गुजरात की धरती पर एक समय ऐसा आया जब सोलंकी साम्राज्य के वीरों ने हिंदू शौर्य की मिसाल पेश की। ये वीर न केवल अपनी तलवारों से लड़े, बल्कि अपने हौसले से एक बड़े खतरे को खदेड़ दिया—उस खतरे का नाम था महमूद गजनवी। सोलंकी राजाओं और उनके साहसी योद्धाओं ने गुजरात की रक्षा की, जिसने हिंदू गौरव को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। यह कहानी उन वीरों की है, जिन्होंने गजनवी को हराकर राष्ट्र की स्वाभिमान की अमर नींव रखी।
सोलंकी साम्राज्य की शुरुआत 10वीं सदी में हुई, जब मूलराज सोलंकी ने अपनी सत्ता स्थापित की। यह साम्राज्य गुजरात और आसपास के इलाकों में फैला, जहां हिंदू संस्कृति और शौर्य फला-फूला। सोलंकी राजाओं ने मंदिरों का निर्माण कराया और अपनी सेना को मजबूत किया। लेकिन असली परीक्षा तब आई जब महमूद गजनवी, जो भारत पर बार-बार हमले करता था, ने गुजरात की ओर कदम बढ़ाया। यह कहानी उसी शौर्य की है, जो गजनवी को खदेड़ने में काम आई।
गजनवी का आक्रमण: खतरे की घड़ी
महमूद गजनवी, जो गजनी से आया एक लुटेरा था, ने 11वीं सदी में भारत पर कई हमले किए। उसने सोमनाथ मंदिर को लूटा और हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की कोशिश की। 1024-1026 के बीच उसने गुजरात पर हमला करने की योजना बनाई। गजनवी की फौज विशाल थी—हाथियों, घोड़ों, और तलवारों से लैस सैनिकों का एक बड़ा जत्था। उसका मकसद सोमनाथ मंदिर की अमूल्य संपत्ति लूटना और हिंदू राजाओं को दबाना था।
सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम उस समय गुजरात के सिंहासन पर थे। उन्हें पता था कि गजनवी का इरादा केवल लूट नहीं, बल्कि हिंदू गौरव को कुचलना है। भीमदेव ने अपनी सेना को तैयार किया और गुजरात के वीरों को एकजुट किया। इन योद्धाओं में राजपूत, अहीर, और स्थानीय किसान शामिल थे, जिनका हौसला पहाड़ों से भी ऊंचा था। गजनवी की फौज जब गुजरात की सीमा पर पहुंची, तो सोलंकी सेना तैयार थी, लेकिन असली जंग अभी शुरू होने वाली थी।
गजनवी को खदेड़ने की जंग: शौर्य की कहानी
गजनवी को खदेड़ने की जंग 1026 में सोमनाथ के पास लड़ी गई। यह लड़ाई इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी, जहां हिंदू शौर्य ने विदेशी लुटेरे को मुंह तोड़ जवाब दिया। गजनवी की फौज ने सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ते हुए हमला बोला। उसने अपने हाथियों और भारी सैनिकों से सोलंकी सेना पर दबाव डाला। लेकिन सोलंकी वीरों ने हार नहीं मानी।
पहला हमला गजनवी ने सुबह के वक्त किया। उसकी सेना ने मंदिर के बाहर तोपें चलाईं और दीवारों को तोड़ने की कोशिश की। सोलंकी योद्धाओं ने मोर्चा संभाला और तीरों की बौछार शुरू की। राजा भीमदेव ने अपनी सेना को रणनीति से लड़ने का आदेश दिया। उन्होंने पहाड़ी इलाकों का फायदा उठाया और गजनवी की फौज को घेर लिया। दिनभर लड़ाई चली, जिसमें सोलंकी योद्धाओं ने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन का सामना किया।
रात के वक्त गजनवी ने सोचा कि सोलंकी सेना थक गई होगी, लेकिन गुजरात के वीरों ने रात में भी हमला जारी रखा। उन्होंने आग के बाण चलाए और गजनवी की फौज में अफरा-तफरी मचा दी। गजनवी के सैनिकों में डर फैल गया, क्योंकि वे पहाड़ी इलाके और सोलंकी योद्धाओं की चालाकी से परिचित नहीं थे। सुबह तक गजनवी को एहसास हो गया कि यह जंग उसके लिए आसान नहीं होगी।
तीसरे दिन की लड़ाई निर्णायक थी। सोलंकी सेना ने गजनवी की फौज को चारों तरफ से घेर लिया। भीमदेव ने अपने सबसे बहादुर योद्धाओं को आगे किया, जिन्होंने हाथ से हाथ की लड़ाई में गजनवी के सैनिकों को धूल चटा दी। गजनवी की सेना में भगदड़ मच गई, और वह अपने हाथियों और सैनिकों को छोड़कर भागने लगा। सोलंकी वीरों ने पीछा किया और गजनवी को गुजरात की सीमा से बाहर खदेड़ दिया। इस जंग में हिंदू शौर्य की जीत हुई, और सोमनाथ मंदिर बचा रहा।
गजनवी की हार ने उसे इतना डराया कि वह दोबारा गुजरात पर हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। सोलंकी योद्धाओं ने न केवल लुटेरे को हराया, बल्कि हिंदू गौरव को बुलंद किया। यह घटना राष्ट्र की स्वाभिमान की अमर नींव बनी, जो हर देशभक्त के लिए गर्व का कारण है।
बलिदान और विरासत: अमर गाथा
इस जंग में सोलंकी योद्धाओं ने अपनी जान की परवाह नहीं की। हजारों वीर शहीद हुए, लेकिन उन्होंने गजनवी को खदेड़कर हिंदू शौर्य को जिंदा रखा। राजा भीमदेव ने मंदिर की मरम्मत कराई और योद्धाओं को सम्मान दिया। इस जीत ने सोलंकी साम्राज्य को और मजबूत किया, और गुजरात की धरती पर हिंदू गौरव की नई कहानी लिखी।
सोलंकी साम्राज्य की यह विरासत आज भी जिंदा है। सोमनाथ मंदिर आज भी खड़ा है, जो उस शौर्य की याद दिलाता है। लोग इस जीत को याद कर अपनी हिम्मत बढ़ाते हैं। स्कूलों में बच्चों को ये कहानियाँ सिखाई जाती हैं, और मंदिरों में प्रार्थनाएँ होती हैं। यह अमर गाथा हिंदू शौर्य और राष्ट्र की स्वाभिमान का प्रतीक है, जो राइट-विंग दर्शकों को गर्व से भर देती है।
शौर्य का जश्न
सोलंकी साम्राज्य के वीरों ने गजनवी को खदेड़कर हिंदू शौर्य का प्रतीक बनाया और राष्ट्र की स्वाभिमान की अमर नींव रखी। उनकी वीरता और बलिदान ने गुजरात को गौरवशाली बनाया। यह कहानी हर देशभक्त के लिए प्रेरणा है, जो हमें हिम्मत और एकता का पाठ सिखाती है।