बिहार चुनाव 2025 के नतीजे अब लगभग साफ हो गए हैं और तस्वीर बिल्कुल एकतरफा नज़र आ रही है। राज्य में NDA की भारी वापसी हुई है और गठबंधन रिकॉर्डतोड़ तरीके से सत्ता में लौटता दिख रहा है। शुरुआती गणना से लेकर अब तक रुझान लगातार NDA के ही पक्ष में रहे। कई सीटों पर मुकाबला था, लेकिन नतीजा वही आया जिसकी चर्चाएँ चुनाव प्रचार के दौरान शुरू हो चुकी थीं — जनता ने विकास, स्थिरता और मजबूत नेतृत्व को चुन लिया।
NDA का जबरदस्त प्रदर्शन
बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से NDA आराम से बहुमत के पार निकल चुका है। कई क्षेत्रों में तो उसने एकतरफा बढ़त बनाई। BJP और JD(U) दोनों ने शानदार प्रदर्शन किया है।
लोगों का कहना है कि इस बार वोटिंग सिर्फ जातीय समीकरण पर नहीं, बल्कि काम और व्यवस्था पर हुई है। महिला वोटर, युवा और पहली बार मतदान करने वाले बड़ी संख्या में NDA के साथ दिखे।
तेजस्वी-राहुल की जोड़ी क्यों फेल हुई?
महागठबंधन की उम्मीदें तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के संयुक्त प्रचार पर टिकी थीं। दोनों ने आक्रामक रैलियाँ कीं, बेरोज़गारी और शिक्षा जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन ज़मीन पर इसका असर नहीं दिखा।
कई सीटों पर RJD को कड़ी टक्कर मिली, लेकिन अंतिम निर्णय वोटर का रहा — और वोटर ने इस बार बदलाव नहीं, बल्कि स्थिरता को चुना।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महागठबंधन की सबसे बड़ी कमी “स्पष्ट नेतृत्व” थी। लोगों को लगा कि सत्ता में आने के बाद कौन निर्णय लेगा — इसका स्पष्ट जवाब विपक्ष नहीं दे पाया।
प्रशांत किशोर (PK) का जादू क्यों नहीं चला?
बिहार की राजनीति में नया प्रयोग करने के लिए प्रशांत किशोर मैदान में उतरे थे। उन्होंने जन सुराज पार्टी बनाकर ग्रामीण इलाकों में लंबा चल-प्रचार किया। उम्मीदें भी लगाई जा रही थीं, लेकिन वोटों में यह उम्मीद बदल नहीं पाई।
PK के पास विचार तो मजबूत थे, लेकिन संगठन कमज़ोर रहा। पहली बार चुनाव लड़ने की वजह से कई सीटों पर उनके उम्मीदवार ज़मीन नहीं बना सके। नतीजतन, जो प्रभाव वे दिखाना चाहते थे, वह इस बार संभव नहीं हो पाया।
लोगों ने किस आधार पर वोट दिया?
बिहार के वोटरों ने इस बार कई ठोस मुद्दों को देखकर मतदान किया जैसे—
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सड़क और पुल का सुधरा हुआ नेटवर्क
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बिजली और पानी की बेहतर सप्लाई
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महिलाओं के लिए सुरक्षा और सहायता योजनाएँ
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स्कूलों, अस्पतालों और पंचायत स्तर पर सरकारी योजनाओं का असर
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और सबसे बड़ा मुद्दा — स्थिर सरकार की चाह
मतदाताओं को लगा कि NDA की सरकार में काम आगे बढ़ेगा, जबकि विपक्ष में अभी अनुभव और स्थिरता की कमी है।
क्या होगा अब?
अब अगला सवाल है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। हालांकि माहौल साफ बता रहा है कि नीतीश कुमार ही फिर से सत्ता संभालेंगे।
NDA में भी सबकुछ सहज दिख रहा है और पार्टी के नेताओं के बयान बता रहे हैं कि सरकार गठन में कोई दिक्कत नहीं होगी।
वहीं विपक्ष को अब अपने नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर बड़ा पुनर्विचार करना पड़ेगा।
PK को भी अपनी पार्टी के ढाँचे और जमीनी पकड़ को और मजबूत करने की जरूरत है।
निष्कर्ष
इस बार बिहार ने साफ संदेश दिया है—
काम बताता है, कौन सत्ता में जाएगा।
NDA की सुनामी ने पूरी राजनीति की दिशा बदल दी है। तेजस्वी-राहुल की जोड़ी का असर फीका रहा, और प्रशांत किशोर की नई शुरुआत को जनता ने मौका नहीं दिया।
अब बिहार अगले पाँच साल के लिए फिर से NDA के हाथों में है, और उम्मीद यही है कि विकास की गति और तेज होगी।
