वीर मदनलाल ढींगरा जी, जिन्होंने ब्रिटेन की धरती पर घुसकर कर्जन वाईली और कोवासी जैसे अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतारा और फिर वीरगति प्राप्त की, भारत माता के उस जांबाज बेटे का नाम है जिन्होंने हिंदू शौर्य की नई मिसाल कायम की। 17 अगस्त, उनके बलिदान दिवस पर, हम उनके अदम्य साहस को सलाम करते हैं, जिन्होंने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए प्राण त्याग दिए। यह लेख उनके क्रांतिकारी जीवन, ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ी गई जंग, और हिंदू अस्मिता की रक्षा की प्रेरणा को समर्पित है।
प्रारंभिक जीवन: देशभक्ति का बीज
मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में एक संपन्न परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति का जज्बा था, जो किशोरावस्था में और प्रबल हो गया। पारिवारिक दबाव के बावजूद उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा को ठुकराया और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे जानते थे कि चरखा चलाने से आजादी नहीं मिलेगी, बल्कि मंगल पांडे, नाना साहब, तात्या टोपे, और झांसी की रानी जैसे वीरों के रास्ते पर चलकर ही गुलामी की जंजीरें टूटेंगी। यह संकल्प उनके जीवन का आधार बना।
लंदन में क्रांति का आगाज
1906 में मदनलाल ढींगरा लंदन गए, जहाँ उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। लेकिन उनकी असली शिक्षा क्रांति की थी। लंदन में वे भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। सावरकर की “अभिनव भारत” संस्था और श्यामजी का “इंडिया हाउस” उनके लिए क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बना। इन्हीं महानुभावों ने उनकी प्रचंड देशभक्ति को पहचाना और उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। यह समय था जब खुदीराम बोस और अन्य क्रांतिकारियों की फाँसी ने उनके मन में प्रतिशोध की आग जला दी।
कर्जन वाईली हत्याकांड: वीरता का चरम
1 जुलाई 1909 की शाम को “इंडियन नेशनल एसोसिएशन” के वार्षिकोत्सव में इतिहास रचा गया। भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वाईली अपनी पत्नी के साथ हाल में प्रवेश कर रहे थे। मदनलाल ढींगरा ने इस अंग्रेज अधिकारी पर पाँच गोलियाँ दागीं, जिसमें से चार सटीक निशाने पर लगीं। यह हमला केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक जोरदार चुनौती थी। इसके बाद उन्होंने खुद को गोली मारने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन्हें पकड़ लिया। यह घटना हिंदू शौर्य और देशभक्ति का अनुपम उदाहरण बनी।
मुकदमा और बलिदान
23 जुलाई 1909 को पुराने बेली कोर्ट में मदनलाल ढींगरा का मुकदमा चला। उन्होंने अदालत में गर्व से कहा, “मैंने अपने देश की आजादी के लिए यह कदम उठाया है, और मैं इसके लिए माफी नहीं माँगता।” अंग्रेजों ने उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई। 17 अगस्त 1909 को लंदन की पेंटनविले जेल में उन्हें फाँसी दे दी गई। हम इस वीरगति को याद करते हैं, जो हिंदू अस्मिता की जीती-जागती मिसाल है। उनकी मृत्यु ने देशभक्ति की एक नई लहर पैदा की।
प्रभाव और प्रेरणा
मदनलाल ढींगरा का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर साबित हुआ। उनकी हत्या ने अंग्रेजों को हिला दिया और भारतीयों में क्रांति की भावना को और मजबूत किया। सावरकर और अन्य क्रांतिकारियों ने उनके बलिदान को एक प्रेरणास्रोत के रूप में अपनाया। उनकी “इंकलाब जिंदाबाद” की पुकार ने भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। यह शौर्य आज भी हमें सिखाता है कि अपनी मातृभूमि के लिए हर कीमत चुकानी पड़ती है।
बलिदान की याद
17 अगस्त 2025 को, हम मदनलाल ढींगरा जी के बलिदान को याद करते हैं, जब देश आजादी के 78वें साल में है। हालांकि आज हम स्वतंत्र हैं, लेकिन हिंदू संस्कृति और अस्मिता पर खतरे बने हुए हैं। उनकी वीरता हमें प्रेरित करती है कि हम अपनी जड़ों को मजबूत करें और देश की एकता को बनाए रखें। यह दिन हमें सिखाता है कि वीरों के बलिदान को व्यर्थ नहीं होने देना हमारा कर्तव्य है।
अमर शहीद को नमन
हम वीर मदनलाल ढींगरा जी को नमन करते हैं, जिन्होंने ब्रिटेन में घुसकर अंग्रेजों को चुनौती दी और वीरगति प्राप्त की। उनका बलिदान हिंदू शौर्य और देशभक्ति का प्रतीक है। सुदर्शन परिवार इस अमर शहीद को सलाम करता है और संकल्प लेता है कि उनकी कुर्बानी को सम्मान देते हुए हम हिंदू गौरव को ऊँचा उठाएंगे।