9 अक्टूबर का दिन ओड़िशा के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है, क्योंकि इस दिन पंडित गोपबंधु दास का जन्म हुआ था। वे उत्कल मणि के नाम से प्रसिद्ध हुए, जो स्वाधीनता संग्राम के योद्धा, राष्ट्रीयता के प्रचारक, और सामाजिक सुधार के प्रतीक बने। उनका जीवन साहस, समर्पण, और देशभक्ति की मिसाल है, जो हर हिंदू और देशभक्त के लिए गर्व का स्रोत है। यह लेख उनके जन्म, उनके क्रांतिकारी कार्यों, और ओड़िशा की स्वतंत्रता में उनके योगदान को विस्तार से बताएगा, जो राष्ट्रीय एकता और हिंदू गौरव को दर्शाता है।
पंडित गोपबंधु दास का जन्म 9 अक्टूबर 1877 को ओड़िशा के पुरी जिले के साक्षी गोपाल के निकट सुआंडो गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता दैतारी दास एक गरीब पुजारी थे, और माता स्वर्णमायी देवी ने उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों से जोड़ा। बचपन से ही गोपबंधु में देशभक्ति और सामाजिक चेतना की झलक दिखी। उन्होंने पुरी, कटक, और कोलकाता में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ कोलकाता विश्वविद्यालय से 1906 में एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की। यह प्रारंभिक जीवन उनकी बाद की क्रांतिकारी यात्रा की नींव बना।
स्वाधीनता संग्राम का योद्धा
गोपबंधु दास ने 1900 के दशक में स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। वे उड़ीसा के प्रथम राजनीतिक नेता बने, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई। 1917 में उन्होंने उड़ीसा स्टेट्स पीपल्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना की, जो ओड़िशा के लोगों को एकजुट करने का माध्यम बनी। इस संगठन ने ब्रिटिश शोषण के खिलाफ आंदोलन चलाया और स्थानीय राजाओं को जागरूक किया।
1920 में उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उड़ीसा में इसे फैलाने का काम किया। उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनकी वक्तृत्व शक्ति और लेखन ने उड़ीसा में स्वतंत्रता की अलख जगाई। 1921 में उन्होंने ‘सर्वोदय’ नामक पत्रिका शुरू की, जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार बनी। इस पत्रिका में उन्होंने राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता, और सामाजिक सुधार के विचारों को फैलाया। उनका योगदान उड़ीसा को अलग राज्य बनाने में भी महत्वपूर्ण था, जो 1936 में साकार हुआ। यह योद्धा भावना हिंदू शौर्य और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनी।
राष्ट्रीयता का प्रचारक
गोपबंधु दास राष्ट्रीयता के प्रचारक थे, जिन्होंने ओड़िया भाषा, संस्कृति, और हिंदू मूल्यों को मजबूत करने का बीड़ा उठाया। 1921 में उन्होंने ‘सत्यवादी’ नामक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की, जो ओड़िया साहित्य और राष्ट्रीय चेतना का नया युग लेकर आई। इस पत्रिका में उनकी कविताएँ और लेख ओड़िया समाज को जागृत करने वाले थे। उन्होंने ओड़िया को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष किया और इस दिशा में कई सम्मेलन आयोजित किए।
गांधीजी के साथ मिलकर उन्होंने उड़ीसा में असहयोग आंदोलन को गति दी। उन्होंने ब्रिटिश करों का विरोध किया और लोगों को आत्मनिर्भरता की ओर ले गए। उनका मानना था कि राष्ट्रीयता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक भी है। उन्होंने हिंदू त्योहारों को बढ़ावा दिया और सामाजिक एकता पर जोर दिया। 1924 में उन्होंने उड़ीसा प्रांतीय कांग्रेस कमिटी का गठन किया, जो स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बनी। उनका यह प्रचार हिंदू गौरव और राष्ट्रीय एकता का आधार बना।
सामाजिक सुधार का प्रतीक
गोपबंधु दास सामाजिक सुधार के प्रतीक थे, जिन्होंने ओड़िशा में कई बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया। उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, और विधवा विवाह जैसे सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। 1909 में उन्होंने रवेनशावर कॉलेजिएट स्कूल की स्थापना की, जो गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देता था। इस स्कूल ने ओड़िशा में शिक्षा क्रांति ला दी और हिंदू समाज को मजबूत किया।
उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर जोर दिया। उनकी पहल से कई लड़कियों ने पढ़ाई शुरू की, जो उस समय एक क्रांतिकारी कदम था। उनकी कविताएँ और लेख राष्ट्रीयता और सामाजिक जागरूकता से भरे थे। ‘उत्कल मणि’ का खिताब उन्हें इसलिए मिला, क्योंकि वे ओड़िशा की मणि थे, जो समाज को नई दिशा दे रहे थे। यह सुधार हिंदू नारी शक्ति और राष्ट्रीय कर्तव्य का प्रतीक बना।
चुनौतियाँ और समर्पण
गोपबंधु दास के सामने कई चुनौतियाँ थीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल में डाला, और सामाजिक रूढ़ियों ने उनका विरोध किया। 1922 में असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया, जहाँ उन्होंने कठोर सजा सही। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने मिशन को जारी रखा। उनकी सेहत खराब हो गई, लेकिन उनका समर्पण अडिग रहा।
1928 में एक बाढ़ राहत कार्य के दौरान वे बीमार पड़े और 17 जून 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने ओड़िशा के लोगों को एकता और स्वतंत्रता का संदेश दिया। उनका यह बलिदान राष्ट्रीयता और सुधार का अमर आधार बना।
विरासत और सम्मान
पंडित गोपबंधु दास की विरासत आज भी ओड़िशा में जीवित है। उनकी जन्मजयंती 9 अक्टूबर को बड़े उत्साह से मनाई जाती है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण, और सम्मान समारोह होते हैं। उनके नाम पर स्कूल, कॉलेज, और सड़कें हैं। उनकी पुस्तकें जैसे ‘गोमहिमा’ और ‘उत्कल प्रभा’ आज भी पढ़ी जाती हैं, जो राष्ट्रीयता और सुधार का प्रतीक हैं।
ओड़िशा सरकार ने उनके सम्मान में कई पुरस्कार स्थापित किए हैं। उनकी मूर्तियाँ और स्मारक पूरे राज्य में बने हैं, जहाँ लोग उनके बलिदान को याद करते हैं। स्कूलों में बच्चों को उनकी कहानियाँ सिखाई जाती हैं, जो युवाओं में देशभक्ति और हिंदू गौरव की भावना जगाती हैं। यह विरासत हर देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
शौर्य और समर्पण की जय
9 अक्टूबर पंडित गोपबंधु दास की जन्मजयंती है, जो उत्कल मणि, स्वाधीनता संग्राम के योद्धा, और राष्ट्रीयता व सामाजिक सुधार के प्रतीक हैं। उनका जीवन और बलिदान हिंदू गौरव और राष्ट्रवाद की मिसाल है। उनकी याद हमें एकता, शौर्य, और स्वतंत्रता का पाठ सिखाती है। जय हिंद!