केंद्र सरकार ने भारतीय वायुसेना की शक्ति बढ़ाने के लिए एक बड़े प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। इसके तहत भारत स्वदेशी ‘एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम’ (AWACS) विकसित करेगा। यह प्रणाली एक उड़ता हुआ नियंत्रण केंद्र है, जो दुश्मन के विमानों और उपकरणों को दूर से ही पकड़ सकता है। इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 20,000 करोड़ रुपये है और इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) पूरा करेगा। इस प्रोजेक्ट से भारतीय वायुसेना को छह बड़े AWACS विमान मिलेंगे, जिससे भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा जो ऐसी उन्नत तकनीक रखते हैं।
DRDO भारतीय कंपनियों और एयरबस के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम करेगा। वे एयर इंडिया के A321 विमानों में विशेष एंटीना और आधुनिक उपकरण जोड़ेंगे। विमानों में एक ‘डॉर्सल फिन’ लगाया जाएगा, जो रडार को 360 डिग्री निगरानी की क्षमता देगा। इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में लगभग तीन साल लगेंगे। यह वायुसेना की निगरानी और युद्ध प्रबंधन की ताकत को बढ़ाएगा और भारतीय कंपनियों को जटिल तकनीकों का अनुभव देगा।
AWACS विमान दुश्मन के लड़ाकू विमान, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों को जमीन से पहले ही ट्रैक कर सकते हैं। ये हवाई हमलों को पकड़ने के साथ-साथ युद्ध के दौरान अपने विमानों को निर्देश देने और दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने का काम करते हैं। अभी भारतीय वायुसेना के पास तीन इजरायली ‘फाल्कन’ AWACS और दो स्वदेशी ‘नेत्रा’ AEW&C विमान हैं। फाल्कन सिस्टम में तकनीकी दिक्कतें आती हैं, और नेत्रा विमान छोटे हैं, जिनका रडार 240 डिग्री कवरेज और 250 किमी की रेंज तक सीमित है। नए AWACS 360 डिग्री कवरेज और ज्यादा दूरी तक निगरानी की क्षमता के साथ अधिक शक्तिशाली होंगे।
यह प्रोजेक्ट भारत को स्वदेशी रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल भारत की रक्षा क्षमता बढ़ेगी, बल्कि भविष्य में निर्यात के अवसर भी खुल सकते हैं। DRDO को हाल ही में पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मल्टीरोल कॉम्बैट विमान (AMCA) के प्रोटोटाइप बनाने की भी मंजूरी मिली है। यह पहली बार है जब एयरबस के A321 विमान इस तरह के प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होंगे, जो पहले बोइंग का क्षेत्र था।
पहले भी भारत ने स्वदेशी AWACS बनाने की कोशिश की थी। 2015 में DRDO को दो AWACS के लिए 5,113 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट मिला था, जिसमें एयरबस A330 विमानों का उपयोग होना था, लेकिन वह प्रोजेक्ट देरी से चला। 2020 में 10,990 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट में छह A320 विमानों पर रडार लगाने की योजना थी, जो पूरी तरह लागू नहीं हुई। यह नया प्रोजेक्ट पुरानी योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने की दिशा में एक कदम है।