अयोध्या की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भूमि आज उस क्षण की साक्षी बनी जिसकी प्रतीक्षा करोड़ों लोगों ने वर्षों नहीं, सदियों तक की थी। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पूर्ण निर्माण के बाद, पहली बार मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज का आरोहण किया गया। यह न केवल रामलला के मंदिर के लिए बल्कि संपूर्ण भारतीय सांस्कृतिक चेतना के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है। धर्मध्वज फहराए जाने का यह अवसर आस्था, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय अस्मिता के साथ गहरे भावनात्मक जुड़ाव के रूप में देखा जा रहा है।
आज का दिन ऐतिहासिक इसलिए भी रहा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं मंदिर के शिखर पर भगवा धर्मध्वज फहराया। उनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत भी मौजूद रहे। इस आयोजन को देखने और उसका हिस्सा बनने हजारों श्रद्धालु अयोध्या पहुंचे, जबकि देश-विदेश से करोड़ों लोगों ने इसे प्रसारण के माध्यम से देखा।
अभिजीत मुहूर्त में हुआ ध्वजारोहण
धर्मध्वज का आरोहण किसी साधारण समय में नहीं बल्कि विशेष रूप से चुने गए अभिजीत मुहूर्त में किया गया। ध्वजारोहण का समय 11 बजकर 55 मिनट तय किया गया था। पूजा-विधि और अनुष्ठानों के पूर्ण होने के साथ ही प्रधानमंत्री ने मंदिर के 161 फीट ऊँचे शिखर पर धर्मध्वज फहराया।
अभिजीत मुहूर्त को हिंदू ज्योतिष में सर्वाधिक शुभ मुहूर्त माना गया है। मान्यता है कि इसी मुहूर्त में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इस कारण धर्मध्वजारोहण के लिए इस समय का चयन अत्यंत पवित्र और प्रतीकात्मक माना गया। पूर्ण विधि-विधान, वैदिक मंत्रोच्चार और परंपरागत वादन के बीच ध्वज का आरोहण सम्पन्न हुआ, और उस क्षण श्रद्धालुओं की आँखें भावनाओं से भर आईं।
पूजा-अर्चना और अनुष्ठानों के बीच हुआ महाआयोजन
ध्वजारोहण से पूर्व प्रधानमंत्री ने मंदिर परिसर के भीतर कई स्थानों पर पूजा-अर्चना की। पहले सप्तमंदिर के दर्शन किए गए, उसके बाद शेषावतार मंदिर में अनुष्ठान सम्पन्न हुआ। इसके उपरांत रामलला के गर्भगृह में विशेष पूजा कर प्रधानमंत्री ने दीप प्रज्वलित किया और अयोध्या के विकास, देश की समृद्धि और जनकल्याण के लिए प्रार्थना की।
पूरे मंदिर परिसर में सुरक्षा और व्यवस्थाओं का अभूतपूर्व प्रबंध किया गया था। संत-महात्माओं, आम श्रद्धालुओं, विशिष्ट अतिथियों और धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने इस आयोजन में सम्मिलित होकर इसे एक अखिल भारतीय सांस्कृतिक अनुष्ठान का स्वरूप दिया।
धर्मध्वज के स्वरूप और प्रतीकों का धार्मिक अर्थ
आज फहराए गए धर्मध्वज का स्वरूप विशिष्ट बनाया गया है। यह समकोण वाला त्रिकोणी ध्वज है, जिसकी ऊँचाई 10 फीट और लंबाई 20 फीट है। यह ध्वज विशेष रूप से राम मंदिर के लिए तैयार किया गया, और इसका रंग भगवा रखा गया जो सनातन परंपरा में त्याग, बलिदान, धैर्य और धर्म के पक्ष में अडिग रहने का प्रतीक माना जाता है।
ध्वज पर तीन प्रमुख प्रतीक उकेरे गए हैं—
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चमकता हुआ सूर्य
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ॐ का चिन्ह
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कोविदार वृक्ष
सूर्य का चिन्ह श्रीराम के सूर्यवंशी वंश का प्रतीक है। यह प्रकाश, शक्ति, मर्यादा और सत्य की विजय का सूचक है। ओम् चिन्ह परम चेतना, ब्रह्मांडीय ऊर्जा और अध्यात्म के मूल स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। कोविदार वृक्ष का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, और रघुवंश परंपरा में इसे अत्यंत पवित्र वृक्ष माना गया है। ध्वज पर इन तीनों प्रतीकों का समावेश रामराज्य के आदर्शों को दर्शाता है—आधुनिक समय में धर्म, न्याय, मर्यादा और सत्य की उच्चतम प्रतिष्ठा।
अयोध्या का वातावरण और जनता की भावनाएँ
अयोध्या पिछले कई दिनों से उत्सव के रंग में रंगी हुई है, लेकिन आज का दृश्य अद्वितीय था। शहर के चप्पे-चप्पे को भव्य रूप से सजाया गया। हर मार्ग, मंदिर, घाट और भवन को प्रकाश और सजावट से अलंकृत किया गया। स्थानीय लोगों से लेकर दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं में अपार उल्लास दिखाई दिया। पूरे आयोजन के दौरान वातावरण में जय श्रीराम के नारे और भजन-कीर्तन गूंजते रहे।
आज के इस आयोजन की चमक केवल मंदिर परिसर तक सीमित नहीं रही। पूरा शहर अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व कर रहा था, और इस एहसास ने वातावरण को भावनात्मक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में ऊँचा उठाया।
सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व
धर्मध्वजारोहण तीन स्तरों पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है—
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धार्मिक
मंदिर के पूर्ण निर्माण का आध्यात्मिक उद्घोष और सनातन आस्था की पुनः प्रतिष्ठा। -
सांस्कृतिक
रामायण और रघुवंश की परंपरा का स्मरण, संरक्षण और पुनर्स्थापन। -
राष्ट्रीय
करोड़ों लोगों की भावनात्मक एकता, एक साझा सांस्कृतिक पहचान और भारतीय सभ्यता के मूल्यों का वैश्विक संदेश।
यह ध्वज इस बात का प्रतीक है कि राम मंदिर सिर्फ एक धार्मिक संरचना नहीं, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा और मानव-धर्म के आदर्शों को धारण करने वाला केंद्र है।
अयोध्या का भविष्य और बदलती तस्वीर
ध्वजारोहण के साथ अयोध्या के विकास की दिशा भी स्पष्ट दिखाई देती है। तीर्थ-स्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि पर्यटन, सांस्कृतिक अनुसंधान, भारतीय परंपराओं के अध्ययन और आध्यात्मिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में अयोध्या उभर रही है। स्थानीय अर्थव्यवस्था, रोजगार और व्यापार पर इसके सकारात्मक प्रभाव पहले से दिखाई देने लगे हैं। स्थानीय कारीगर, सेवा क्षेत्र, आवास-व्यवस्था और परिवहन तंत्र के लिए यह आयोजन विकास का बड़ा अवसर बन गया है।
निष्कर्ष
अयोध्या में आज जो ध्वजारोहण हुआ वह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि विश्वास, मर्यादा, संस्कृति और सभ्यता की विजय का प्रतीक है। धर्मध्वज का शिखर पर फहराया जाना उस लंबे कालखंड का अंत है जिसमें आस्था ने संघर्ष और धैर्य का मार्ग अपनाया, और उसी के साथ यह एक नए अध्याय की शुरुआत भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत की संयुक्त उपस्थिति ने इस आयोजन को युग-निर्धारण का स्वरूप प्रदान किया। आज फहराया गया ध्वज आने वाली पीढ़ियों को स्मरण कराएगा कि धर्म केवल पूजा का विषय नहीं, बल्कि सत्य, न्याय, शांति, करुणा और मानव कल्याण के मार्ग पर अडिग रहने का नाम है।
राम मंदिर के शिखर पर स्थापित यह धर्मध्वज राष्ट्र को संदेश देता है कि आदर्श और सदाचार कभी पराजित नहीं होते — सत्य अंततः विजयी होता है, और जब धर्मध्वज लहराता है तो केवल कपड़ा नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति की आत्मा लहराती है।
