दुर्गादास राठौड़, एक महान हिंदू योद्धा, जिन्होंने औरंगजेब की हत्यारी फौज का वध कर मारवाड़ की पवित्र भूमि में दफनाया, भारतीय इतिहास में शौर्य और बलिदान का प्रतीक हैं। उनका जीवन मुगल अत्याचारों के खिलाफ एक अजेय संकल्प था, जो हिंदू गौरव और राजपूत वीरता को दर्शाता है। यह लेख उनके साहस, मारवाड़ की रक्षा, और औरंगजेब के खिलाफ उनकी विजय को उजागर करता है, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
दुर्गादास का जन्म 1638 में नागौर, मारवाड़ में एक राठौड़ राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता, आसकरण राठौड़, जोसिंहपुर के ठाकुर थे, जिन्होंने उन्हें युद्धकला और नेतृत्व की शिक्षा दी। युवा दुर्गादास ने अपने कौशल से जल्दी ही नाम कमाया और मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह के विश्वासपात्र बने। 1678 में जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, औरंगजेब ने मारवाड़ पर कब्जे की कोशिश की, लेकिन दुर्गादास ने इसका डटकर विरोध किया। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था, जो उन्हें महान योद्धा बनाया।
औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष
औरंगजेब की हत्यारी फौज, जो मारवाड़ की स्वतंत्रता को कुचलने आई, दुर्गादास के सामने टिक नहीं सकी। उन्होंने अपनी छोटी लेकिन साहसी सेना के साथ मुगल सैनिकों को हराया। 1679 में उन्होंने जसवंत सिंह के उत्तराधिकारी, 15 वर्षीय अजीत सिंह को बचाकर मारवाड़ की रक्षा की। औरंगजेब ने भारी संख्या में सैनिक भेजे, लेकिन दुर्गादास ने गुप्त रणनीति और स्थानीय भूगोल का फायदा उठाकर उन्हें परास्त किया। उनकी सबसे बड़ी जीत जालौर और सोजत की लड़ाइयों में हुई, जहाँ उन्होंने मुगल फौज का वध कर उनकी लाशों को मारवाड़ की पवित्र भूमि में दफनाया। यह कदम हिंदू गौरव और मुगल विरोध का प्रतीक बना।
मारवाड़, जो राजपूताना की हृदयस्थली है, दुर्गादास के लिए केवल एक क्षेत्र नहीं था, बल्कि उनकी पहचान और धर्म की रक्षा का आधार था। उन्होंने मंदिरों और गौशालाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की, जो मुगल आक्रमणों से खतरे में थीं। उनकी सेना ने ग्रामीणों के साथ मिलकर गायों और धार्मिक स्थलों की रक्षा की, जो हिंदू संस्कृति के संरक्षण का हिस्सा थी। यह प्रयास मारवाड़ को पवित्र भूमि के रूप में स्थापित करता है, जहाँ दुर्गादास ने मुगल शक्ति को दफनाया।
रणनीति और बलिदान
दुर्गादास की रणनीति अद्भुत थी। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों और रेगिस्तानी इलाकों का उपयोग कर मुगल सेना को भ्रमित किया। उनकी गुप्त छापामार तकनीक ने औरंगजेब को परेशान किया, जिससे मुगल शासक को बार-बार अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। उनकी सेना, जिसमें राजपूत योद्धा और स्थानीय लोग शामिल थे, ने एकजुट होकर मुगल फौज का सामना किया। मुगल अत्याचारों के खिलाफ यह संघर्ष आसान नहीं था। औरंगजेब ने भारी सैन्य बल, धन, और जासूसी का उपयोग किया, लेकिन दुर्गादास ने हार नहीं मानी। उनकी सेना में संसाधनों की कमी थी, और कई योद्धा शहीद हुए, फिर भी उनका समर्पण अडिग रहा। 1681 में उन्होंने अजीत सिंह को सुरक्षित मेवाड़ पहुंचाया, जहाँ राजा राजसिंह ने उनकी मदद की। यह बलिदान और दृढ़ता ने मारवाड़ की स्वतंत्रता को जीवित रखा।
दुर्गादास की विजय का प्रभाव गहरा था। उन्होंने औरंगजेब की शक्ति को चुनौती दी, जिसने मुगल साम्राज्य की कमजोरी को उजागर किया। मारवाड़ में उनकी जीत ने राजपूत एकता को मजबूत किया और हिंदू समुदाय में गर्व की भावना पैदा की। उनकी कहानियाँ पीढ़ियों से कथाओं और गीतों में गाई जाती हैं, जो उनकी अमरता को दर्शाती हैं। आज भी उनका सम्मान किया जाता है। राजस्थान में उनके नाम पर मेलों और स्मारकों का आयोजन होता है। स्कूलों में उनकी वीरता की कहानियाँ बच्चों को प्रेरित करती हैं, और मंदिरों में उनकी याद में प्रार्थनाएँ होती हैं। यह सम्मान हिंदू गौरव और राजपूत शौर्य का प्रतीक है।
अमर योद्धा
दुर्गादास राठौड़ का जीवन एक महान हिंदू योद्धा का उदाहरण है, जिन्होंने औरंगजेब की हत्यारी फौज का वध कर मारवाड़ की पवित्र भूमि में दफनाया। उनका साहस, बलिदान, और मारवाड़ की रक्षा का संकल्प देश की एकता और गौरव का प्रतीक है