लोकमान्य तिलक: स्वराज का संकल्पधारी, हिंदू धर्म का रक्षक और गर्म दल क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत

23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में जन्मे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने राजनीति, धर्म, और क्रांति के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया। उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि इसलिए मिली, क्योंकि वे जनता के मन में बसे थे और उनके हृदय की आवाज को स्वर दिया।

तिलक ने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा देकर स्वतंत्रता की अलख जगाई, हिंदू धर्म को मजबूत करने के लिए सामाजिक सुधार किए, और गर्म दल के क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने। यह लेख उनकी जन्मजयंती पर उनके जीवन, विरासत, और एक प्रेरणादायक कहानी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

स्वराज का संकल्पधारी: राजनीति का अगुआ

तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश कर स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। वे मध्यमार्गी नेताओं से असहमत थे और गर्म दल के संस्थापकों में से एक बने, जो तत्काल स्वराज की मांग करता था। 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ उन्होंने “स्वदेशी आंदोलन” को गति दी और लोगों को आत्मनिर्भरता का पाठ सिखाया।

उनके “केसरी” और “मराठा” समाचार पत्रों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाई। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा आज भी स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए प्रेरणा है। उनकी राजनीतिक दृष्टि ने हिंदू राष्ट्रवाद को मजबूती दी और युवाओं को क्रांति की राह दिखाई।

हिंदू धर्म का रक्षक: सांस्कृतिक संरक्षक

तिलक ने हिंदू धर्म को आधुनिक संदर्भ में जीवंत करने का संकल्प लिया और इसके लिए गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव जैसे सार्वजनिक पर्वों की शुरुआत की। इन उत्सवों का उद्देश्य हिंदू जनमानस को एकजुट करना था, ताकि समाज में एकता और शक्ति का संचार हो सके। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सांस्कृतिक जागरण लाने की कोशिश की, जिससे जनता में स्वतंत्रता की भावना जागृत हुई। साथ ही, उन्होंने धर्म के प्रति गौरव और जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया, जिससे हिंदू अस्मिता को नई ऊँचाई मिली। इन उत्सवों ने हिंदू समाज को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक शक्तिशाली मंच प्रदान किया।

उनकी पुस्तक “गीता रहस्य” में उन्होंने भगवद्गीता के दर्शन को सरल भाषा में प्रस्तुत किया और इसे कर्मयोग और राष्ट्रधर्म के रूप में स्थापित किया। तिलक ने सिखाया कि धर्म केवल मंदिरों में पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कर्म और राष्ट्र सेवा का मार्ग है। उनका यह दृष्टिकोण हिंदू समाज को प्रेरित करता था कि वे अपने कर्तव्य को समझें और देश के लिए समर्पित हों। यही कारण है कि उन्हें हिंदू गौरव का रक्षक माना जाता है, जिन्होंने सनातन धर्म को नई दिशा दी।

गर्म दल क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत

तिलक गर्म दल के नेता थे, जो मध्यमार्गी नीतियों के खिलाफ था और सशस्त्र क्रांति को प्रोत्साहन देता था। उनके विचारों ने युवाओं, जैसे विनायक दामोदर सावरकर और भगत सिंह, को प्रभावित किया। 1908 में मांडले जेल में उनकी कैद ने भी क्रांतिकारियों के मन में आग लगा दी। तिलक ने शिक्षा और शारीरिक बल के महत्व पर जोर दिया, जिससे युवा सशक्त हुए। उनकी लेखनी और भाषणों ने गर्म दल को एकजुट किया और स्वतंत्रता संग्राम को तेज किया। वे क्रांतिकारियों के लिए एक जीवंत प्रेरणा बने, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए।

एक प्रेरणादायक कहानी: तिलक का साहसिक प्रदर्शन

एक बार 1897 में पूना में प्लेग फैलने के बाद ब्रिटिश सरकार ने कठोर नियम लागू किए, जिसमें लोगों के घरों की तलाशी ली जाती थी। तिलक ने इसे हिंदू समाज के अपमान के रूप में देखा और जनता को एकत्र कर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया। एक सभा में उन्होंने जोरदार भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा, “हमारा घर हमारी मर्यादा है, इसे कोई पराया छू नहीं सकता!” इस भाषण ने जनता में आक्रोश और एकता पैदा की।

ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन्हें घेर लिया और सुरक्षा की। यह घटना तिलक के साहस और हिंदू अस्मिता की रक्षा के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक बनी। वामपंथी इतिहासकारों ने इसे अशांति फैलाने का आरोप लगाया, लेकिन हिंदू समाज ने इसे स्वाभिमान की जीत माना। यह कहानी आज भी राइट-विंग कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

चुनौतियाँ और बलिदान

तिलक का जीवन संघर्षों से भरा था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल में डाला, जिसमें 1908-1914 की मांडले कैद सबसे कठिन थी। “सेडिशन केस” में उन्हें 6 साल की सजा हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी सेहत खराब हुई, फिर भी वे लिखते रहे और जनता को प्रेरित करते रहे। वामपंथी और सेक्युलर इतिहासकारों ने उनके धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान को कम करके आँका, लेकिन जनता ने उन्हें हमेशा हिंदू चेतना जागृत करने वाले के रूप में देखा। उनका बलिदान हिंदू समाज और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरणादायक है।

विरासत और प्रभाव

1 अगस्त 1920 को तिलक का निधन हो गया, लेकिन उनकी विचारधारा आज भी जीवित है। उनके स्वराज नारे ने 1947 की आजादी की नींव रखी। गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव आज भी हिंदू एकता का प्रतीक हैंऔर गर्म दल की भावना आजादी के बाद भी क्रांतिकारी आंदोलनों में दिखी। उनकी “गीता रहस्य” हिंदू राष्ट्रवाद के आधार बने। तिलक ने साबित किया कि धर्म और राजनीति साथ-साथ चल सकते हैं, जो सनातन अस्मिता को मजबूत करता है।

अमर क्रांतिकारी

लोकमान्य तिलक का जीवन स्वराज का संकल्प, हिंदू धर्म की रक्षा, और गर्म दल क्रांतिकारियों की प्रेरणा का मेल है। उन्होंने धर्म और संस्कृति के सार्वजनिक प्रदर्शन को बढ़ावा देकर हिंदू एकता को मजबूत किया और गीता के माध्यम से कर्मयोग का पाठ सिखाया। उनकी साहसिक कहानियाँ हिंदू स्वाभिमान का प्रतीक हैं। वामपंथी और सेक्युलर इतिहासकारों के विरोध के बावजूद उनकी हिंदू चेतना जागृत करने की भूमिका अमर है। उनकी जन्मजयंती हमें प्रेरणा देती है कि हम उनके सपनों को साकार करें और सनातन धर्म व स्वतंत्रता की रक्षा करें।

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