बाजीप्रभु देशपांडे मराठा इतिहास के उन वीर योद्धाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपने साहस से एक अमर गाथा रची। पावन खिंड की लड़ाई में उन्होंने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ हजारों मुगल आक्रांताओं का सामना किया, ताकि छत्रपति शिवाजी महाराज को विशालगढ़ तक सुरक्षित पहुँचाया जा सके।
“हर हर महादेव” की गूंज के साथ चली तलवारों ने हिंदू शौर्य का परचम लहराया, जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने सैन्य घटना तक सीमित करने का प्रयास किया। उनका बलिदान मराठा गौरव और हिंदू अस्मिता का आधार बना, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनकी वीरता न केवल युद्ध की, बल्कि धार्मिक निष्ठा और स्वतंत्रता की कहानी कहती है।
विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अडिग प्रतिरोध
17वीं सदी में औरंगजेब के अधीन मुगल सेना ने दक्षिण भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया। सिद्दी जौहर ने पन्हाला किले पर धावा बोलकर शिवाजी को घेर लिया, जिससे उन्हें रणनीतिक पलायन करना पड़ा। इस संकट में बाजीप्रभु देशपांडे ने पावन खिंड में मुट्ठी भर सैनिकों के साथ हजारों म्लेच्छ सैनिकों का सामना किया।
“हर हर महादेव” की हुंकार के साथ उन्होंने मुगल सैनिकों को रोका, जो हिंदू मंदिरों और मराठा स्वतंत्रता की रक्षा का प्रतीक था। यह प्रतिरोध उनके साहस और धार्मिक समर्पण का जीवंत उदाहरण था।
रणनीति का मेधावी प्रदर्शन
बाजीप्रभु ने पावन खिंड की संकरी घाटी का लाभ उठाते हुए अपनी रणनीति को साकार किया। 300 मराठा वीरों ने 30,000 म्लेच्छ सैनिकों का सामना किया, दुश्मन की विशाल सेना को रोकने के लिए सैनिकों को चतुराई से तैनात किया। “हर हर महादेव” की गूंज के साथ तलवारें चलीं, और प्रत्येक योद्धा ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए डटकर मुकाबला किया।
उनकी योजना थी कि शिवाजी को विशालगढ़ तक पहुँचने का समय मिले, जो उन्होंने कुशलता से सुनिश्चित किया। यह शौर्य हिंदू धर्म और मराठा एकता का अनुपम उदाहरण बना, जो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हुआ।
वीरता का ऐतिहासिक बलिदान
पावन खिंड की लड़ाई में बाजीप्रभु का बलिदान मराठा इतिहास का एक अनुपम अध्याय है। उन्होंने अंतिम सांस तक तलवार चलाई; उनके शरीर पर गहरे घाव थे, फिर भी वे अडिग रहे। घायल अवस्था में भी उन्होंने दुश्मनों को रणभूमि में परास्त किया और अपने साथियों को प्रेरित करते रहे। एक-एक सैनिक कटता रहा, पर पीछे नहीं हटा। जब शिवाजी के सुरक्षित पहुँचने की सूचना मिली, उन्होंने शांतिपूर्वक प्राण त्याग दिए। यह बलिदान मराठा स्वराज्य और हिंदू गौरव का प्रतीक बना, जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने ठीक से सराहा नहीं।
सांस्कृतिक गौरव और शाश्वत प्रेरणा
बाजीप्रभु देशपांडे की वीरता मराठा और हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग बनी हुई है। पावन खिंड में बना उनका स्मारक उनकी शहादत को जीवंत रखता है, जहाँ हर वर्ष श्रद्धालु उनके बलिदान को नमन करते हैं। “हर हर महादेव” की गूंज आज भी उनकी वीरता की गवाही देती है, जो हिंदू शौर्य का प्रतीक है।
इतिहासकार उनके बलिदान को स्वराज्य की स्थापना का आधार मानते हैं, पर वामपंथी दृष्टिकोण ने इसे सैन्य कार्रवाई तक सीमित कर उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक भूमिका को कम आंका। उनकी गाथा लोकगीतों और कथाओं में गाई जाती है, जो नई पीढ़ी को ‘शौर्य’ और ‘त्याग’ का पाठ सिखाती है। बाजीप्रभु ने अपने रक्त से इतिहास लिखा और हिंदू गौरव को अक्षुण्ण रखा, जिसे हम आज भी सम्मान के साथ याद करते हैं।