30 मई: कारगिल में दुश्मनों को मारते हुए आगे बढ़े शहीद मेजर राजेश अधिकारी, तोलोलिंग फतह कर हुए बलिदान

आज 30 मई 2025 है। ठीक 26 साल पहले, इसी दिन कारगिल की बर्फीली चोटियों पर भारत माता के एक सच्चे सपूत ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। वह वीर थे शहीद मेजर राजेश सिंह अधिकारी, जिन्होंने 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन के साथ तोलोलिंग की चोटी पर दुश्मनों को धूल चटाई और भारत की झोली में यह महत्वपूर्ण जीत डालकर खुद भारत माता की गोद में सदा के लिए सो गए। मेजर राजेश की वीरता की कहानी हर भारतीय को गर्व से भर देती है। उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि यह देश त्याग और बलिदान के बल पर ही स्वतंत्र और अखंड रह पाया है। आइए, इस मौके पर मेजर राजेश की अमर गाथा को याद करें और उनके साहस को नमन करें।

मेजर राजेश सिंह अधिकारी: बचपन से देशभक्ति की मिसाल

मेजर राजेश सिंह अधिकारी का जन्म 25 दिसंबर 1970 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था। बचपन से ही उनके दिल में देशभक्ति की ज्वाला धधकती थी। फौजी की वर्दी उन्हें हमेशा आकर्षित करती थी। जब भी वे दुश्मनों की खबर सुनते, उनका खून खौल उठता था। वे सोचते थे कि काश उन्हें मौका मिले, जिससे वे देश के शत्रुओं को सबक सिखा सकें। इसी जज्बे ने उन्हें सेना में जाने के लिए प्रेरित किया। अपनी मेहनत और लगन से वे सेना में मेजर के पद तक पहुंचे और 2 मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री, 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन का हिस्सा बने।

कारगिल युद्ध और तोलोलिंग की चुनौती

1999 में कारगिल युद्ध की शुरुआत तब हुई, जब पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों ने कश्मीर की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया। उनका मकसद था कश्मीर वैली को लद्दाख से जोड़ने वाली सड़क को तबाह करना। यह सड़क भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद जरूरी थी। दुश्मनों ने तोलोलिंग जैसी चोटियों पर कब्जा कर लिया था, जो 15,000 फीट की ऊंचाई पर थी। वहां भारी बर्फ के बीच दुश्मन मजबूत स्थिति में था और लगातार गोलियां बरसा रहा था।

तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करना कारगिल युद्ध जीतने की कुंजी थी। यह मिशन बेहद कठिन था, लेकिन मेजर राजेश के लिए यह मुंहमांगी मुराद जैसा था। बचपन से ही वे दुश्मनों को तबाह करने का सपना देखते थे, और अब वह सपना पूरा होने जा रहा था। उन्होंने खुशी-खुशी इस चुनौती को स्वीकार किया और अपनी टुकड़ी के साथ तोलोलिंग की ओर बढ़ गए।

तोलोलिंग की चोटी पर मेजर राजेश का पराक्रम

मेजर राजेश सिंह अधिकारी अपनी टुकड़ी के साथ उस दुर्गम पहाड़ी पर रेंगते हुए चढ़े। रास्ता खतरनाक था—चारों तरफ बर्फ, ठंड, और दुश्मनों की गोलियां। लेकिन मेजर राजेश के हौसले बुलंद थे। रात भर की चढ़ाई के बाद वे ऐसी स्थिति में पहुंच गए, जहां से वे दुश्मनों पर हमला बोल सकते थे। दुश्मन को अंदाजा भी नहीं था कि उनकी मौत इतने करीब पहुंच चुकी है।

जब उनकी पूरी बटालियन ने तैयारी कर ली, तो मेजर राजेश ने दुश्मनों पर धावा बोल दिया। वे अपनी कंपनी की अगुआई कर रहे थे, तभी दुश्मनों ने दोनों तरफ से यूनिवर्सल मशीनगनों से भीषण हमला शुरू कर दिया। मेजर राजेश ने तुरंत अपनी रॉकेट लांचर टुकड़ी को दुश्मनों को उलझाए रखने का निर्देश दिया। नजदीक की लड़ाई में उन्होंने दुश्मन के दो सैनिकों को मार गिराया। फिर उन्होंने अपनी मीडियम मशीनगन टुकड़ी को एक चट्टान के पीछे मोर्चा लेने और दुश्मनों को उलझाए रखने का आदेश दिया।

मेजर राजेश अपनी हमलावर टीम के साथ एक-एक इंच आगे बढ़ते रहे। इस दौरान वे दुश्मन की गोलियों से गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी चोटों को नजरअंदाज करते हुए वे अपने सैनिकों को निर्देश देते रहे और रणभूमि छोड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने दुश्मन के दूसरे बंकर पर हमला बोला और वहां काबिज सैनिक को मार गिराया।

तोलोलिंग की जीत और मेजर राजेश की शहादत

मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने तोलोलिंग ऑपरेशन में दो बंकरों पर कब्जा किया, जो बाद में प्वाइंट 4590 को जीतने में मददगार साबित हुआ। लेकिन इस लड़ाई में वे गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। 30 मई 1999 को वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी शहादत ने तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहराने का रास्ता साफ किया। यह जीत कारगिल युद्ध में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
मेजर राजेश की जेब में उनकी पत्नी का एक खत था, जिसे वे पढ़ भी नहीं पाए थे। उनकी शहादत के बाद सेना ने वह खत उनके पार्थिव शरीर के साथ उनकी पत्नी को सौंपा। उस खत में उनकी पत्नी ने अपने प्यार और इंतजार की बातें लिखी थीं, लेकिन मेजर राजेश उस इंतजार को पूरा नहीं कर सके।

महावीर चक्र और मेजर राजेश की विरासत

मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं को कायम रखते हुए दुश्मन की उपस्थिति में असाधारण वीरता और उत्कृष्ट नेतृत्व का प्रदर्शन किया। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनकी शहादत और देशभक्ति का प्रतीक है।

मेजर राजेश उन महान आत्माओं में से एक थे, जिन्हें न तो भारत की आजादी और अखंडता की ठेकेदारी लेनी थी, और न ही इसका ढोल पीटकर संसद में सीट चाहिए थी। वे बस देश की रक्षा करने आए थे, और उसे करके उस धाम को चले गए, जिसे पाने के लिए कभी ऋषि-मुनि कठोर तप किया करते थे। उनकी शहादत हमें गर्व करना सिखाती है कि हमारी मिट्टी में जन्मे ऐसे वीरों के बलिदान के कारण ही यह देश स्वतंत्र और अखंड रह पाया है।

मेजर राजेश की प्रेरणा

आज मेजर राजेश सिंह अधिकारी की शहादत को 26 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन उनकी वीरता की गूंज आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि देश की रक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। मेजर राजेश की शहादत हमें प्रेरणा देती है कि हमें भी अपने देश के लिए कुछ करना चाहिए। उनकी यह अमर गाथा हमें हमेशा याद दिलाएगी कि भारत की एकता और अखंडता के लिए कितने बलिदान दिए गए हैं।

मेजर राजेश अमर रहें!

मेजर राजेश सिंह अधिकारी कारगिल युद्ध के उन अनगिनत वीरों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की रक्षा की। तोलोलिंग की चोटी पर उनकी वीरता और बलिदान ने भारत की जीत की नींव रखी। उनकी जेब में रखा पत्नी का खत हमें उनके व्यक्तिगत जीवन की उस अधूरी कहानी की याद दिलाता है, जो देश के लिए बलिदान हो गई। आज 30 मई को, हम मेजर राजेश सिंह अधिकारी को शत-शत नमन करते हैं। उनकी गौरव गाथा को सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेते हैं। मेजर राजेश सिंह अधिकारी अमर रहें! जय हिंद की सेना!

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