हाल के दिनों में भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ते संबंधों ने वैश्विक शक्ति संतुलन को बदलने की संभावना जताई है। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर 50% तक टैरिफ लगाने की कार्रवाई ने इस बदलाव को और उजागर किया है। क्या यह टैरिफ नीति केवल व्यापारिक दबाव का हिस्सा है, या इसके पीछे ट्रंप का असली डर नई विश्व व्यवस्था का उदय है?
बदलता वैश्विक परिदृश्य
भारत, जो पहले अमेरिका के लिए चीन के खिलाफ एक काउंटरवेट के रूप में देखा जाता था, अब रूस और चीन के साथ मजबूत साझेदारी बना रहा है। रूस से तेल आयात और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर सक्रियता इस दिशा में कदम हैं। वहीं, चीन अपनी आर्थिक शक्ति और रूस के साथ ऊर्जा व्यापार के जरिए वैश्विक प्रभाव बढ़ा रहा है। इन तीन देशों की एकता अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है, जो शायद ट्रंप की नीतियों में परिलक्षित हो रही है।
ट्रंप का टैरिफ दांव
ट्रंप ने भारत पर 25% का मूल टैरिफ और रूस से तेल खरीद के लिए अतिरिक्त 25% का जुर्माना लगाया है। उनका तर्क है कि भारत रूस की यूक्रेन युद्ध मशीनरी को हवा दे रहा है। लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम व्यापारिक संतुलन से ज्यादा भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। ट्रंप की टिप्पणियों में भारत और रूस को “मृत अर्थव्यवस्था” कहना इस बात का संकेत हो सकता है कि वे इन देशों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं।
भारत का रुख
भारत ने इन टैरिफों को “अनुचित और अनुचित” करार देते हुए अपने हितों की रक्षा का वादा किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से तेल खरीद बाजार आधारित निर्णय है, न कि राजनीतिक गठबंधन। साथ ही, भारत ने अमेरिका और यूरोप पर भी उंगली उठाई, जो खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं। यह रुख दर्शाता है कि भारत नई विश्व व्यवस्था में अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है।
क्या है ट्रंप का असली डर?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का असली डर यह है कि भारत, रूस और चीन मिलकर एक नया आर्थिक और सैन्य गठजोड़ बना सकते हैं, जो अमेरिकी प्रभाव को कमजोर करेगा। खासकर जब भारत और चीन SCO शिखर सम्मेलन जैसे मंचों पर एक साथ आ रहे हैं, यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय हो सकता है। ट्रंप की टैरिफ नीति इस बदलाव को रोकने की एक कोशिश प्रतीत होती है, लेकिन यह उल्टा असर डाल सकती है, क्योंकि इससे इन देशों के बीच सहयोग बढ़ सकता है।
वैश्विक व्यवस्था में बदलाव स्वाभाविक है, और भारत-रूस-चीन का गठजोड़ इस बदलाव का हिस्सा बन सकता है। ट्रंप के टैरिफ कदम भले ही तात्कालिक दबाव बनाएं, लेकिन लंबे समय में ये देश अपनी रणनीति के साथ आगे बढ़ सकते हैं। सवाल यह है कि क्या ट्रंप की ये नीतियां अमेरिका को मजबूत करेंगी या उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग कर देंगी? आने वाला समय इसका जवाब देगा।