ज्ञानवापी का युद्ध @ काशी विश्वनाथ मंदिर: जब औरंगजेब की सेना से भिड़ गए नागा साधु, 40 हजार ने दी प्राणों की आहुति

नागा साधु, जिनके लिए वीरता और धर्म एक ही हैं, हिंदू संस्कृति के रक्षक रहे हैं। ये योद्धा संत न केवल अपनी आध्यात्मिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं, बल्कि इस्लामी आक्रमणकारियों और बाद में ब्रिटिश सेना के खिलाफ उनके साहसिक संघर्षों के लिए भी मशहूर हैं। इन्होंने हिंदुओं और उनके पवित्र मंदिरों की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। चाहे गोकुल की रक्षा में सरदार खान के नेतृत्व वाले अफगानों से लड़ाई हो या वाराणसी में औरंगजेब की सेना को धूल चटाना, नागा साधुओं की वीरता की कहानियां हर किसी को रोमांचित करती हैं। आइए, इनके अदम्य साहस की एक ऐसी ही कहानी को जानें, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी है।

नागा साधु: वीरता और आस्था का अनोखा संगम

नागा साधु मृत्यु से नहीं डरते। उनके हथियारों में त्रिशूल, तलवार और लाठी शामिल हैं, साथ ही वे शंख और संगीत वाद्ययंत्र भी रखते हैं। उनके शरीर पर राख पुती होती है, बाल उलझे हुए होते हैं, जो उन्हें अन्य साधुओं से अलग करते हैं। ये साधु न केवल आध्यात्मिक जीवन जीते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर योद्धा बनकर धर्म की रक्षा करते हैं। सदियों से इन्होंने हिंदू मंदिरों और समुदायों को आक्रमणकारियों से बचाया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर पर बार-बार हमले

काशी विश्वनाथ मंदिर, जो हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, पर कई बार आक्रमण हुए। सबसे पहले 1194 में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने, जो मोहम्मद गौरी की सेना का हिस्सा था, इसे तोड़ दिया। फिर 15वीं शताब्दी में सिकंदर लोधी की सेना ने जौनपुर के शर्की शासकों के साथ मिलकर काशी को लूटा। इसके बाद 1585 में राजा टोडरमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, जिससे इसकी खोई हुई शान फिर से लौटी। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन नहीं रही।

1664 की लड़ाई: औरंगजेब को नागा साधुओं ने हराया

1664 में औरंगजेब और उसकी मुगल सेना ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला बोला। उनका मकसद मंदिर को लूटना और तोड़ना था। लेकिन नागा साधुओं ने उनकी राह रोक दी। वाराणसी के महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने औरंगजेब की सेना को करारा जवाब दिया। जेम्स जी लोचटेफेल्ड की किताब “द इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदूइज्म, खंड 1” में इस लड़ाई का जिक्र है। इसे ‘ज्ञानवापी की लड़ाई’ कहा गया। इस किताब के मुताबिक, नागा साधुओं ने मुगल सेना को बुरी तरह हरा दिया। यह घटना महानिर्वाणी अखाड़े के पुराने दस्तावेजों में दर्ज है। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब इस युद्ध में मौजूद था या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन उसकी सेना को हार का सामना करना पड़ा, यह तय है।

1669 का हमला: मंदिर टूटा, लेकिन हौसला नहीं

1664 की हार से सबक लेते हुए औरंगजेब ने 1669 में फिर से वाराणसी पर हमला किया। इस बार उसने खुद सेना का नेतृत्व किया और मंदिर को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। मंदिर की जगह उसने ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी, जो आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। इस हमले में नागा साधुओं ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। काशी की पुरानी कहानियों और मौखिक वर्णनों के अनुसार, इस युद्ध में करीब 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

मंदिर का पुनर्जनन: अहिल्याबाई और अन्य शासकों का योगदान

मंदिर के टूटने के बाद भी काशी की आस्था कमजोर नहीं हुई। 1780 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया। अहिल्याबाई ने देश भर के कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया और उनके रख-रखाव की जिम्मेदारी भी ली। बाद में ग्वालियर के मराठा शासक दौलत राव सिंधिया की विधवा बैजा बाई ने मंदिर का विस्तार किया। नेपाल के राजा ने 7 फीट ऊंची नंदी की मूर्ति भेंट की। नागपुर के भोसले राजवंश ने चांदी दी, और मंदिर के मेहराब को चढ़ाने के लिए 1 टन सोना महाराजा रणजीत सिंह ने दिया। इस तरह कई हिंदू शासकों और व्यापारियों ने मंदिर को फिर से उसकी शान दिलाने में मदद की।

नागा साधुओं की अमर गाथा

नागा साधुओं की वीरता और बलिदान की कहानी हमें सिखाती है कि आस्था और साहस के आगे कोई ताकत नहीं टिक सकती। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की और औरंगजेब जैसे ताकतवर शासक को भी हरा दिया। भले ही 1669 में मंदिर टूट गया, लेकिन नागा साधुओं का हौसला कभी नहीं टूटा। आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है, और नागा साधुओं की गाथा हमें धर्म और वीरता का अनमोल सबक देती है।

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