आगरा में जाटों ने खोद दी थी अकबर की कब्र, जला दी थीं अस्थियां, कुछ नहीं कर पाया था औरंगजेब

आगरा, एक शहर जो मुगल साम्राज्य की भव्यता का प्रतीक रहा है, इतिहास के उन पन्नों का भी साक्षी है, जहां विद्रोह की आग ने मुगल शासकों की नींव हिला दी। सन् 1688 में, औरंगजेब के शासनकाल में, जाटों ने ऐसा विद्रोह किया, जिसने मुगल बादशाह को सकते में डाल दिया। इस विद्रोह के केंद्र में थे भरतपुर के जाट नेता राजाराम, जिन्होंने आगरा के सिकंदरा में स्थित मुगल बादशाह अकबर की कब्र को खोदकर उनकी अस्थियों को आग के हवाले कर दिया। यह घटना न केवल औरंगजेब के लिए एक बड़ा झटका थी, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे आम जनता ने मुगल शासकों की कट्टर नीतियों का प्रतिकार किया। आइए, इस ऐतिहासिक घटना को विस्तार से समझें।

औरंगजेब की नीतियां और जाटों का गुस्सा

औरंगजेब, मुगल साम्राज्य का छठा शासक, अपनी कट्टर धार्मिक नीतियों के लिए जाना जाता है। उसने 1658 में सत्ता संभाली और अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को नष्ट करवाया, जिसमें मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी शामिल था। उसकी नीतियों ने पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले जाट समुदाय को उत्तेजित कर दिया।

जाट, जो मुख्य रूप से किसान थे, औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। 1669 में, मथुरा के जाट नेता गोकुल जाट ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने मथुरा के मुगल फौजदार अब्दुन नबी को मार डाला और पांच महीने तक आगरा के करीब अपनी सत्ता कायम रखी। लेकिन औरंगजेब ने इस विद्रोह को कुचल दिया और गोकुल जाट को 1670 में आगरा के लाल किले के सामने टुकड़े-टुकड़े करवा दिया। इस क्रूरता ने जाट समुदाय में बदले की आग को और भड़का दिया।

राजाराम जाट का उदय और बदले की जंग

गोकुल जाट की हत्या के बाद, उनके अनुयायी राजाराम जाट ने विद्रोह की कमान संभाली। राजाराम, जो भरतपुर के सिनसिनी क्षेत्र से थे, एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे। उन्होंने जाट समुदाय को एकजुट किया और मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई।

राजाराम ने धौलपुर से आगरा तक के रास्तों पर मुगल कारवानों को लूटना शुरू कर दिया और व्यापारियों से राहदारी कर वसूलने लगे। इससे मुगल शासन की आर्थिक स्थिति डगमगा गई। औरंगजेब ने कई बार अपने सेनापतियों को जाटों को कुचलने के लिए भेजा, लेकिन राजाराम की रणनीति के आगे वे असफल रहे।

1688 में, राजाराम ने औरंगजेब को सबक सिखाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने मार्च के अंतिम सप्ताह में अपनी सेना के साथ आगरा के सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे पर हमला बोल दिया। अकबर, जो औरंगजेब के परदादा थे, का मकबरा उस समय की भव्यता का प्रतीक था। इसे अकबर के बेटे जहांगीर ने बनवाया था और इसमें सोने-चांदी के पतरे, कांसे के फाटक और बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे।

अकबर की कब्र पर हमला: मुगलों को करारा जवाब

राजाराम जाट ने सिकंदरा में अकबर के मकबरे को घेर लिया और जमकर लूटपाट की। उन्होंने मकबरे के कांसे के फाटकों को तोड़ डाला, दीवारों और छतों में जड़े रत्नों को उखाड़ लिया, और सोने-चांदी के बर्तनों को लूट लिया। जो सामान वे ले नहीं जा सके, उसे तोड़-फोड़कर नष्ट कर दिया।

लेकिन सबसे बड़ा प्रहार तब हुआ, जब राजाराम ने अकबर की कब्र को खोदकर उनकी अस्थियों को बाहर निकाला और आग लगा दी। इतिहासकारों के अनुसार, राजाराम ने हिंदू रीति-रिवाज से अकबर का श्राद्धकर्म भी किया, जो मुगल शासकों के लिए एक बड़ा अपमान था। इतालवी यात्री निकोलो मनूची ने अपनी किताब ‘स्टोरियो डु मोगोर’ में इस घटना का वर्णन करते हुए लिखा कि इस हमले से औरंगजेब बौखला गया था।

यह हमला औरंगजेब की राजधानी दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं था, फिर भी मुगल सेना इसे रोकने में नाकाम रही। आगरा किले में मौजूद सैनिक डर के मारे सिकंदरा नहीं पहुंचे। राजाराम का यह कदम न केवल गोकुल जाट की हत्या का बदला था, बल्कि औरंगजेब की कट्टर नीतियों के खिलाफ एक सशक्त संदेश भी था। इस घटना ने मुगल शासकों को यह एहसास दिला दिया कि उनकी सत्ता अजेय नहीं है।

औरंगजेब की असफलता और जाटों की जीत

औरंगजेब ने इस हमले के बाद अपने पौत्र बेदारबख्त को जाटों को दबाने के लिए भेजा, लेकिन वह भी राजाराम को रोकने में असफल रहा। राजाराम की सेना ने मुगलों पर लगातार हमले किए और उनके कई सैनिकों को मार डाला। इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘औरंगजेब’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि जाटों का यह विद्रोह औरंगजेब के शासनकाल में सबसे प्रभावी था। औरंगजेब, जो उस समय दक्षिण भारत में मराठों के खिलाफ युद्ध में व्यस्त था, इस विद्रोह को पूरी तरह कुचल नहीं पाया।

जाटों का यह विद्रोह और अकबर की कब्र पर हमला मुगल शासन के लिए एक बड़ा सबक था। इसने दिखाया कि आम जनता, विशेष रूप से किसान समुदाय, शासकों के अत्याचारों को चुपचाप सहन नहीं करेगा। राजाराम जाट की वीरता ने जाट समुदाय को एक नई पहचान दी और उनकी एकता को मजबूत किया।

आगरा में अकबर की कब्र पर जाटों का हमला भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो दर्शाती है कि कैसे एक समुदाय ने अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लिया। राजाराम जाट ने न केवल औरंगजेब को चुनौती दी, बल्कि मुगल शासकों की सत्ता को हिला दिया। यह घटना हमें सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है। आज भी सिकंदरा में अकबर का मकबरा उस विद्रोह की कहानी को बयान करता है, जब जाटों ने अपनी वीरता से मुगलों को सबक सिखाया और औरंगजेब को बेबस कर दिया। यह इतिहास हमें अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान की रक्षा करने की प्रेरणा देता है।

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