुंचे ताकि धारा 370 को खत्म कर सकें। वे वहां लोगों से मिले और एकता का संदेश दिया। बिना परमिट के प्रवेश करने पर सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। जेल में उनकी सेहत बिगड़ने लगी। उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की, पर उनकी आवाज को दबाया गया। 23 जून 1953 को उनकी रहस्यमय मौत हो गई। कुछ कहते हैं कि उन्हें जहर दिया गया, पर सच आज भी छिपा है। कश्मीर में उनका बलिदान हिंदू स्वाभिमान का प्रतीक बना।
अमर विरासत
डॉ. श्यामा प्रसाद की कहानी आज भी हिंदुस्तान में गूंजती है। 1953 में 23 जून को उनकी मृत्यु हुई, पर उनका सपना अमर हो गया। जनसंघ बाद में भाजपा बनी, जो उनकी सोच को आगे बढ़ाती है। हर साल उनकी जन्मजयंती और पुण्यतिथि पर स्मृति सभाएं होती हैं। उनकी बात हिंदू स्वाभिमान का आधार है और राष्ट्रभक्ति सिखाती है। आज हम उनकी याद में वादा करते हैं कि सनातन गौरव को बचा कर रखेंगे।
उनका बलिदान हमें सिखाता है कि देश के लिए त्याग से ही जीत मिलती है। उनकी आवाज आज भी देश को प्रेरणा देती है।