भारत की माटी ने हमेशा से ऐसे सपूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपनी जिंदगी देश और संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित कर दी। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व थे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। हेडगेवार हिंदू एकता के नायक थे और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एक महान विचारक, जिन्होंने हिंदू समाज को संगठित करने का सपना देखा। लेकिन उनकी यह राह आसान नहीं थी। कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक ताकत से उनके मतभेद ने उनके संघर्ष को और गहरा कर दिया। आइए, आज 29 मई 2025 को, हेडगेवार की इस प्रेरणादायक कहानी को जानें और उनके योगदान को समझें।
बचपन से ही देशभक्ति की मिसाल
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में एक साधारण मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता बलिराम पंत और माता रेवती बाई ने उन्हें संस्कारों की मजबूत नींव दी। बचपन से ही केशव में देशभक्ति की भावना भरी हुई थी। जब वे स्कूल में थे, तब 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ। इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग भर दी। उन्होंने स्कूल में अंग्रेजी किताबों को जलाने जैसे साहसी कदम उठाए, जिसके चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। यह छोटी सी घटना उनके क्रांतिकारी जीवन की पहली झलक थी।
हेडगेवार ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई कोलकाता के नेशनल मेडिकल कॉलेज से पूरी की। कोलकाता में वे अनुशीलन समिति जैसे क्रांतिकारी संगठनों के संपर्क में आए। वहां उन्होंने देखा कि हिंदू समाज में एकता की कमी है, जिसका फायदा ब्रिटिश शासन उठा रहा है। इसी दौरान उनके मन में हिंदू समाज को संगठित करने का विचार जन्म लेने लगा।
हिंदू एकता का सपना और RSS की स्थापना
1916 में हेडगेवार नागपुर लौटे और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। लेकिन उनका ध्यान सिर्फ आजादी पर नहीं था। वे मानते थे कि जब तक हिंदू समाज एकजुट नहीं होगा, तब तक देश की सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित नहीं हो सकती। 1925 में विजयदशमी के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की। उनका मकसद था हिंदू समाज को शारीरिक, मानसिक, और सांस्कृतिक रूप से मजबूत करना।
हेडगेवार कहते थे, “हिंदू समाज की ताकत उसकी एकता में है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना सीखना होगा।”
RSS की शाखाओं में स्वयंसेवकों को अनुशासन, शारीरिक प्रशिक्षण, और हिंदू संस्कृति की शिक्षा दी जाती थी। हेडगेवार का मानना था कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही भारत की सच्ची पहचान है। वे चाहते थे कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने, जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा हो और आत्मनिर्भर हो।
कांग्रेस से मतभेद: एक अलग राह की शुरुआत
हेडगेवार ने अपने शुरुआती दिनों में कांग्रेस के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। वे 1920 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे। लेकिन जल्द ही उन्हें कांग्रेस की कार्यशैली से मतभेद होने लगे। हेडगेवार का मानना था कि कांग्रेस की “सर्वधर्म समभाव” की नीति हिंदू समाज की एकता को कमजोर कर रही है। उस समय कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ कई समझौते किए, जिन्हें हेडगेवार हिंदू हितों के खिलाफ मानते थे।
1921 में हेडगेवार को एक सभा में भड़काऊ भाषण देने के लिए गिरफ्तार किया गया। अदालत में उन्होंने बेबाकी से कहा, “मैंने जो कहा, वह मेरे देश और हिंदू समाज के लिए कहा। मुझे कोई पछतावा नहीं है।” उन्हें एक साल की सजा हुई। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने कांग्रेस से पूरी तरह दूरी बना ली। वे कहते थे, “हिंदू समाज को अपनी रक्षा खुद करनी होगी। हमें किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।”
हेडगेवार का कांग्रेस से सबसे बड़ा मतभेद उनकी तुष्टिकरण की नीतियों को लेकर था। वे मानते थे कि कांग्रेस की नीतियां हिंदू समाज की सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल रही हैं। उन्होंने RSS को एक स्वतंत्र संगठन के रूप में विकसित किया, जो कांग्रेस की राजनीति से अलग हो। 1930 के नमक सत्याग्रह में RSS ने हिस्सा लिया, लेकिन हेडगेवार ने साफ कर दिया कि RSS का मुख्य लक्ष्य हिंदू संगठन है, न कि राजनीतिक आंदोलन।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार: हेडगेवार की दूरदर्शिता
हेडगेवार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के महान विचारक थे। उनका मानना था कि भारत का असली राष्ट्रवाद उसकी सांस्कृतिक जड़ों में छिपा है। वे कहते थे, “भारत की पहचान उसकी संस्कृति है। हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोना होगा।” हेडगेवार ने RSS के जरिए हिंदू समाज को एकजुट करने का जो सपना देखा, वह आज भी प्रासंगिक है।
उनके विचारों में अनुशासन और संगठन की बड़ी भूमिका थी। वे स्वयंसेवकों को सिखाते थे कि एक मजबूत समाज ही एक मजबूत राष्ट्र का आधार बन सकता है। हेडगेवार का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सिर्फ हिंदू समाज तक सीमित नहीं था, बल्कि वे चाहते थे कि पूरा भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करे।
हेडगेवार की विरासत: आज भी प्रेरणा
डॉ. हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को नागपुर में हुआ। उनके निधन के बाद माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) ने RSS की कमान संभाली। हेडगेवार ने अपने जीवनकाल में RSS को एक मजबूत संगठन बना दिया था, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। आज RSS न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी हिंदू संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है।
हेडगेवार की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने हिंदू समाज में एकता और स्वाभिमान की भावना जगाई। उन्होंने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ एक अलग राह चुनी और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मार्ग दिखाया। उनकी यह विचारधारा आज भी लाखों लोगों को प्रेरित कर रही है।
हिंदू एकता के नायक की अमर कहानी
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार हिंदू एकता के सच्चे नायक थे और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के महान विचारक। उन्होंने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ एक अलग राह बनाई और हिंदू समाज को संगठित करने का जो सपना देखा, उसे साकार किया। उनकी यह कहानी हमें सिखाती है कि अपनी संस्कृति और पहचान पर गर्व करना कितना जरूरी है। आज जब हम हेडगेवार को याद करते हैं, तो हमें उनके साहस, दूरदर्शिता, और समर्पण से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी यह अमर कहानी हर भारतीय के लिए एक मिसाल है।