Bihar Election:आज हो चुनाव तो किसकी बनेगी सरकार? The Logsabha ओपिनियन पोल के सर्वे में आए चौंकाने वाले आंकड़े

बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हर पार्टी अपनी तैयारियों में जुटी हुई है। ऐसे में The Logsabha की टीम ने हाल ही में एक ओपिनियन पोल सर्वे करवाया है, जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं। इस सर्वे के मुताबिक, अगर आज बिहार में चुनाव हों, तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) मज़बूत स्थिति में नज़र आ रहा है, और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई में हिंदू वोटरों की गोलबंदी ने उनकी जीत की राह आसान कर दी है। आइए, इस ओपिनियन पोल और बिहार के सियासी माहौल का गहराई से विश्लेषण करें।

The Logsabha ओपिनियन पोल: NDA की मज़बूत स्थिति, BJP का दबदबा

The Logsabha के ताज़ा ओपिनियन पोल के मुताबिक, अगर आज बिहार में चुनाव हों, तो NDA को 243 विधानसभा सीटों में से 155-165 सीटें मिलने की संभावना है। वहीं, महागठबंधन (MGB) को 65-75 सीटों पर सिमटना पड़ सकता है। बाकी सीटें छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में जा सकती हैं। इस सर्वे में NDA का वोट शेयर 53% के आसपास बताया गया है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों के 47% से कहीं ज़्यादा है। दूसरी ओर, महागठबंधन का वोट शेयर 39% के करीब रहने का अनुमान है।

इस सर्वे में सबसे खास बात यह है कि BJP अकेले दम पर 95-105 सीटें जीतने की स्थिति में दिख रही है। यह आँकड़े साफ तौर पर हिंदू वोटरों के NDA की ओर रुझान को दर्शाते हैं। The Logsabha के सर्वे ने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री पद के लिए NDA की तरफ से नीतीश कुमार को 25% लोगों ने पसंद किया, जबकि तेजस्वी यादव को 32% लोगों ने चुना। लेकिन वोटों का बँटवारा और हिंदू वोटरों की एकजुटता NDA के पक्ष में भारी पड़ रही है।

अन्य ओपिनियन पोल्स का हाल: NDA को बढ़त, तेजस्वी की चुनौती

The Logsabha के सर्वे से पहले भी कई ओपिनियन पोल्स NDA को बढ़त दे चुके हैं। फरवरी 2025 में India Today-CVoter के ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वे ने अनुमान लगाया था कि अगर बिहार में लोकसभा चुनाव होते, तो NDA को 40 में से 33-35 सीटें मिलतीं, जबकि महागठबंधन केवल 5-7 सीटों तक सिमट जाता। इस सर्वे में NDA का वोट शेयर 52% और महागठबंधन का 42% होने का अनुमान था। CVoter के संस्थापक यशवंत देशमुख ने कहा था कि अगर BJP, JD(U), और LJP एकजुट रहते हैं, तो बिहार में उनकी जीत को रोकना मुश्किल होगा।

मई 2025 में InkInsight ओपिनियन पोल ने भी NDA को बढ़त दी थी। इस सर्वे में 44.6% युवा मतदाताओं (18-29 आयु वर्ग) ने NDA को वोट देने की बात कही, जबकि 39.5% ने महागठबंधन को चुना। हालांकि, मुख्यमंत्री पद के लिए युवाओं ने तेजस्वी यादव को पसंद किया, लेकिन महिलाओं ने नीतीश कुमार को प्राथमिकता दी। 60.4% महिलाओं ने NDA को समर्थन दिया, जो नीतीश की सामाजिक कल्याण योजनाओं का असर दर्शाता है।

तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में गिरावट: हिंदू वोटरों का रुझान NDA की ओर

कई सर्वे में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया गया, लेकिन उनकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी जा रही है। अप्रैल 2025 के C-Voter सर्वे के अनुसार, तेजस्वी की लोकप्रियता फरवरी में 40.6% से घटकर 35.5% हो गई। वहीं, नीतीश कुमार की लोकप्रियता भी 18% से घटकर 15% पर आ गई। इस बीच, BJP के सम्राट चौधरी और LJP के चिराग पासवान की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। सम्राट चौधरी को 12.5% और चिराग पासवान को 5.8% लोगों ने पसंद किया।

तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह रही कि वे हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में करने में नाकाम रहे। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने हमेशा मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर भरोसा किया, लेकिन इस बार हिंदू वोटरों ने NDA के पक्ष में गोलबंदी की। तेजस्वी के 100% डोमिसाइल नीति और नौकरी के वादों को जनता ने अव्यवहारिक माना।

उनकी रणनीति में हिंदू भावनाओं को साधने की कमी साफ दिखी। तेजस्वी की आलोचना इस बात को लेकर भी हो रही है कि वे केवल युवाओं को बड़े-बड़े वादे करके भ्रमित कर रहे हैं, लेकिन उनके पास इन वादों को पूरा करने का कोई ठोस प्लान नहीं है। उनकी पार्टी का प्रचार भी कमज़ोर रहा, और कांग्रेस की आक्रामकता ने RJD को और कमज़ोर किया।

BJP की रणनीति: हिंदू एकता और विकास का मंत्र

BJP ने इस बार बिहार चुनाव में हिंदू एकता और विकास को अपना मुख्य हथियार बनाया। पार्टी ने न केवल हिंदू वोटरों को एकजुट करने के लिए सांस्कृतिक मुद्दों को उठाया, बल्कि नीतीश कुमार के साथ मिलकर सामाजिक कल्याण योजनाओं को भी मज़बूती दी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025 के बजट में बिहार के लिए कई बड़ी घोषणाएँ कीं, जैसे मखाना बोर्ड की स्थापना, ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, और वेस्टर्न कोशी कैनाल प्रोजेक्ट, जिन्होंने ग्रामीण और शहरी दोनों मतदाताओं को प्रभावित किया।

BJP ने ऊपरी जातियों और शहरी मतदाताओं के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और अनुसूचित जाति (SC) के मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई। बिहार में EBC की आबादी 36% है, और ये 112 जातियों में बँटी हुई है। NDA ने इन वर्गों को टिकट देकर और उनकी समस्याओं को चुनावी मुद्दा बनाकर अपनी स्थिति मज़बूत की। RSS ने भी ग्रामीण इलाकों में अपनी सक्रियता बढ़ाई, जिससे BJP का संगठन और मज़बूत हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार में पार्टी कार्यकर्ताओं को मज़बूत करने के लिए कई रैलियाँ कीं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि बूथ स्तर पर संगठन को मज़बूत करें, क्योंकि “बूथ जीतो, बिहार जीतो।” मोदी ने यह भी कहा कि टिकट के लिए उम्मीदवारों को सोशल मीडिया पर कम से कम 50,000 फॉलोअर्स होने चाहिए, ताकि उनकी जनता से जुड़ाव का पता चल सके।

नीतीश कुमार की चुनौतियाँ और NDA का मज़बूत गठबंधन

नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी के बावजूद, NDA ने उन्हें अपने गठबंधन का चेहरा बनाए रखा। उनकी सेहत और बार-बार गठबंधन बदलने की वजह से उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। 58% लोगों ने C-Voter सर्वे में कहा कि उनकी विश्वसनीयता में काफी कमी आई है। लेकिन नीतीश की EBC और गैर-यादव OBC वोटरों के बीच पकड़ ने NDA को मज़बूती दी।

NDA की एकता भी इस चुनाव में उसकी सबसे बड़ी ताकत रही। BJP, JD(U), और LJP के बीच बेहतर समन्वय ने महागठबंधन को पछाड़ने में मदद की। चिराग पासवान ने भी इस बार नीतीश के साथ मिलकर काम किया, जिससे गठबंधन को और बल मिला।

चुनावी मुद्दे और जनता का मूड

बिहार में इस बार के प्रमुख चुनावी मुद्दे बेरोजगारी, महँगाई, बिजली, पानी, सड़कें, और भ्रष्टाचार रहे। C-Voter सर्वे के अनुसार, 45% लोगों ने बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा माना, जबकि 11% ने महँगाई को। NDA ने इन मुद्दों पर अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने रखा और केंद्र सरकार की योजनाओं का हवाला दिया। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाया, लेकिन उनके वादों को जनता ने अव्यवहारिक माना।

NDA की जीत की प्रबल संभावना

The Logsabha ओपिनियन पोल और अन्य सर्वे के आधार पर यह साफ है कि NDA इस बार बिहार में सत्ता में मज़बूत स्थिति में है। BJP की रणनीति, हिंदू वोटरों की गोलबंदी, और नीतीश कुमार की EBC वोटों पर पकड़ ने NDA को बढ़त दी है। तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी और उनकी रणनीति में हिंदू भावनाओं को शामिल न करने की कमी ने महागठबंधन को कमज़ोर किया है। बिहार की जनता इस बार विकास और स्थिरता को प्राथमिकता दे रही है, और इसके आधार पर NDA की जीत की संभावना प्रबल दिख रही है।

 

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