हिंदू धर्म के रक्षक गुरु तेग बहादुर: कश्मीरी पंडितों के लिए औरंगज़ेब से लड़ा धर्म युद्ध

कभी-कभी इतिहास की किताबों में ऐसी कहानियां छुपी होती हैं, जो सुनते ही रोंगटे खड़े कर देती हैं। एक ऐसी ही कहानी है सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी की, जिन्होंने हिंदू धर्म को बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

औरंगजेब के उस दौर में, जब हिंदुओं पर जुल्म की इंतहा हो रही थी, गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए जो कदम उठाया, वह आज भी हमें गर्व से सिर उठाने का मौका देता है। उनकी यह कहानी न सिर्फ सिख समुदाय के लिए, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो धर्म और इंसानियत की कीमत समझता है। चलिए, उनके इस बलिदान की गाथा को करीब से जानते हैं।

औरंगजेब का आतंक: हिंदुओं पर अत्याचार

17वीं सदी में मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन अपने चरम पर था। औरंगजेब एक कट्टर शासक था, जिसने हिंदुओं पर जबरन इस्लाम स्वीकार करने का दबाव डाला। उसने मंदिरों को तोड़ा, जजिया कर लागू किया, और हिंदुओं को अपने धर्म से विमुख करने के लिए क्रूर नीतियां अपनाईं। 1675 में उसने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया। कश्मीर में हिंदू पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाने लगा। जो इस्लाम स्वीकार नहीं करते थे, उन्हें भयानक यातनाएं दी जाती थीं।

कश्मीरी पंडितों के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। वे अपनी आस्था बचाने के लिए सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर, के पास मदद मांगने पहुंचे। पंडितों का एक समूह, जिसका नेतृत्व पंडित कृपाराम कर रहे थे, गुरु तेग बहादुर के पास आनंदपुर साहिब पहुंचा। उन्होंने गुरु जी से अपनी व्यथा सुनाई और कहा, “गुरु जी, औरंगजेब हमें जबरन मुसलमान बना रहा है। हमारी संस्कृति और धर्म खतरे में है। हमें बचाइए।”

गुरु तेग बहादुर का संकल्प: धर्म की रक्षा का प्रण

गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की बात सुनी। उस समय उनके सबसे बड़े पुत्र, गोविंद राय (जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह बने), भी वहां मौजूद थे। गुरु जी ने अपने पुत्र से कहा, “धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देना होगा। यह समय हिंदू धर्म को बचाने का है।” नन्हे गोविंद राय ने पूछा, “पिता जी, यह बलिदान कौन देगा?” गुरु तेग बहादुर ने जवाब दिया, “इसके लिए मुझे ही जाना होगा।”

गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को आश्वासन दिया कि वे उनकी रक्षा करेंगे। उन्होंने औरंगजेब को संदेश भेजा कि अगर वह उन्हें (गुरु तेग बहादुर को) इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर कर ले, तो सारे कश्मीरी पंडित भी इस्लाम कबूल कर लेंगे। लेकिन अगर गुरु तेग बहादुर अपने धर्म पर अडिग रहे, तो पंडितों को छोड़ दिया जाए। यह संदेश औरंगजेब के लिए एक चुनौती थी। उसने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली बुलाया।

औरंगजेब के सामने गुरु जी की अडिगता

1675 में गुरु तेग बहादुर अपने कुछ शिष्यों के साथ दिल्ली पहुंचे। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए कहा, लेकिन गुरु जी ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ूंगा। हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। तुम्हारा जबरन धर्म परिवर्तन अन्याय है।” औरंगजेब क्रोधित हो गया। उसने गुरु जी को तरह-तरह की यातनाएं दीं। उनके शिष्यों—भाई मतिदास, भाई सतिदास, और भाई दयाला—को भी उनके सामने क्रूरता से मार डाला गया।

भाई मतिदास को आरे से चीर दिया गया, भाई सतिदास को उबलते तेल में डालकर मारा गया और भाई दयाला को जिंदा जला दिया गया। लेकिन गुरु तेग बहादुर ने हिम्मत नहीं हारी। वे हर यातना को शांति और धैर्य के साथ सहते रहे। उनकी अडिगता देखकर औरंगजेब हैरान था। उसने आखिरी बार गुरु जी से कहा, “इस्लाम कबूल कर लो, वरना मृत्यु तुम्हारा इंतजार कर रही है।” गुरु जी ने जवाब दिया, “मेरा सिर दे दूंगा, लेकिन धर्म नहीं छोड़ूंगा।”

गुरु तेग बहादुर का बलिदान: हिंदू धर्म की रक्षा

24 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से शहीद करने का आदेश दिया। गुरु जी का सिर काट दिया गया। यह घटना इतिहास में एक अमर बलिदान के रूप में दर्ज हो गई। गुरु तेग बहादुर का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके बलिदान के बाद औरंगजेब ने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कम कर दिए। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए गुरु जी ने जो धर्म युद्ध लड़ा, वह हर हिंदू के लिए गर्व की बात है।

गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद उनके पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह, ने सिख समुदाय को और मजबूत किया। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और हिंदुओं की रक्षा के लिए सिखों को योद्धा बनाया। गुरु तेग बहादुर का बलिदान सिख और हिंदू समुदाय के बीच एकता का प्रतीक बन गया।

गुरु तेग बहादुर की शिक्षाएं और विरासत

गुरु तेग बहादुर न केवल एक धर्म रक्षक थे, बल्कि एक महान संत और कवि भी थे। उनकी रचनाएं सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब, में शामिल हैं। उनकी शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि हमें अपने धर्म पर गर्व करना चाहिए और अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए। गुरु जी ने अपने जीवन में हमेशा शांति, प्रेम, और भक्ति का संदेश दिया। लेकिन जब बात धर्म की रक्षा की आई, तो उन्होंने बलिदान देना भी स्वीकार किया।

आज दिल्ली के चांदनी चौक में गुरुद्वारा शीश गंज साहिब उस जगह पर बना है, जहां गुरु तेग बहादुर शहीद हुए थे। यह गुरुद्वारा उनकी शहादत का प्रतीक है और हर साल लाखों लोग यहां उनके बलिदान को याद करने आते हैं।

गुरु तेग बहादुर से प्रेरणा

आज 30 मई 2025 को, जब हम गुरु तेग बहादुर की इस गाथा को याद करते हैं, तो हमें उनके बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए। गुरु जी ने हमें सिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए हमें हर मुश्किल का सामना करना चाहिए। उनका बलिदान हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए जो किया, वह सिख और हिंदू समुदाय के बीच एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है।

आज के समय में, जब हम सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को लेकर कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, गुरु तेग बहादुर की कहानी हमें एकजुट होने की प्रेरणा देती है। हमें उनकी तरह निस्वार्थ भाव से अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।

एक प्रेरणा, एक संदेश

गुरु तेग बहादुर की कहानी  सिर्फ एक इतिहास की घटना नहीं है; यह एक जज्बा है, जो हमें सिखाता है कि अपने धर्म और सच्चाई के लिए लड़ना कितना जरूरी है। कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए उन्होंने जो किया, वह हमें बताता है कि सच्चा धर्म वही है, जो दूसरों की रक्षा करता है, भले ही वह हमारा अपना धर्म न हो। उनकी यह गाथा मेरे दिल को छू गई, और मुझे यकीन है कि यह हर उस इंसान को प्रेरित करेगी, जो इसे पढ़ेगा। गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हमें हमेशा याद दिलाएगा कि इंसानियत और धर्म की रक्षा के लिए कितना बड़ा दिल चाहिए। उनके इस बलिदान को मेरा सलाम!

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