हिंदू साम्राज्य का अमर पर्व: 6 जून को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक—हिंदू साम्राज्य दिवस की विजय गाथा!

आज 6 जून 2025 है, और यह दिन हर हिंदू के लिए गौरव और शौर्य का प्रतीक है। यह वह पावन दिन है, जब 1674 में रायगढ़ के विशाल प्रांगण में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। इस ऐतिहासिक घटना ने हिंदू साम्राज्य की नींव रखी और मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ हिंदुओं में एक नए जोश का संचार किया। हिंदू साम्राज्य दिवस के इस अमर पर्व पर, हम सनातन धर्म के उस महान योद्धा को नमन करते हैं, जिन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना कर हिंदू समाज को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटाया। यह दिन केवल शिवाजी महाराज की विजय का उत्सव नहीं है, बल्कि यह हिंदू राष्ट्र की अपने शत्रुओं पर विजय की गाथा है।

हिंदू साम्राज्य की नींव: एक ऐतिहासिक क्षण

6 जून 1674 को रायगढ़ में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, जिसमें राजे-रजवाड़ों की सहभागिता, जीजामाता और शम्भाजी की उपस्थिति ने इस क्षण को और गौरवमयी बनाया। यह वह समय था, जब हिंदू समाज सातवीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचारों से त्रस्त था। मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से शुरू हुआ यह सिलसिला औरंगजेब के समय तक चरम पर था। हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, महिलाओं का अपमान आम बात थी, और समाज में आत्मविश्वास की कमी साफ दिखाई देती थी।

काशी विश्वनाथ मंदिर को उखाड़ फेंकने से व्यथित गागा भट्ट महाराष्ट्र आए और शिवाजी महाराज से मिले। उन्होंने बताया कि मंदिरों की मूर्तियों से मस्जिदों की सीढ़ियाँ बन रही हैं। गागा भट्ट ने शिवाजी से आग्रह किया, “आप राजा बनकर समाज को प्रेरणा दें।” उत्तर से आए कवि भूषण, जिन्होंने औरंगजेब की नौकरी में रहते हुए भी उसकी कभी स्तुति नहीं की, ने भी शिवाजी महाराज के पराक्रम पर काव्य रचकर उन्हें प्रेरित किया। भूषण ने औरंगजेब से साफ कहा, “आप स्तुति लायक नहीं हैं।” इसके बाद वे दक्षिण आए और शिवाजी की वीरता को अपनी रचनाओं में अमर कर दिया।

हिंदू समाज में जागरण: शिवाजी महाराज की प्रेरणा

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक केवल एक राजा का ताज पहनना नहीं था, बल्कि यह हिंदू समाज के लिए एक नए युग का सूत्रपात था। इस घटना ने हिंदुओं में आत्मविश्वास जगाया और मुगलों के खिलाफ एकजुट होने की प्रेरणा दी। इसके बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदू शासकों ने शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर अपने राज्यों को मजबूत किया। राजस्थान में दुर्गादास राठौर ने राजाओं के बीच कलह मिटाकर एकजुटता लाई और राज्य स्थापित किया। छत्रसाल ने अपने पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर बुंदेला राजा बनकर मुगलों को चुनौती दी। असम में चक्रधर सिंह और कूच बिहार में सत्य सिंह जैसे शासकों ने भी शिवाजी की प्रेरणा से अपने क्षेत्रों में हिंदू शासन को मजबूत किया।

शिवाजी महाराज ने मिर्जा राजा जयसिंह को पत्र लिखकर कहा, “चाहो तो आप राजा बन जाओ, पर शत्रु की चाकरी मत करो।” यह उनकी दूरदर्शिता और हिंदू एकता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनकी कोई निजी महत्वाकांक्षा नहीं थी; उनका एकमात्र लक्ष्य हिंदवी स्वराज्य की स्थापना और हिंदू समाज का उत्थान था।

शिवाजी महाराज की वीरता: शौर्य की अमर कहानियाँ

शिवाजी महाराज का जीवन शौर्य और बलिदान की मिसाल है। उनके पराक्रमी साथियों ने हिंदवी स्वराज्य के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। तानाजी मालुसरे अपने बेटे रायबा की शादी का निमंत्रण देने आए थे, लेकिन सिंहगढ़ की लड़ाई को प्राथमिकता देते हुए युद्धभूमि में उतर गए और बलिदान हो गए। शिवाजी महाराज ने उनकी शहादत पर कहा, “गढ़ तो आया, पर सिंह गया।” बाजी प्रभू देशपांडे ने कहा, “जान भी चली जाए, पर लड़ता रहूँगा।” कोंडाना की लड़ाई में 20-22 रणबांकुरों ने हजारों की सेना से मुकाबला किया। बाजी प्रभू का शीश कट गया, लेकिन उनकी देह तब तक लड़ती रही। यह हिंदू शौर्य की अमर गाथा है।

शिवाजी महाराज ने स्वयं कई बार अपनी वीरता का परिचय दिया। अफजल खान को मारने के लिए उन्होंने शरणागति का नाटक रचा और उसे प्रतापगढ़ की पहाड़ियों में ले जाकर उसका वध किया। निजाम ने हिंदुओं का कत्लेआम किया और पुणे को जलाकर गधों से हल चलवाया। बाद में शिवाजी ने जीजामाता और कोंडदेव की उपस्थिति में पुणे में सोने का हल चलवाकर उस अपमान का बदला लिया। पुणे बाद में पेशवाओं की राजधानी बना। शाइस्ता खान को सबक सिखाने का प्रसंग भी हिंदू समाज में आत्मविश्वास जगाने वाला था। आगरा से शिवाजी का वापस आना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

हिंदवी स्वराज्य की स्थापना: एक क्रांतिकारी बदलाव

शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए। उस समय हर जागीरदार और मनसबदार अपनी-अपनी सेना रखते थे, लेकिन शिवाजी ने इसे बदल दिया। उन्होंने एक केंद्रीकृत सेना बनाई, जो सिंहासन और हिंदवी स्वराज्य के लिए समर्पित थी। समुद्र में विजय दुर्ग और सिंधु दुर्ग जैसे किले बनाए गए, जो उस समय की इंजीनियरिंग का चमत्कार थे। सामान्य लोगों को साथ लेकर उन्हें योद्धा बनाया गया और असंभव कार्यों को संभव किया गया।

जब चिपलूण में परशुराम मंदिर तोड़ा गया, तो शिवाजी ने वहाँ जाकर छोटी लड़ाई लड़ी। वहाँ के शिलालेख में उस प्रसंग और तारीख को अंकित किया गया। बीजापुर में क़ुतुब शाह से मिलने गए, जहाँ उनके योद्धा येशाजी कंक ने क़ुतुब शाह के पहलवान को परास्त कर हिंदू शौर्य का परचम लहराया।

हिंदू समाज में आत्मविश्वास की कमी: एक लंबा संघर्ष

शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से पहले हिंदू समाज सदियों से आक्रांताओं के अत्याचारों से जूझ रहा था। सातवीं सदी में मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से लेकर 17वीं सदी तक हिंदू समाज पददलित रहा। पराक्रम की कमी नहीं थी, लेकिन आत्मविश्वास की कमी ने समाज को कमजोर कर दिया था। महाराणा प्रताप जैसे वीरों ने भी अपने पराक्रम से मुगलों को चुनौती दी, लेकिन यह दाग धोने में सफल नहीं हुए। विजयनगर और देवगिरी साम्राज्य भी अल्पकाल में लुप्त हो गए।

राजा अलग-अलग रणनीतियों के साथ लड़ रहे थे, संत समाज को एकजुट करने और उनकी श्रद्धा बनाए रखने के लिए प्रयास कर रहे थे, लेकिन ये प्रयास बार-बार विफल हो रहे थे। कुछ तात्कालिक सफलताएँ मिलीं, लेकिन जो सफलता हिंदू समाज को चाहिए थी, वह कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक इन सभी प्रयासों की अंतिम और सबसे बड़ी सफलता थी। यह केवल शिवाजी महाराज की विजय नहीं थी, बल्कि हिंदू राष्ट्र की अपने शत्रुओं पर विजय थी।

नकली इतिहासकारों की साजिश: हिंदू गौरव को दबाने का प्रयास

यह विडंबना है कि इस पावन दिन को नकली और चाटुकार इतिहासकारों ने जनमानस में प्रसिद्ध नहीं होने दिया। वे अपनी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांतों को जीवित रखना चाहते थे और अपनी बिकी हुई कलम के लिए स्याही की भीख माँगते रहे। इन इतिहासकारों ने हिंदू गौरव की इस गाथा को दबाने की कोशिश की, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि हिंदू समाज अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले। लेकिन सत्य को ज्यादा देर तक दबाया नहीं जा सकता। आज हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में हम इस दिन को गर्व के साथ मनाते हैं और छत्रपति शिवाजी महाराज के बलिदान और शौर्य को याद करते हैं।

हिंदू समाज के लिए प्रेरणा: एकजुटता और आत्मविश्वास

शिवाजी महाराज का जीवन और उनका राज्याभिषेक आज के हिंदू समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा है। उन्होंने दिखाया कि शुद्ध मन से किया गया प्रयास कभी विफल नहीं होता। उनके पराक्रमी साथी—तानाजी, बाजी प्रभू, बालाजी निम्बालकर, कान्होजी आंग्रे—सभी ने हिंदवी स्वराज्य के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। बैदनी नायक ने औरंगजेब के यहाँ से खबरें निकालकर शिवाजी को दीं। सभी योद्धा तुकाराम के भजन गाते थे, जो उनकी आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक था।

शिवाजी महाराज ने हिंदू समाज को एकजुट करने और उसका आत्मविश्वास जगाने का काम किया। आज, जब हिंदू समाज फिर से कई चुनौतियों का सामना कर रहा है—चाहे वह धर्म परिवर्तन हो, सांस्कृतिक हमले हों, या मंदिरों पर अतिक्रमण—हमें शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर एकजुट होना होगा। हमें अपने गौरवशाली इतिहास को याद करना होगा और सनातन धर्म की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना होगा।

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