13 दिसंबर — भारत की संसद पर हुआ वह जिहादी हमला जिसे राष्ट्र की स्मृति से मिटा देने की कोशिशें भले होती रहें, लेकिन सच यह है कि यह दिन भारतीय लोकतंत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक बन चुका है।
यह वह दिन है जब भारत को तोड़ने की नापाक मानसिकता संसद पर धावा बोलकर देश की आत्मा को क्षति पहुँचाना चाहती थी—परन्तु भारतीय वीरों ने अपने सीने पर गोलियाँ खाकर उस षड्यंत्र को विफल कर दिया।
13 दिसंबर 2001: जब आतंकियों ने संसद पर निशाना साधा
सर्द सुबह थी। संसद में महत्वपूर्ण कार्यवाही चल रही थी। अनेक वरिष्ठ नेता और मंत्री मौजूद थे। ठीक 11:30 बजे एक एम्बेसडर कार ज़बरदस्ती परिसर में घुसी और बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलने लगीं।
हमला इतना अचानक था कि कुछ सेकंड के लिए सभी स्तब्ध रह गए। लेकिन भारतीय सुरक्षाबलों की नसों में जो अनुशासन और राष्ट्रवाद बहता है, वह तुरंत सक्रिय हो गया।
आतंकियों की योजना साफ़ थी—
भारत के शीर्ष नेतृत्व को खत्म करके देश को अस्थिर करना।
यह हमला सिर्फ संसद पर नहीं, भारत की सभ्यता, उसकी लोकतांत्रिक परंपराओं और हिंदुस्तानी आत्मसम्मान पर वार था।
साहस की ढाल बनकर खड़े हुए भारतीय वीर
यदि एक भी आतंकी संसद भवन के अंदर पहुँच जाता, तो भारत को ऐसी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता था जिसकी कल्पना भी भयावह है।
लेकिन हमारे सुरक्षाकर्मी दीवार बनकर खड़े रहे।
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कांस्टेबल कमलेश कुमारी — जिन्होंने आतंकियों को रोकने के लिए सबसे पहले जान की बाज़ी लगाई।
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ASI योगेंद्र सिंह, ASI नरेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल ओमप्रकाश, कांस्टेबल मनोज कुमार
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जागराम, ग्यासी लाल, माधव सिंह
इन सभी ने बिना एक पल सोचे — देश पहले — के सिद्धांत पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
उनकी शहादत ने साबित किया कि भारत तब तक सुरक्षित है जब तक उसके हिंदुस्तानी जवान जाग रहे हैं।
यह सिर्फ एक हमला नहीं था—यह एक वैचारिक टकराव था
हमलावर साधारण अपराधी नहीं थे, बल्कि ऐसे जिहादी थे जिनकी विचारधारा भारत के अस्तित्व से ही शत्रुता रखती है।
उनका उद्देश्य था भारत के लोकतंत्र को, उसकी समृद्ध सभ्यता को और भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति को चुनौती देना।
लेकिन वे भूल गए कि भारत आक्रमणों से कभी नहीं टूटा—
यह देश नालंदा जलाए जाने के बाद भी उठा, सोमनाथ तोड़े जाने के बाद भी खड़ा हुआ, और संसद पर हमले में भी उसने अपना मस्तक ऊँचा रखा।
हमले का अंत — आतंकियों का सफाया और राष्ट्र का संदेश
30 मिनट की भीषण मुठभेड़ में सभी पाँच आतंकवादी ढेर कर दिए गए।
भारत ने स्पष्ट संदेश दिया:
जो राष्ट्र पर हाथ उठाएगा, वह मिटा दिया जाएगा।
यह हमला पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का हिस्सा था, और भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर कर दुनिया को समझा दिया कि आतंकवाद की जड़ें कहाँ हैं।
क्यों याद रखें 13 दिसंबर?
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क्योंकि यह भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला था।
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क्योंकि शहीदों का बलिदान राष्ट्रवाद की जीवित मिसाल है।
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क्योंकि भूल जाने की संस्कृति उन वीरों का अपमान है।
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क्योंकि यह दिन याद दिलाता है कि भारत को कमज़ोर समझने की भूल करने वालों को इतिहास हमेशा सबक सिखाता है।
अमर संदेश
13 दिसंबर हमें बताता है कि भारत सिर्फ एक भूगोल नहीं, बल्कि एक जीवित सभ्यता है, जिसकी रक्षा के लिए लाखों वीर सदैव तत्पर रहते हैं।
आज जब कुछ समूह शहीदों की स्मृति धुंधली करने की कोशिश करते हैं, तब इस दिन को याद रखना और भी ज़रूरी हो जाता है।
नमन उन अमर शहीदों को,
जिन्होंने संसद पर हुए जिहादी हमले में अपने प्राण देकर राष्ट्र की गरिमा बचाई।
भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा।
वंदे मातरम्।
