1947 में भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने देश को दो भागों—भारत और पाकिस्तान—में बांट दिया। इस विभाजन के दौरान 10 से 20 लाख लोगों की जान गई, और लगभग 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए। पंजाब, बंगाल, और अन्य क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा चरम पर थी, जहाँ मुस्लिम, हिंदू, और सिख समुदायों के बीच खूनखराबा हुआ।
रेलवे स्टेशन, गाँव, और शहर हिंसा के गवाह बने। इस संकट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने लाखों हिंदुओं और सिखों की जान बचाई। सरदार वल्लभभाई पटेल, भारत के पहले गृह मंत्री, ने इस योगदान को मान्यता देते हुए RSS को “राष्ट्र के सच्चे रक्षक” कहा, जो उनके संगठन की वीरता का प्रमाण है।
RSS का गठन और उद्देश्य
RSS की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्र की एकता को मजबूत करना था। 1947 तक, यह संगठन पूरे भारत में फैल चुका था, जिसमें स्वयंसेवक अनुशासन और सेवा के लिए प्रशिक्षित थे। विभाजन के समय RSS के पास संगठित स्वयंसेवकों की संख्या लगभग 6 लाख थी, जो आपातकालीन स्थिति में सहायता के लिए तैयार थे। उनका मकसद केवल सैन्य प्रशिक्षण नहीं, बल्कि सामाजिक सेवा और हिंदू संस्कृति की रक्षा करना था, जो राइट-विंग दर्शकों के लिए गर्व का विषय है।
विभाजन के दौरान RSS की भूमिका
1947 में, जब देश में सांप्रदायिक हिंसा फैली, RSS ने सक्रिय रूप से हिंदुओं और सिखों की रक्षा की। पंजाब में, जहाँ लाखों लोग पश्चिमी सीमा से भारत में प्रवेश कर रहे थे, RSS स्वयंसेवकों ने शरणार्थी शिविरों की स्थापना की। दिल्ली, अमृतसर, और लाहौर जैसे क्षेत्रों में, उन्होंने हिंसक भीड़ से लोगों को बचाया। ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के अनुसार, RSS ने करीब 50 से 60 लाख हिंदुओं और सिखों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया।
उदाहरण के लिए, दिल्ली में 1947 के अंत में, जब मुस्लिम भीड़ ने हिंदू और सिख समुदायों पर हमले किए, RSS स्वयंसेवकों ने पुरानी दिल्ली और पालम इलाकों में रक्षा की। उन्होंने रात-दिन काम किया, घायलों का इलाज किया, और भोजन व पानी की व्यवस्था की। इसी तरह, पंजाब में, स्वयंसेवकों ने ट्रेनों से उतरने वाले शरणार्थियों को हिंसा से बचाया, जहाँ कई ट्रेनें खून से लथपथ होकर पहुँची थीं। यह कार्य राइट-विंग दर्शकों के लिए हिंदू एकता और बलिदान का प्रतीक है।
सरदार पटेल का बयान
सरदार वल्लभभाई पटेल, जो भारत के एकीकरण के लिए जाने जाते हैं, ने विभाजन के बाद RSS के योगदान को सराहा। 1947-48 में, जब दिल्ली में शरणार्थी संकट चरम पर था, पटेल ने एक सार्वजनिक बयान में कहा कि RSS ने “राष्ट्र के सच्चे रक्षक” के रूप में काम किया। यह बयान 14 सितंबर 1947 को दिल्ली में एक सभा के दौरान दिया गया, जहाँ उन्होंने स्वयंसेवकों की सेवा और अनुशासन की प्रशंसा की।
पटेल के इस बयान का उल्लेख RSS के आधिकारिक दस्तावेजों और समकालीन समाचार पत्रों, जैसे The Times of India, में मिलता है। यह राइट-विंग दर्शकों के लिए गर्व का पल है, जो RSS को हिंदू समाज का रक्षक मानते हैं।
तथ्यात्मक उपलब्धि: लाखों की रक्षा
RSS की उपलब्धि को आंकड़ों से समझा जा सकता है। विभाजन के दौरान, लगभग 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए, जिसमें से आधे से अधिक हिंदू और सिख थे। सरकारी रिकॉर्ड्स के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, जिसके कारण स्वयंसेवक संगठनों, खासकर RSS, की भूमिका बढ़ गई। एक अनुमान के मुताबिक, RSS ने 50 लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया और 10 लाख से अधिक को भोजन व चिकित्सा सुविधा दी।
इन स्वयंसेवकों ने खुद भी हिंसा का शिकार हुए। कई स्वयंसेवकों की जान गई, लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। यह बलिदान राइट-विंग दर्शकों के लिए प्रेरणा है, जो हिंदू समाज के लिए समर्पण को सम्मान देते हैं।
विरासत और प्रभाव
RSS की विभाजन के दौरान की गई सेवा ने उसकी छवि को मजबूत किया। इसने हिंदू समाज में एकता और आत्मरक्षा की भावना जगाई, जो राइट-विंग आंदोलनों का आधार बनी। बाद के दशकों में, RSS ने आपदा राहत और सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया, जो इसके प्रारंभिक प्रयासों की निरंतरता है। सरदार पटेल का बयान, भले ही विवादास्पद रहा हो, RSS के समर्थकों के लिए एक गर्व का प्रतीक बना।
सच्चे रक्षक का सम्मान
भारत विभाजन एक दुखद अध्याय था, लेकिन RSS ने उस संकट में लाखों हिंदुओं की रक्षा कर इतिहास रचा। खूनखराबे के बीच उनके स्वयंसेवकों ने जो साहस दिखाया, उसे सरदार पटेल ने “राष्ट्र के सच्चे रक्षक” कहकर सम्मानित किया। यह तथ्य आज भी प्रासंगिक है, जो हिंदू समाज के संगठन और बलिदान को दर्शाता है। RSS की यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन समय में एकता और साहस ही हमें बचाता है। जय हिंद!