अगर आपने बप्पा रावल का नाम नहीं सुना, तो इसमें आपका दोष नहीं, बल्कि उस शिक्षा व्यवस्था का है जिसने हमारी वीर गाथाओं को दबा दिया। बप्पा रावल, जिन्हें प्रजा के बप्पा और भीलों के रावल के रूप में पूजा जाता है, 8वीं सदी के महान हिंदू सम्राट थे। उन्होंने अरब आक्रमणकारियों को न केवल भारत से भगाया, बल्कि उनकी सेना को ईरान तक पीछा करके धूल चटाई।
नागादित और कमलावती के पुत्र कालभोज, जिन्हें मेवाड़ की जनता ने प्यार से बप्पा रावल बनाया, गुहिल वंश के संस्थापक थे—एक वंश जिसकी जड़ें भगवान श्रीराम के पुत्र लव तक जाती हैं। उनकी कहानी वीरता, एकता, और हिंदू अस्मिता की रक्षा की मिसाल है, जो आज भी हमें गर्व से भरती है।
शुरुआती जीवन: संघर्ष से शक्ति तक
बप्पा रावल का जन्म मेवाड़ के नागदा क्षेत्र में हुआ, जहाँ उनका बचपन संघर्षों में बीता। उनकी माँ कमलावती ने भीण्डर के जंगलों में शरण ली, जहाँ यदु वंश के भील राजा मांडलिक ने उनकी और उनके बेटे की जान बचाई। यह गठबंधन मेवाड़ के राजपूत और भील समुदाय के बीच शुरू हुआ, जो बाद में महाराणा प्रताप की अकबर के खिलाफ लड़ाई में भील वीरता की गाथा के रूप में गाया गया।
बप्पा का जीवन चमत्कारों से भरा था—कहते हैं हरित साधु नामक ऋषि ने उन्हें शैव तंत्र सिखाया, जिसमें युद्धकला से लेकर जीवन के हर पहलू की शिक्षा थी। माँ भवानी के स्वप्न में दिए गए आदेश ने उन्हें चित्तौर के मोरी राजवंश की मदद के लिए प्रेरित किया।
अरब आक्रमण का सामना: एक ऐतिहासिक विजय
8वीं सदी में, जब अरब सेनाएँ सिंध पर कब्जा करने के बाद मेवाड़ की ओर बढ़ीं, बप्पा रावल ने मोर्चा संभाला। 712 ई. में राजा दाहिर की हार और हत्या ने भारत को पहली बार थोक में बलात्कार और सिर कलम करने जैसी क्रूरता दिखाई। दाहिर के बेटे ने मेवाड़ में शरण ली और बप्पा को सारी स्थिति बताई। इस अत्याचार से क्रोधित होकर बप्पा ने लंबे युद्ध की तैयारी की। उन्होंने मालवा के नागभट्ट प्रथम, गुजरात के पुलकेशीराजा, और चालुक्य राजा जय सिम्हा वर्मन के पुत्र जयभट्ट के साथ गठबंधन बनाया।
738 ई. में, जोधपुर के पास 6000 हिंदू योद्धाओं ने 60,000 अरब सैनिकों के खिलाफ युद्ध लड़ा। जुनैद अल मर्री की हत्या और अरब सेना की हार ने उम्मैयद वंश को कड़ा संदेश दिया। बप्पा ने अरबों का पीछा करते हुए उन्हें ईरान तक खदेड़ा—जेम्स टॉड के अनुसार, उनकी सेना ने गजनी पर कब्जा किया और सलीम को हराकर अपने भतीजे को वहाँ शासक बनाया। सलीम की बेटी से विवाह कर उन्होंने क्षेत्रीय एकता को मजबूत किया। यह विजय अगले 200 वर्षों तक भारत पर बड़े आक्रमणों को रोकने में कामयाब रही। सोचिए, अगर खलीफा का राज हो जाता, तो हिंदू समाज, खासकर महिलाओं की क्या हालत होती!
भील और प्रजा के साथ एकता: जननायक
बप्पा रावल को “प्रजा के बप्पा” कहा जाता था, क्योंकि वे अपने लोगों के दुख-दर्द को समझते थे। भील समुदाय, जो मेवाड़ की रक्षा में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े, उन्हें “भीलों के रावल” की उपाधि दी। इस गठबंधन ने मेवाड़ को एक शक्तिशाली हिंदू राज्य बनाया। राजा मान मोरी ने उन्हें सामंत की उपाधि और जागीर दी, लेकिन बप्पा ने इसे प्रजा की सेवा के लिए इस्तेमाल किया। 20 जुलाई 2025 को, जब हम उनकी वीरता को याद करते हैं, यह एकता हमें प्रेरणा देती है कि सच्ची ताकत संयुक्त प्रयास में है।
सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
शैव तंत्र के प्रभाव में बप्पा ने भगवान एकलिंग को अपना इष्ट बनाया। मेवाड़ की सेना तब से “जय एकलिंग” के उद्घोष के साथ युद्ध में उतरती रही, और आज भी यह राजवंश का इष्ट है। उन्होंने मंदिरों का निर्माण और किलों को मजबूत किया, जिससे हिंदू संस्कृति फली-फूली। चित्तौड़गढ़ का किला उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक है। स्थानीय कारीगरों को प्रोत्साहन देकर उन्होंने मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया।
गद्दारों का पर्दाफाश
सिंध की हार में बौद्ध समुदाय और मेड़ कबीले की गद्दारी ने अरबों की मदद की। नेरून शहर के भंडारकर समाणी ने रसद और नदी पार करने में सहायता दी, जो मातृभूमि के विश्वासघात का उदाहरण है। बप्पा ने इस सब को देखते हुए एकता और सतर्कता का संदेश दिया, जो हिंदू समाज के लिए सबक है।
विरासत और प्रभाव
बप्पा की मृत्यु 753 ई. के आसपास हुई, लेकिन उनकी सिसोदिया वंश ने 1400 वर्षों तक मेवाड़ को सुशोभित किया। महाराणा प्रताप जैसे वंशजों ने उनकी वीरता को आगे बढ़ाया। उनकी कहानियाँ लोकगीतों में अमर हैं, जो हिंदू गौरव को जिंदा रखती हैं।
सनातन अस्मिता का रक्षक
बप्पा रावल ने प्रजा और भीलों के साथ एकता से अरबों को खदेड़ा और हिंदू अस्मिता की रक्षा की। उनकी वीरता और दूरदर्शिता आज भी हमें प्रेरित करती है। उनकी याद हमें सिखाती है कि सच्चा सम्राट वही है जो धर्म और देश की रक्षा करे। उनकी गाथा हमेशा हमारे दिलों में धड़केगी।