गजेंद्र सिंह: भारत का वो वीर जवान, जिसके शौर्य की गाथा रूस में आज भी सुनाई जाती है

पिथौरागढ़ जिले के बरालू गांव के मूल निवासी नायब सूबेदार गजेन्द्र सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के कठिन समय में रेड आर्मी के साथ जो समर्पण और बहादुरी दिखाई, वह आज भी रूस और भारत दोनों में याद किया जाता है।

1936 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती होने के बाद, उन्होंने पाकिस्तान के रावलपिंडी (अब चकवाल) में प्रशिक्षण लिया और फिर नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (अब ख़ैबर पख़्तूनख़्वा) में तैनाती पाई। युद्ध के दौरान उन्हें इराक के बसरा में गठबंधन सेना के हिस्से के रूप में रसद, हथियार और गोला-बारूद पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

बहादुरी और समर्पण

1942-43 में जब रेड आर्मी को कोकेशियन फ्रंट पर संकट का सामना करना पड़ा, तो गजेन्द्र सिंह और उनके साथियों ने कठिन परिस्थितियों में भी लगातार आपूर्ति सुनिश्चित की। एक ऑपरेशन के दौरान वे बुरी तरह जख्मी हो गए; सेना के डॉक्टर उन्हें भारत वापस भेजने की सलाह देने लगे, लेकिन उन्होंने इलाज के बाद लौटने से इनकार कर दिया और पुनः मोर्चे पर लौटकर सोवियत सैनिकों की मदद की। उनके इस साहस और कर्तव्य से प्रेम ने रूसी अधिकारियों का दिल जीत लिया।

‘ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार’ सम्मान

उनके अतुलनीय योगदान के लिए सोवियत रूस ने 1 सितंबर 1944 को उन्हें प्रतिष्ठित ‘ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार’ से सम्मानित किया। उस दिन सोवियत राजदूत ने मॉस्को में एक समारोह के दौरान यह पदक प्रदान किया। गजेन्द्र सिंह रेड स्टार से सम्मानित होने वाले दो भारतीयों में प्रथम थे; दूसरे थे तमिलनाडु के सूबेदार नारायण राव।

स्मृति और श्रद्धांजलि

विगत शुक्रवार को रूस ने दिल्ली के विकास मार्ग पर एक बड़ा होर्डिंग लगाया, जिस पर गजेन्द्र सिंह की तस्वीर सहित लिखा था,

“रूसी लोग आपके बलिदान को याद करते हैं।”

इस पोस्टर में यह भी उल्लेख था कि गजेन्द्र सिंह और उनके साथियों ने 1942-43 में कोकेशियन फ्रंट पर रेड आर्मी को गोला-बारूद पहुंचाया।

इसी क्रम में मॉस्को के रूसी आर्मी म्यूजियम में वीर सैनिकों की गैलरी में भी गजेन्द्र सिंह का नाम शामिल किया गया है। भारतीय दूतावास ने उनके परिवार को सूचित करते हुए बताया कि यह भारत–रूस मित्रता का प्रतीक है।

परिवार का गर्व

उनके पोते संदीप चंद (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में तैनात) और बेटे भगवान सिंह ने बताया कि पूर्वज का यह सम्मान परिवार के लिए गर्व का विषय है। बरालू गांव में एक पेड़ के नीचे लगी पट्टिका आज भी उनकी वीरता की गाथा सुनाती है।

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