नागभट्ट प्रथम: अरब आक्रमण को पराजित करने वाला गुर्जर योद्धा, जिसे वामपंथी इतिहास ने भुला दिया

नागभट्ट प्रथम, एक ऐसा नाम जो हिंदू इतिहास में वीरता का पर्याय है, लेकिन दुर्भाग्यवश वामपंथी इतिहासकारों की साजिश के कारण अंधेरे में धकेल दिया गया। 8वीं सदी में गुर्जर-प्रतिहार वंश के इस योद्धा ने अरब आक्रमण को पराजित कर हिंदू गौरव की रक्षा की थी। उनका शासन 725 से 740 ईस्वी के आसपास रहा, जब उन्होंने सिन्ध और पश्चिमी भारत को इस्लामी आक्रांताओं से बचाया।

फिर भी, वामपंथी इतिहास लेखन ने उनकी उपलब्धियों को नजरअंदाज कर हिंदू शौर्य को कमजोर करने की कोशिश की। यह लेख नागभट्ट प्रथम की वीरता को उजागर करता है और उस अन्याय को सामने लाता है, जो वामपंथी इतिहास ने उनके साथ किया।

प्रारंभिक जीवन: गुर्जर शक्ति का आधार

नागभट्ट प्रथम का जन्म गुर्जर समुदाय में हुआ, जो उस समय मालवा और राजस्थान के क्षेत्रों में शक्ति का केंद्र था। गुर्जर-प्रतिहार वंश के संस्थापक के रूप में, उन्होंने अपने पिता नागादित्य की विरासत को आगे बढ़ाया और एक मजबूत सेना का निर्माण किया। उनकी शिक्षा युद्ध कला और राज्य प्रशासन में थी, जो उन्हें एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार बनाती थी।

इस दौरान अरब सेनाएँ, जो सिन्ध पर कब्जे के बाद भारत के भीतरी इलाकों में बढ़ रही थीं, उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गईं। नागभट्ट ने धर्म और मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिया, जो बाद में उनकी वीरता की नींव बना। वामपंथी इतिहासकारों ने इस पृष्ठभूमि को जानबूझकर कम करके आंका, ताकि हिंदू प्रतिरोध की कहानी दब जाए।

अरब आक्रमण को पराजित: शौर्य की अमर गाथा

730 ईस्वी के आसपास, अरब सेनाओं ने गुर्जर क्षेत्रों पर हमला किया, जो उमय्यद खलीफा के विस्तार का हिस्सा था। नागभट्ट प्रथम ने इस चुनौती को ललकारा और अपनी सेना के साथ मैदान में उतरे। मालवा के मैदानों में हुए इस युद्ध में उन्होंने अरब सेनाओं को करारी शिकस्त दी, जिससे इस्लामी विस्तार रुक गया।

इतिहासकारों के अनुसार, उनकी रणनीति और साहस ने दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर किया। यह जीत न सिर्फ सैन्य सफलता थी, बल्कि हिंदू संस्कृति और धर्म की रक्षा का प्रतीक बनी। फिर भी, वामपंथी इतिहासकारों ने इस घटना को हाशिए पर रखा, ताकि हिंदू वीरों की उपलब्धियों को कमतर दिखाया जा सके। नागभट्ट की यह गाथा आज भी हमें प्रेरित करती है।

वामपंथी इतिहास का अन्याय: हिंदू गौरव का दमन

नागभट्ट प्रथम की वीरता को भुलाने की कोशिश वामपंथी इतिहासकारों की एक सुनियोजित साजिश थी। इन लेखकों ने हिंदू शासकों की उपलब्धियों को कम करके आंका और इस्लामी आक्रांताओं को अधिक महत्व दिया। नागभट्ट की जीत को गौण बताकर, उन्होंने हिंदू प्रतिरोध की कहानी को दबाने का प्रयास किया।

यह दृष्टिकोण हिंदू गौरव को कमजोर करने और वामपंथी विचारधारा को थोपने का हिस्सा था। परिणामस्वरूप, स्कूलों और किताबों में नागभट्ट का नाम गायब हो गया, जबकि उनकी जीत ने भारत को सैकड़ों साल तक सुरक्षित रखा। यह अन्याय आज भी हिंदू समाज के लिए एक चेतावनी है कि अपनी विरासत को संजोए रखना जरूरी है।

विरासत: सनातन शौर्य का प्रतीक

नागभट्ट प्रथम की शौर्य गाथा ने गुर्जर-प्रतिहार वंश को मजबूती दी, जिसने बाद में भी अरब और अन्य आक्रमणों का सामना किया। उनकी जीत ने हिंदू संस्कृति को बचाया और सनातन शौर्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। हालांकि वामपंथी इतिहास ने उन्हें भुलाने की कोशिश की, लोक कथाओं और परंपराओं में उनकी वीरता जीवित रही।

आज भी राजस्थान और मालवा के लोग उनके बलिदान को याद करते हैं। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि हिंदू वीरों की कहानियों को वामपंथी दृष्टिकोण से मुक्त कराकर सही सम्मान देना चाहिए। यह सनातन शौर्य का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

वीरता का सम्मान

नागभट्ट प्रथम, अरब आक्रमण को पराजित करने वाला गुर्जर योद्धा, हिंदू इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, जिसे वामपंथी इतिहास ने भुला दिया। उनकी वीरता ने भारत को इस्लामी विस्तार से बचाया, लेकिन उनकी कहानी को दबाकर हिंदू शौर्य को नुकसान पहुँचाया गया।

आज हमें उनकी महान गाथा को पुनर्जीवित करना होगा, ताकि सच्चाई सामने आए और हिंदू गौरव को उसका हक मिले। आइए, उनके बलिदान को नमन करें और वामपंथी इतिहास की जंजीरों से मुक्त होकर अपनी विरासत को गर्व से अपनाएँ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top