उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की कड़ी आलोचना की है, जिसमें राष्ट्रपति को राज्यपालों की ओर से विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर डेडलाइन के भीतर एक्शन लेने का निर्देश दिया गया है. इसे लेकर उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में कभी भी ऐसा लोकतंत्र नहीं रहा, जहां न्यायाधीश किसी लॉ मेकर, कार्यपालिका और यहां तक कि ‘सुपर संसद” के रूप में काम करें.
राष्ट्रपति का स्थान बहुत ऊंचा
राज्यसभा इंटर्न के ग्रुप को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है, हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने वहां मौजूद लोगों को राष्ट्रपति की शपथ की याद दिलाई और इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति का स्थान बहुत ऊंचा है, जबकि अन्य लोग सिर्फ संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं.
उन्होंने पूछा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर?’ संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका के पास एकमात्र अधिकार ‘अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना’ है और वह भी पांच या उससे ज्यादा जजों की बेंच की ओर से किया जाना चाहिए. अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए 24×7 उपलब्ध है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी कल्पना नहीं की थी, राष्ट्रपति से डेडलाइन के तहत फैसले लेने के लिए कहा जा रहा है और अगर ऐसा नहीं होता है, तो वह विधेयक कानून बन जाता है. उन्होंने न्यायिक अतिक्रमण के प्रति चेतावनी दी और कहा हमारे पास ऐसे जज हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की तरह काम करेंगे, सुपर संसद के रूप में काम करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है.
जस्टिस वर्मा केस की जांच पर सवाल
उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने का मामला उठाते हुए कहा कि नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना घटी, सात दिन तक किसी को इस बारे में पता नहीं चला, हमें खुद से सवाल पूछना चाहिए, क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? उन्होंने कहा कि किसी भी सामान्य स्थिति में यह घटना कानून के शासन को परिभाषित करती है. उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच तीन जजों की कमेटी कर रही है, लेकिन क्या यह कमेटी भारत के संविधान के अधीन है? क्या तीन जजों की इस कमेटी को संसद से पारित किसी कानून के तहत कोई मंजूरी मिली हुई है?
कमेटी ज्यादा से ज्यादा सिफ़ारिश कर सकती है. उन्होंने कहा कि हमारे पास जजों के लिए जिस तरह की व्यवस्था है, उसमें संसद ही एकमात्र कार्रवाई कर सकती है. एक महीना बीत चुका है, जांच के लिए तेजी, तत्परता और दोषी ठहराने वाले कंटेंट को सुरक्षित रखने की जरूरत होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे निर्देश
पिछले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जब राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के पास कोई विधेयक सुरक्षित रखते हैं, तो तीन महीने के भीतर एक्शन लिया जाना चाहिए. यह डेडलाइन उस फैसले का हिस्सा थी जिसमें तमिलनाडु के राज्यपाल की लंबे समय से निष्क्रियता और राज्य के विधेयकों को मंजूरी न देने को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राष्ट्रपति के पास ‘पॉकेट वीटो’ नहीं है और उन्हें विधानसभा से पारित विधेयकों को समय पर मंजूरी देनी चाहिए या खारिज करना चाहिए.
तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को विधानसभा से पारित हो चुके किसी भी बिल को मंजूर करना, रोकना या फिर राष्ट्रपति के पास भेजने का फैसला डेडलाइन के भीतर करना होगा. उन्होंने कहा कि अगर कोई विधेयक वापस विधानसभा से पारित होकर राज्यपाल के पास आता है तो उनके पास बिल को मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
इसके अलावा कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल आरएन रवि को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अगर राज्यपाल डेडलाइन का पालन नहीं करते हैं तो उनका फैसला न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ जाएगा. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल संविधान की शपथ लेता है और उन्हें किसी राजनीतिक दल की तरह काम नहीं करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए, न कि किसी बिल पर बैठकर अवरोधक की तरह काम करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से 10 विधेयकों को रोकने का फैसला खारिज कर दिया था.