भारत ने झेलम में छोड़ा पानी और पाकिस्तान में आ गई बाढ़, दहशत में आए लोग, लगी इमरजेंसी

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है. इस बीच भारत की ओर से शनिवार (26 अप्रैल,2025) को पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद के हट्टिन बाला इलाके में झेलम नदी में पानी छोड़ दिया गया. इसकी वजह से मुजफ्फराबाद प्रशासन ने वॉटर इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है. दरअसल, झेलम नदी में पानी छोड़ जाने की वजह से मुजफ्फराबाद में अचायक भयंकर बाढ़ आ गई.

जानकारी के मुताबिक उरी में अनंतनाग जिले से चकोठी में पानी घुसने से झेलम नदी में अचानक भयंकर बाढ़ आ गई, जिससे स्थानीय लोगों में डर और दहशत फैल गई. केंद्र सरकार उन तीन नदियों के पानी का अधिकतम उपयोग करने के तरीकों पर अध्ययन करने की योजना बना रही है, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान सिंधु जल संधि के तहत कर रहा था. यह प्रस्ताव शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में रखा गया, जिसमें 1960 की सिंधु जल संधि पर भविष्य की कार्रवाई के संबंध में चर्चा की गई.

विश्व बैंक की मध्यस्थता वाली जल संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों- सतलुज, ब्यास और रावी के पानी पर विशेष अधिकार दिए गए थे, जिसका औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) है. पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी बड़े पैमाने पर पाकिस्तान को आवंटित किया गया था, जिसका औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 135 एमएएफ है.

‘पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए’

जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने शुक्रवार को कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने की रणनीति पर काम कर रही है कि पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई निर्देश जारी किए हैं और उन पर अमल के लिए यह बैठक आयोजित की गई.

सूत्रों के मुताबिक सरकार अपने निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक योजना पर काम कर रही है. एक अधिकारी के अनुसार, मंत्रालय को तीन पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करने के तरीकों पर अध्ययन करने के लिए कहा गया है. विशेषज्ञों ने बुनियादी ढांचे की कमी के बारे में बात की है जो संधि को निलंबित करने के फैसले से मिलने वाले पानी का पूरी तरह से उपयोग करने की भारत की क्षमता को सीमित कर सकती है.

‘स्वाभाविक कारण से पानी पाकिस्तान की ओर बहता रहेगा’

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के हिमांशु ठक्कर ने कहा कि वास्तविक समस्या पश्चिमी नदियों से संबंधित है, जहां बुनियादी ढांचे की सीमाएं हमें पानी के प्रवाह को तत्काल रोकने से रोकती हैं. चिनाब घाटी में हमारी कई परियोजनाएं चल रही हैं, जिन्हें पूरा होने में पांच से सात साल लगेंगे. तब तक स्वाभाविक कारण से पानी पाकिस्तान की ओर बहता रहेगा. एक बार ये चालू हो जाएं, तो भारत के पास नियंत्रण तंत्र होगा, जो वर्तमान में मौजूद नहीं है.

पर्यावरण कार्यकर्ता और मंथन अध्ययन केंद्र के संस्थापक श्रीपद धर्माधिकारी ने कहा कि भारत पानी के बहाव को तेजी से मोड़ सकता है. फिलहाल हमारे पास पाकिस्तान में पानी के बहाव को रोकने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का अभाव है.

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