10 अक्टूबर: मालवीय जी की अध्यक्षता में आज ही हुआ प्रथम अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन – हिंदू एकता का गौरव

10 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में गौरवशाली है, जब प्रथम अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता महान स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षा विद मदन मोहन मालवीय जी ने की, जो हिंदू एकता और राष्ट्रीयता के प्रतीक थे। यह घटना न केवल हिंदी भाषा के उत्थान का प्रारंभ थी, बल्कि हिंदू गौरव को मजबूत करने का आधार भी बनी। यह लेख उस ऐतिहासिक आयोजन, मालवीय जी के योगदान, और इसके प्रभाव को विस्तार से बताएगा, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

मदन मोहन मालवीय, जिन्हें ‘महामना’ के नाम से जाना जाता है, एक महान नेता, पत्रकार, और शिक्षाविद थे। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। 1910 का हिंदी सम्मेलन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जो हिंदी को राष्ट्रीय भाषा और हिंदू एकता का प्रतीक बनाने की दिशा में कदम था।

आयोजन की पृष्ठभूमि: एक राष्ट्रीय संकल्प

प्रथम अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन 10 अक्टूबर 1910 को वाराणसी में हुआ, जो उस समय हिंदू संस्कृति और शिक्षा का केंद्र था। इस सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करना और भारतीय एकता को बढ़ावा देना था। मालवीय जी, जो उस समय हिंदू महासभा और कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे, ने इस आयोजन की अगुआई की। उन्होंने हिंदी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सांस्कृतिक हथियार के रूप में देखा।

उस समय अंग्रेजी और उर्दू को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन मालवीय जी ने हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। सम्मेलन में देशभर के विद्वान, लेखक, और स्वतंत्रता सेनानी शामिल हुए, जो हिंदू एकता और राष्ट्रीयता के प्रति समर्पित थे। यह आयोजन वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण में हुआ, जो बाद में मालवीय जी की देन थी।

मालवीय जी का नेतृत्व: हिंदू एकता का गौरव

मदन मोहन मालवीय जी ने इस सम्मेलन में हिंदी को हिंदू एकता का प्रतीक बनाया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि हिंदी हिंदू संस्कृति की आत्मा है और इसे हर भारतीय के जीवन में स्थापित करना होगा। उन्होंने हिंदी साहित्य, शिक्षा, और प्रेस को बढ़ावा देने की अपील की। उनकी वक्तृत्व शक्ति ने सम्मेलन को एक ऐतिहासिक सफलता बनाई।

सम्मेलन में हिंदी को स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य करने का प्रस्ताव पारित हुआ। मालवीय जी ने हिंदी में पत्रिकाएँ और पुस्तकें प्रकाशित करने का आह्वान किया, जो स्वदेशी भावना और हिंदू एकता को जागृत करे। उन्होंने हिंदू समाज को एकजुट करने का संदेश दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकता का आह्वान किया। यह नेतृत्व राष्ट्रीय अस्मिता और हिंदू गौरव का प्रतीक बना।

प्रभाव और परिणाम: राष्ट्रीय जागरण

प्रथम अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन का प्रभाव व्यापक रहा। इसने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया। 1910 के बाद हिंदी साहित्य में नई ऊर्जा आई, और कई लेखकों ने हिंदी में रचनाएँ शुरू की। मालवीय जी की प्रेरणा से हिंदी पत्रिकाएँ और समाचार पत्र बढ़े, जो स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।

यह सम्मेलन हिंदू एकता का गौरव बन गया, क्योंकि इसने हिंदू संस्कृति और भाषा को एकजुट करने का प्रयास किया। 1920 के असहयोग आंदोलन में हिंदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो मालवीय जी के इस प्रयास का फल था। यह जागरण राइट-विंग विचारधारा के लिए प्रेरणा बना, जो हिंदू गौरव को बढ़ाता है।

चुनौतियाँ और समर्पण

इस आयोजन के सामने कई चुनौतियाँ थीं। ब्रिटिश सरकार ने हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयासों का विरोध किया और मालवीय जी को निगरानी में रखा। सामाजिक रूप से भी हिंदी को उर्दू और अंग्रेजी के सामने कमजोर माना जाता था। लेकिन मालवीय जी का समर्पण अडिग रहा। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन को त्यागकर इस मिशन को आगे बढ़ाया।

1946 में उनकी मृत्यु तक वे हिंदी और हिंदू एकता के लिए काम करते रहे। उनका बलिदान राष्ट्रीयता और हिंदू गौरव का आधार बना।

विरासत और सम्मान

10 अक्टूबर को इस ऐतिहासिक आयोजन की याद में कार्यक्रम होते हैं। वाराणसी में सम्मेलन स्थल पर स्मारक बने हैं, और हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर मालवीय जी को याद किया जाता है। उनकी विरासत हिंदू एकता और राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
उनके योगदान को भारत रत्न (2014, मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया, जो उनके गौरव को दर्शाता है। स्कूलों में बच्चों को उनकी कहानियाँ सिखाई जाती हैं, जो युवाओं में देशभक्ति और हिंदू गौरव की भावना जगाती हैं।

गौरव और एकता की जय

10 अक्टूबर को मालवीय जी की अध्यक्षता में आज ही हुआ प्रथम अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन हिंदू एकता का गौरव बन गया। उनका शौर्य और समर्पण राष्ट्रीय गर्व है। जय हिंद!

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