7 जुलाई 2025 को हम कारगिल के शेर कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान दिवस को याद करते हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश में हुआ था। वे भारतीय सेना में शामिल हुए और 1999 के कारगिल युद्ध में वीरता दिखाई। Vikram Batra के ‘यह दिल मांगे मोर’ नारे ने कारगिल में हाई किया था … कारगिल युद्ध के नायक, पराक्रम और प्रण की प्रतिमूर्ति, ‘परमवीर चक्र’ से अलंकृत कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि! परमवीर चक्र से सम्मानित, उनकी शहादत ने देश को गौरवान्वित किया। इस दिन हम उनके हौसले को सलाम करते हैं। ‘जय माता दी’ के साथ उन्होंने अंतिम सांस ली, जो हिंदू शौर्य का प्रतीक बनी।
इस्लामिक आतंक के खिलाफ संघर्ष
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों और इस्लामिक आतंकवादियों ने भारत की सीमा पर हमला बोला। कैप्टन विक्रम बत्रा ने 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के साथ मोर्चा संभाला। उन्होंने दुश्मन के बंकरों को निशाना बनाया। उनके सामने इस्लामिक आतंक की चुनौती थी, पर वे डटकर लड़े। उनका मकसद था कि देश की सीमाओं की रक्षा करना।
वीरता का पराक्रम
कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल की ऊंची चट्टानों पर वीरता दिखाई। 7 जुलाई 1999 को उन्होंने दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्र 5140 को मुक्त कराया। वे अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़े। चोटें लगने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अंतिम क्षणों में उन्होंने ‘जय माता दी’ कहा और शत्रु पर हमला बोला। यह बलिदान हिंदू वीरता का उदाहरण बना।
रणनीति और हिम्मत
कैप्टन बत्रा की सफलता का राज उनकी चतुराई थी। उन्होंने पहाड़ी इलाकों में दुश्मन को घेरने की योजना बनाई। रात के अंधेरे में वे अपने साथियों के साथ चढ़ाई करते। उन्होंने दुश्मन की कमजोरियों को पहचाना और सटीक हमले किए। उनका नारा ‘ये दिल मांगे मोर’ प्रेरणा बना। यह रणनीति ने सेना को जीत दिलाई।
शहादत की गाथा
7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत हुई। वे दुश्मन के बंकर पर कब्जा करने गए थे। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने साथियों को प्रेरित किया। अंतिम शब्द ‘जय माता दी’ के साथ उन्होंने दम तोड़ा। कुछ कहते हैं कि दुश्मन ने उन्हें नजदीक से मारा, पर उनकी वीरता अमर हो गई। कश्मीर की चट्टानों ने उनकी कुर्बानी को गले लगाया।
अमर विरासत
कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी आज भी देश में गूंजती है। 1999 में 7 जुलाई को उनकी शहादत हुई, पर उनका बलिदान अनंत काल तक जिएगा। परमवीर चक्र से सम्मानित, वे युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। ‘ये दिल मांगे मोर’ का उद्घोष करने वाले इस वीर योद्धा का साहस, संकल्प और सर्वोच्च समर्पण हर भारत वासी के लिए एक प्रेरणा है। आज हम वादा करते हैं कि उनके सपनों को साकार करेंगे।
उनका बलिदान हमें सिखाता है कि देश के लिए त्याग से ही विजय मिलती है। उनकी ‘जय माता दी’ की पुकार आज भी देश को प्रेरणा देती है।