लोकसभा में चर्चा के बाद, राज्यसभा में भी आज वंदे मातरम् के 150 वर्षों को लेकर जोरदार बहस हुई। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐतिहासिक संदर्भों और तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व के निर्णयों पर तीखी टिप्पणी की, जिसके बाद सदन में काफी हंगामा देखने को मिला।
इससे पहले लोकसभा में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम् के इतिहास और उससे जुड़े विवादों का उल्लेख करते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए थे। पीएम मोदी ने कहा था कि जब मोहम्मद अली जिन्ना ने वंदे मातरम् का विरोध किया, तब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखकर जिन्ना की आपत्तियों को स्वीकार्य बताया था। पत्र में यह कहा गया था कि आनंद मठ की पृष्ठभूमि मुस्लिम समुदाय के लिए असहज करने वाली हो सकती है।
पीएम मोदी के अनुसार, कांग्रेस ने सामाजिक सद्भाव के नाम पर वंदे मातरम् में “समझौता” किया और इसे औपचारिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया।
अमित शाह ने क्या कहा?
राज्यसभा में बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर सीधा प्रहार किया। उनके अनुसार, वंदे मातरम् के साथ किया गया यह विभाजन केवल सांस्कृतिक या साहित्यिक नहीं था, बल्कि तुष्टीकरण की वह शुरुआत थी जिसने आगे चलकर देश के बंटवारे तक को प्रभावित किया।
उन्होंने कहा—
“हमारी समृद्धि, हमारी सुरक्षा, हमारा ज्ञान—सब हमारी मातृभूमि की ही कृपा है। बंकिम बाबू ने वंदे मातरम् के माध्यम से साहस, समृद्धि और विद्या—तीनों का अद्भुत संदेश दिया। लेकिन इसकी स्वर्ण जयंती के समय नेहरू जी ने इसे दो अंतरों तक सीमित कर दिया। वहीं से तुष्टीकरण की शुरुआत हुई। अगर यह विभाजन न होता, तो शायद देश का विभाजन भी न होता।”
अमित शाह के इस बयान पर विपक्ष की ओर से जोरदार आपत्ति जताई गई, जबकि सत्ता पक्ष के सांसदों ने तालियां बजाकर समर्थन जताया।
“वंदे मातरम् सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं”
अमित शाह ने चर्चा को राजनीतिक उद्देश्य से जोड़ने के विपक्षी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वंदे मातरम् किसी प्रदेश विशेष का गीत नहीं है, बल्कि राष्ट्र की आत्मा और उसके संघर्ष का प्रतीक है।
उन्होंने कहा—
“बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय बंगाल से थे, लेकिन वंदे मातरम् कभी भी सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं रहा। यह पूरे राष्ट्र का नाद है, और इस पर चर्चा आने वाली पीढ़ियों को नई प्रेरणा देगी।”
अमित शाह के अनुसार, इस विषय को आगामी बंगाल चुनावों से जोड़ना अनुचित है, क्योंकि बंकिम बाबू का सृजन भारतीय राष्ट्रवाद की धड़कन बन चुका है।
बहस क्यों महत्वपूर्ण है?
वंदे मातरम् पर संसद में हुई यह विस्तृत चर्चा केवल ऐतिहासिक संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक विमर्श का भी केंद्र बन गई है।
सत्ता पक्ष इस मुद्दे को सांस्कृतिक आत्मविश्वास का प्रतीक मान रहा है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक मोड़ देने का आरोप लगा रहा है।
लेकिन एक बात स्पष्ट है—
वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने ने पुराने प्रश्नों को फिर से सामने ला खड़ा किया है:
क्या राष्ट्रगीत के साथ समझौता हुआ?
क्या उस समय के राजनीतिक निर्णयों ने इतिहास की दिशा बदली?
और क्या यह विषय आज भी उतना ही भावनात्मक और प्रासंगिक है?
