20 अगस्त: लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह – अशोक चक्र विजेता, जिसने 4 इस्लामिक आतंकियों को ढेर कर अमरता पाई

20 अगस्त 2025 को, हम भारत माता के उस परम बलिदानी, लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को याद करते हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ा और अमरता प्राप्त की। महज 26 साल की उम्र में, जहाँ अन्य युवाओं के मन में हसीं सपने होते हैं, नवदीप सिंह की आँखों में देशभक्ति के अंगारे सुलग रहे थे। उनका जन्म 8 जून 1985 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ, जहाँ उन्हें एक सैनिक परिवार की विरासत मिली। उनके पिता, सूबेदार मेजर जोगिंदर सिंह, स्वयं भारतीय सेना में 30 साल तक सेवा दे चुके थे और सम्मानजनक कप्तानी के पद से सेवानिवृत्त हुए।

उनकी माता, श्रीमती जगतिंदर कौर, एक गृहणी थीं, जिन्होंने घर में देशभक्ति की भावना को जीवित रखा। नवदीप का परिवार तीसरी पीढ़ी तक सेना की सेवा में था, और यह विरासत उनके खून में बसी थी।

नवदीप ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आर्मी पब्लिक स्कूल, टिबरी से पूरी की और बाद में होटल मैनेजमेंट में बीएससी की डिग्री हासिल की। उनकी बुद्धिमत्ता और लगन ने उन्हें आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता से एमबीए करने का मौका दिया। लेकिन कॉर्पोरेट दुनिया की चकाचौंध ने उन्हें आकर्षित नहीं किया। उनके दिल में वही आग थी जो उनके पूर्वजों में थी—देश की सेवा।

2010 में, वे ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई से कमीशन लेकर भारतीय सेना में शामिल हुए और आर्मी ऑर्डनेंस कोर में शामिल हुए। उनकी पहली तैनाती 15 मराठा लाइट इन्फेंट्री के साथ जम्मू-कश्मीर में हुई, जहाँ उन्हें घातक प्लाटून (घाटक प्लाटून) का कमांडर बनाया गया। यह उनकी जिंदगी का वह मोड़ था, जहाँ से उनकी वीरता की कहानी शुरू हुई।

शौर्य का परचम: गुरेज सेक्टर की मुठभेड़

20 अगस्त 2011 की रात, लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह जम्मू-कश्मीर के कन्जालवान सब सेक्टर में अपनी प्लाटून के साथ तैनात थे। यह क्षेत्र गुरेज सेक्टर में आता है, जो लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के पास स्थित है और आतंकवादी घुसपैठ के लिए कुख्यात रहा है। रात के सन्नाटे में, जब देश सो रहा था, नवदीप को खुफिया जानकारी मिली कि 17 हथियारबंद इस्लामिक आतंकवादी किशनगंगा नदी के रास्ते घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं।

ये आतंकवादी पूरी तरह प्रशिक्षित थे, उनके पास अत्याधुनिक हथियार और संचार उपकरण थे, जो उन्हें खतरनाक बनाते थे। नवदीप ने तुरंत कमान संभाली। उन्होंने अपनी प्लाटून को रणनीति से तैयार किया और घात लगाकर दुश्मन का इंतजार किया।

नवदीप का आदेश साफ था—फायरिंग तभी शुरू होगी जब आतंकवादी पूरी तरह उनके कब्जे में हों। यह उनकी बुद्धिमत्ता और धैर्य का प्रमाण था। जब आतंकवादी महज 5-10 मीटर की दूरी पर पहुँचे, उन्होंने मोर्चा संभाला। गोलीबारी शुरू हुई, और नवदीप ने पहले तीन आतंकियों को मौत के घाट उतारा। उनकी सटीक निशानेबाजी और हिम्मत ने दुश्मन को सकते में डाल दिया। लेकिन युद्ध का मैदान अनिश्चितताओं से भरा होता है। इसी दौरान, एक ग्रेनेड विस्फोट में उनके साथी, सिपाही विजय गजरे, घायल हो गए। नवदीप ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने साथी को सुरक्षित स्थान पर खींचने की कोशिश की। इसी बीच, एक गोली उनके सिर में लगी।

जख्मी होने के बावजूद, नवदीप ने हार नहीं मानी। वे चट्टान की तरह डटे रहे और चौथे आतंकी को भी ढेर कर दिया। उनकी प्लाटून के सैनिक उनके अदम्य साहस से प्रेरित हुए और बाकी बचे 12 आतंकवादियों को भी मार गिराया। यह मुठभेड़ महज 8 मिनट चली, लेकिन इन 8 मिनटों में नवदीप ने इतिहास रच दिया। उन्हें हेलीकॉप्टर से श्रीनगर के 92 बेस हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही उन्होंने वीरगति प्राप्त कर ली। उनकी शहादत ने न केवल आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब दिया, बल्कि पूरे देश को गर्व से भर दिया।

अमर गाथा: अशोक चक्र का सम्मान

लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह का बलिदान भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया। उनकी वीरता को देखते हुए, उन्हें मरणोपरांत भारत के शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता सम्मान, अशोक चक्र, से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 2012 को, 63वें गणतंत्र दिवस पर, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उनके पिता, माननीय कप्तान (सेवानिवृत्त) जोगिंदर सिंह को यह सम्मान प्रदान किया। यह सम्मान केवल एक पदक नहीं, बल्कि एक वीर सपूत की कुर्बानी का प्रतीक था। नवदीप की माँ, श्रीमती जगतिंदर कौर, और परिवार ने इस दुखद क्षण में भी गर्व से सिर ऊँचा रखा, क्योंकि उनका बेटा भारत माता का असली सपूत था।

नवदीप की शहादत के बाद, उनका पार्थिव शरीर गुरदासपुर लाया गया, जहाँ पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़े, और “नवदीप सिंह अमर रहे” के नारे गूंज उठे। इस घटना ने पूरे देश में एक नई जागरूकता पैदा की—कि हमारे जवान किस कदर अपने प्राणों की आहुति देते हैं। उनकी कहानी आज भी सेना के जवानों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी बहादुरी ने यह साबित कर दिया कि हिंदू शौर्य और देशभक्ति की भावना कभी कमजोर नहीं पड़ती।

विरासत और प्रेरणा: एक संकल्प

20 अगस्त 2025 को, उनके बलिदान दिवस पर, सुदर्शन न्यूज़ परिवार लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को बार-बार नमन, वंदन, और अभिनंदन करता है। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि जब देश की एकता और अखंडता पर खतरा मंडराता है, तो हमारे जवान बिना हिचकिचाहट अपनी जान न्योछावर कर देते हैं। आज के समय में, जब कुछ लोग सेना पर सवाल उठाते हैं और पत्थरबाजों को मासूम कहते हैं, नवदीप की वीरता हमें सच का आईना दिखाती है। यह समय है कि हम अपने वास्तविक इतिहास को जन-जन तक पहुँचाएँ और इन गौरव गाथाओं को जीवित रखें।

नवदीप सिंह की याद में, उनके परिवार ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। उनके पिता और माँ ने कई युवाओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन दिया, और उनकी कहानी आज भी गुरदासपुर में प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शहादत ने यह संदेश दिया कि देश के लिए मरना ही असली जीत है। सुदर्शन न्यूज़ इस संकल्प को दोहराता है कि वे बिना खड्ग-बिना ढाल के झूठे गीतों पर सत्यता की मुहर लगाएंगे और हर दिन इन वीरों की गाथाओं को उठाएंगे। लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह अमर रहें, और जय हिंद की सेना का नारा हमेशा गूंजे!

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