7 अक्टूबर: क्रांति पुत्री दुर्गा भाभी की जन्मजयंती — जिन्होंने हेली और टेलर जैसे क्रूर अंग्रेजों को गोली मारी, चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह की प्रेरणा बनीं

7 अक्टूबर का दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह क्रांति पुत्री दुर्गा भाभी की जन्मजयंती है। वह वीरांगना जिन्होंने हेली और टेलर जैसे क्रूर अंग्रेजों को गोली मारी और चंद्रशेखर आज़ाद व भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की प्रेरणा बनीं। उनका जीवन साहस, बलिदान, और देशभक्ति की मिसाल है, जो हर हिंदू और देशभक्त के लिए गर्व का स्रोत है। यह लेख उनकी जिंदगी, उनके क्रांतिकारी कार्यों, और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को विस्तार से बताएगा, जो हिंदू गौरव और राष्ट्र की आजादी की नींव रखता है।

दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम दुर्गावती देवी था, लेकिन क्रांति के मैदान में वे “दुर्गा भाभी” के नाम से अमर हो गईं। बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति का जज्बा था, और उन्होंने अपने पति भगवती चरण वर्मा के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका जीवन न केवल एक क्रांतिकारी का था, बल्कि एक ऐसी मां और पत्नी का भी, जिन्होंने परिवार को त्यागकर मातृभूमि की सेवा को प्राथमिकता दी।

शुरुआती जीवन: देशभक्ति की नींव

दुर्गा भाभी का जन्म एक शिक्षित परिवार में हुआ, जहाँ उन्हें संस्कृत और हिंदी का ज्ञान मिला। उनके पिता एक शिक्षक थे, जिन्होंने उन्हें साहस और नैतिकता का पाठ पढ़ाया। 16 साल की उम्र में उनका विवाह भगवती चरण वर्मा से हुआ, जो पहले से ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़े थे। यह विवाह उनके जीवन का वह मोड़ था, जिसने उन्हें क्रांति की राह पर ले गया। भगवती चरण वर्मा ने दुर्गा को स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ सुनाईं, और जल्द ही वह भी इस आंदोलन का हिस्सा बन गईं।

1920 के दशक में, जब अंग्रेजों का शासन अपने चरम पर था, दुर्गा भाभी ने अपने घर को क्रांतिकारियों की शरणस्थली बना दिया। वे हथियार छिपातीं, साजिशें रचतीं, और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ योजना बनातीं। उनका साहस और बुद्धिमत्ता उन्हें अन्य क्रांतिकारियों से अलग करती थी। यह समय था जब उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे नौजवानों से मुलाकात की, जो उनके लिए भाई जैसे थे। इन मुलाकातों ने उनकी क्रांतिकारी सोच को और मजबूत किया।

क्रांतिकारी कार्य: हेली और टेलर को सजा

दुर्गा भाभी का सबसे चर्चित कारनामा 1928 में हुआ, जब उन्होंने हेली और टेलर जैसे क्रूर अंग्रेज अफसरों को सबक सिखाया। जेपी सॉन्डर्स, एक अंग्रेज अधिकारी, जिसने लाला लाजपत राय की मृत्यु के लिए जिम्मेदार था, को भगत सिंह और उनके साथियों ने मार डाला था। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने हेली (लाहौर का पुलिस अधीक्षक) और टेलर (एक अन्य अधिकारी) को भगत सिंह को पकड़ने का जिम्मा सौंपा। ये दोनों अधिकारी क्रूरता के लिए कुख्यात थे और भारतीयों पर अत्याचार करते थे।

13 फरवरी 1928 को, दुर्गा भाभी ने अपनी बुद्धिमत्ता से एक साहसी योजना बनाई। उन्होंने भगत सिंह और राजगुरु को लाहौर में एकत्र किया और अंग्रेजों की निगरानी को चकमा देने के लिए खुद आगे बढ़ीं। एक मां की तरह अपने बेटे को गोद में लेकर, वे ट्रेन में सफर कर रही थीं, जिसमें भगत सिंह और आज़ाद छिपे थे। इस दौरान उन्होंने हेली और टेलर को निशाना बनाया। भगत सिंह ने गोली चलाई, लेकिन दुर्गा भाभी ने स्थिति को संभाला और अंग्रेजों को गुमराह किया। यह घटना न केवल एक सैन्य सफलता थी, बल्कि अंग्रेजों को भारत का प्रतिशोध दिखाने वाला ऐतिहासिक क्षण था।

हेली और टेलर की हत्या की कोशिश में भगत सिंह और उनके साथियों ने सॉन्डर्स को मार डाला, लेकिन दुर्गा भाभी का योगदान इस योजना की रीढ़ था। उन्होंने अंग्रेजों की नाक के नीचे से क्रांतिकारियों को बचाया और अपनी वीरता से देशभर में चर्चा बटोरी। यह घटना स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की शक्ति को दर्शाती है, जो हिंदू गौरव का प्रतीक बनी।

प्रेरणा का स्रोत: चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह

दुर्गा भाभी का प्रभाव चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह पर गहरा पड़ा। वे न केवल उनकी रणनीति में सहायक थीं, बल्कि उनकी भावना और हौसले का आधार भी बनीं। चंद्रशेखर आज़ाद, जो अपनी निर्भीकता के लिए जाने जाते थे, ने दुर्गा भाभी से प्रेरणा लेकर कई हमले प्लान किए। 1929 में दिल्ली में केंद्रीय असेम्बली पर बम फेंकने की घटना में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त शामिल थे, और इस योजना में दुर्गा भाभी ने रसद और रणनीति में मदद की।

भगत सिंह, जो अपनी शहादत से अमर हो गए, ने दुर्गा भाभी को अपनी बड़ी बहन माना। उन्होंने अपने लेखों में लिखा कि दुर्गा भाभी का साहस उन्हें प्रेरित करता था। 1931 में भगत सिंह को फांसी दी गई, लेकिन उनकी शहादत से पहले उन्होंने दुर्गा भाभी को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनकी वीरता की तारीफ की। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी दुर्गा भाभी को अपने दल का हिस्सा बनाया और उनके सुझावों को महत्व दिया। 1931 में आज़ाद की शहादत से पहले उन्होंने दुर्गा भाभी को अपने मिशन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी।

दुर्गा भाभी ने न केवल हथियार उठाए, बल्कि क्रांतिकारियों के लिए धन जुटाया और अंग्रेजों की निगरानी से उन्हें बचाया। उनका घर एक गुप्त केंद्र बना, जहाँ आज़ाद और सिंह योजना बनाते थे। यह प्रेरणा का रिश्ता हिंदू शौर्य और स्वतंत्रता संग्राम की एकता का प्रतीक है।

बलिदान और संघर्ष: अंग्रेजों के खिलाफ जंग

दुर्गा भाभी का जीवन संघर्षों से भरा था। उनके पति भगवती चरण वर्मा को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया, और वे जेल में कष्ट सहते रहे। 1932 में भगवती की मृत्यु हो गई, लेकिन दुर्गा ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने बेटे शचींद्रनाथ को अकेले पाला और क्रांति को जारी रखा। अंग्रेजों ने उनकी संपत्ति जब्त कर ली, और उन्हें कई बार जेल भेजा गया, लेकिन उनका जज्बा अडिग रहा।

1930 के दशक में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए काम करना जारी रखा। वे अंडरग्राउंड हो गईं और देशभर में क्रांतिकारियों को संगठित किया। उनके साहस ने अंग्रेजों को चुनौती दी और भारतीयों में स्वतंत्रता का जुनून जगाया। यह बलिदान हिंदू नारी शक्ति का प्रतीक बना, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा है।

विरासत और सम्मान: स्वतंत्रता का गर्व

दुर्गा भाभी की विरासत आज भी जीवित है। 15 अक्टूबर 1999 को उनकी मृत्यु हुई, लेकिन उनकी यादें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हैं। प्रयागराज में उनका स्मारक बना है, जहाँ हर साल 7 अक्टूबर को जयंती मनाई जाती है। लोग उनके बलिदान को याद करते हैं, और स्कूलों में बच्चों को उनकी कहानियाँ सिखाई जाती हैं। उनकी वीरता हिंदू गौरव का हिस्सा है, जो युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाती है।
स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी को कई सम्मानों से नवाजा गया। 1970 में उन्हें तम्रपत्र और पेंशन दी गई, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और कहा कि उनका इनाम स्वतंत्र भारत है। उनकी जीवनी पुस्तकों में शामिल की गई, और फिल्मों में भी उनके चरित्र को दर्शाया गया। यह सम्मान हर देशभक्त के लिए गर्व का कारण है, जो हमें एकता और बलिदान का पाठ सिखाता है।

शौर्य की जय

7 अक्टूबर क्रांति पुत्री दुर्गा भाभी की जन्मजयंती है, जिन्होंने हेली और टेलर जैसे क्रूर अंग्रेजों को गोली मारी और चंद्रशेखर आज़ाद व भगत सिंह की प्रेरणा बनीं। उनका जीवन और बलिदान राष्ट्र का गौरव है। उनकी वीरता हमें हिम्मत, देशभक्ति, और स्वतंत्रता का पाठ सिखाती है।

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