16 अगस्त, 1946 की सुबह सामान्य थी, लेकिन दोपहर तक माहौल तनावपूर्ण हो गया। बाहर से ट्रकों में मुसलमानों की भीड़ आने लगी, और लोगों को समझ नहीं आया कि अचानक शहर में इतनी हलचल क्यों है। दोपहर की नमाज के बाद दंगे भड़क उठे, जो चार दिन तक चले। कलकत्ता की गलियां, सड़कें और दीवारें खून से लाल हो गईं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि कुछ अनुमानों में यह संख्या 20,000 तक पहुंच सकती है। करीब 1 लाख लोग बेघर हो गए। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग के नाम से जाना जाता है, जो आज फिर चर्चा में है। फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने इस घटना पर ‘द बंगाल फाइल्स’ फिल्म बनाई है, जो 5 सितंबर को रिलीज होने से पहले ही विवादों में है। आइए, जानते हैं उस दर्दनाक दौर की कहानी।
‘द बंगाल फाइल्स’ कलकत्ता की हिंसा की कहानी बयान करती है। शुरुआत में इसका नाम ‘द डेल्ही फाइल्स’ था, लेकिन यह 1940 के दशक में बंगाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर केंद्रित है। फिल्म ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स (डायरेक्ट एक्शन डे) और नोआखली दंगों को दिखाएगी।
16 अगस्त, 1946 को कलकत्ता में दंगे अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के आह्वान से शुरू हुए थे। यह मांग अलग मुस्लिम देश की थी, जिसके बाद भयानक हिंसा हुई। मुख्य निशाना हिंदू समुदाय था। चार दिन तक चले इन दंगों में करीब 10,000 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
यह कहानी 1940 में शुरू होती है, जब मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग उठाई। उस वक्त भारत की संविधान सभा में मुस्लिम लीग और कांग्रेस प्रमुख दल थे। 1946 में कैबिनेट मिशन ने सत्ता हस्तांतरण की योजना पेश की, लेकिन कांग्रेस ने इसे ठुकरा दिया। दूसरी ओर, मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ घोषित कर अलग देश की जिद पकड़ ली।
जिन्ना का असली इरादा क्या था? स्वतंत्रता से पहले मुस्लिम लीग की ‘सीधी कार्यवाही’ ने 16 अगस्त, 1946 को कलकत्ता में हिंसक दंगे भड़का दिए। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग कहा गया। जिन्ना ने कहा था, “मुझे दो रास्ते दिखते हैं—या तो भारत बंटेगा, या नष्ट होगा।” यह अभियान पाकिस्तान की मांग को जल्द पूरा करने के लिए था, जिसने भयानक नरसंहार को जन्म दिया।