मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है जहाँ सनातन धर्म की जड़ें गहरी हैं और जिहादी राजाओं ने नुकसान पहुँचाया। यहाँ की मिट्टी में योगेश्वर वासुदेव की लीला और गोपियों के प्रेम की गाथाएँ बसती हैं। लेकिन इस पवित्र धरती पर मुग़ल आक्रांताओं ने जिहादी क्रूरता का ऐसा कहर बरपाया कि हिंदू आस्था लहूलुहान हो गई। महमूद गजनवी से लेकर औरंगजेब तक, मथुरा के मंदिरों को नष्ट करने और हिंदू संस्कृति को कुचलने की साजिशें रची गईं। यह लेख उस कालखंड की गाथा है, जब कृष्ण जन्मभूमि जिहाद के निशाने पर थी और हिंदू शौर्य ने प्रतिरोध की अलख जगाई।
प्रारंभिक आक्रमण: महमूद गजनवी का विध्वंस
मथुरा पर पहला बड़ा हमला 1017 ईस्वी में महमूद गजनवी ने किया, जिसने हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का अभियान चलाया। इतिहासकारों के अनुसार, उसने मथुरा में एक भव्य मंदिर को ध्वस्त किया, जो श्रीकृष्ण की जन्मस्थली माना जाता था। उसने सोने और जवाहरात से सजे मूर्तियों को लूटा और मंदिर की संपत्ति को अपने खजाने में डाला। समकालीन लेखक मुहम्मद इब्न अब्दुल जब्बार उत्तबी ने लिखा कि मथुरा का वह मंदिर इतना शानदार था कि इसे देखकर हर कोई दंग रह गया, लेकिन गजनवी ने उसे आग के हवाले कर दिया। यह घटना हिंदू आस्था पर पहला बड़ा आघात थी, जिसने मथुरा की पवित्रता को कलंकित किया।
सिकंदर लोदी का प्रहार
15वीं सदी में सिकंदर लोदी ने मथुरा पर हमला बोला और हिंदू, जैन, बौद्ध मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया। उसने मथुरा के प्राचीन मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया, जिससे हिंदू समाज का धार्मिक केंद्र ध्वस्त हो गया। यह समय हिंदू प्रतिरोध के लिए भी था, लेकिन मुग़ल सत्ता के सामने स्थानीय राजाओं की ताकत कमजोर पड़ गई। लोदी के इस कृत्य ने मथुरा की आध्यात्मिक शक्ति को क्षति पहुँचाई, लेकिन हिंदू संतों और समाज ने अपनी आस्था को जीवित रखने का संकल्प लिया।
औरंगजेब का जिहाद: कृष्ण जन्मभूमि का विनाश
मुग़ल शासक औरंगजेब का नाम हिंदू इतिहास में जिहादी क्रूरता का प्रतीक है। 1669-70 में उसने मथुरा के केशवदेव मंदिर, जो कृष्ण जन्मभूमि का प्रतीक था, को ध्वस्त करने का आदेश दिया। राजा वीर सिंह बंडेला ने जहाँगीर के शासनकाल में इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, जो 33 लाख रुपये की लागत से बना था। लेकिन औरंगजेब ने इसे तोड़कर उसकी जगह शाही ईदगाह बनवाई। मंदिर की मूर्तियों को आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया गया, ताकि हिंदुओं की आस्था को रौंदा जा सके। यह घटना हिंदू समाज के लिए अपमानजनक थी, जिसने सनातन गौरव को गहरी चोट पहुँचाई।
औरंगजेब का यह कदम राजनीतिक और धार्मिक दोनों कारणों से प्रेरित था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जाट विद्रोह और मराठा नेता शिवाजी की मदद करने वाले मथुरा के ब्राह्मणों को दंड देने के लिए यह कार्रवाई की गई। लेकिन हिंदू दृष्टिकोण से यह जिहादी उन्माद का परिणाम था, जिसने मथुरा की पवित्रता को मिटाने की कोशिश की।
हिंदू प्रतिरोध: मराठों का पराक्रम
मुग़ल क्रूरता के खिलाफ हिंदू शौर्य ने भी जवाब दिया। 18वीं सदी में मराठाओं ने गोवर्धन के युद्ध में मुग़लों को हराया और मथुरा-आगरा क्षेत्र पर कब्जा किया। मराठा सेनापति महादजी शिंदे ने 1770 में कृष्ण जन्मभूमि को मुग़लों से मुक्त कराया, लेकिन ईदगाह को हटाकर मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य पूरा नहीं हो सका। यह हिंदू प्रतिरोध की एक बड़ी जीत थी, जिसने सनातन धर्म की रक्षा का संदेश दिया। मराठों की इस विजय ने हिंदू समाज में नई आशा जगी, जो मुग़ल जुल्म के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बनी।
ब्रिटिश काल और पुनर्निर्माण की शुरुआत
1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मथुरा की 13.37 एकड़ भूमि को नीलाम किया, जिसे बनारस के राजा पत्नीमल ने खरीदा। बाद में 1944 में जुगल किशोर बिरला ने इस भूमि को मंदिर निर्माण के लिए खरीदा और श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। 1953 में मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ, लेकिन शाही ईदगाह के अस्तित्व ने इस प्रयास को चुनौती दी। यह प्रयास हिंदू समाज की दृढ़ता का प्रतीक था, जो अपनी पवित्र धरती को वापस पाने के लिए अडिग रहा।
आधुनिक संदर्भ: जिहाद के खिलाफ संघर्ष
आज भी मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद जारी है। हिंदू संगठन दावा करते हैं कि ईदगाह मंदिर की जमीन पर बनी है, और इसे हटाकर मंदिर का विस्तार किया जाए। 2020 से इस मुद्दे पर कई मुकदमे दायर हुए हैं,और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सर्वेक्षण के आदेश दिए हैं। यह संघर्ष हिंदू आस्था की रक्षा और जिहादी अतीत से मुक्ति का प्रतीक है।