गोरखा नरेश पृथ्वी नारायण शाह नेपाल के इतिहास में एक अमर नाम हैं, जिन्होंने अखंड नेपाल की नींव रखी और हिंदू अस्मिता की रक्षा की। वे विधर्मियों—मुगलों और ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकतों—की साज़िशों को कुचलने वाले वीर योद्धा थे। 18वीं शताब्दी में अपने साहस और दूरदर्शिता से उन्होंने नेपाल को एक शक्तिशाली हिंदू राज्य बनाया। यह लेख पृथ्वी नारायण शाह की वीर गाथा, उनकी रणनीति, और आज नेपाल में वामपंथी शासन की बर्बादी को उजागर करता है, जो उनकी विरासत के विपरीत है।
गोरखा नरेश पृथ्वी नारायण शाह
पृथ्वी नारायण शाह का जन्म 1723 में गोरखा राज्य में हुआ था। वे शाह वंश के राजा थे और 1743 में गोरखा की गद्दी संभाली। एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार के रूप में, उन्होंने नेपाल के छोटे-छोटे राज्यों को एकजुट करने का सपना देखा। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण ने उन्हें एक मजबूत नेता बनाया, जो हिंदू परंपराओं और स्वतंत्रता के लिए समर्पित था। उनका जन्म हिंदू संस्कृति के बीच हुआ, और उन्होंने इसे अपने शासन का आधार बनाया। यह उनकी शुरुआत थी, जो बाद में अखंड नेपाल की नींव बनी।
अखंड नेपाल की स्थापना
पृथ्वी नारायण शाह ने 1744 से 1769 तक नेपाल के विभिन्न राज्यों—काठमांडू घाटी, पश्चिमी पहाड़ी राज्य, और तराई क्षेत्र—को जीतकर अखंड नेपाल की स्थापना की। उन्होंने काठमांडू 1768 में जीता, जो उनकी सबसे बड़ी विजय थी। उनकी रणनीति में कूटनीति और सैन्य शक्ति का मिश्रण था, जिससे उन्होंने छोटे राज्यों को एकजुट किया। यह एकता नेपाल को एक शक्तिशाली हिंदू राज्य बनाती थी, जो उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है। अखंड नेपाल उनकी सबसे बड़ी देन थी, जो आज भी सम्मानित है।
हिंदू अस्मिता का प्रहरी
पृथ्वी नारायण शाह ने हिंदू अस्मिता को अपने शासन का आधार बनाया। उन्होंने नेपाल को एक हिंदू राज्य घोषित किया, जहाँ हिंदू धर्म और संस्कृति को संरक्षण दिया गया। मंदिरों का निर्माण और धार्मिक परंपराओं को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता थी। उन्होंने भगवान पशुपतिनाथ और अन्य देवताओं की पूजा को प्रोत्साहित किया, जो हिंदू संस्कृति की नींव को मजबूत करता था। उनकी नीतियों ने नेपाल को एक हिंदू पहचान दी, जो उनकी अमर विरासत का हिस्सा है।
विधर्मियों की साज़िशों का सामना
पृथ्वी नारायण शाह ने मुगलों और ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकतों की साज़िशों का डटकर मुकाबला किया। मुगल साम्राज्य ने नेपाल के तराई क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश की, लेकिन शाह ने उन्हें रोक दिया। इसी तरह, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल पर दबाव बनाया, लेकिन उनकी सेना ने इसे नाकाम कर दिया। 1767 में तिब्बत के साथ युद्ध में भी उन्होंने अपनी शक्ति दिखाई। ये सभी संघर्ष हिंदू अस्मिता और नेपाल की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़े गए, जो उनकी वीरता का प्रमाण हैं।
मुगलों के खिलाफ संघर्ष
मुगल साम्राज्य, जो उस समय भारत पर हावी था, ने नेपाल के तराई क्षेत्र पर आक्रमण करने की योजना बनाई। पृथ्वी नारायण शाह ने अपनी छोटी लेकिन साहसी सेना के साथ मुगल सेना का मुकाबला किया। उन्होंने तराई की रणनीति से मुगलों को पीछे धकेला, जो उनकी सैन्य चतुराई का उदाहरण है। यह संघर्ष केवल जमीन की लड़ाई नहीं, बल्कि हिंदू अस्मिता की रक्षा का युद्ध था, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक लड़ा।
ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकतों का प्रतिरोध
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश की, लेकिन पृथ्वी नारायण शाह ने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने ब्रिटिश व्यापारिक हितों को ठुकराया और अपनी सीमाओं की रक्षा की। उनकी सेना ने पहाड़ी इलाकों का लाभ उठाकर ब्रिटिश सैनिकों को हराया। यह प्रतिरोध नेपाल की स्वतंत्रता और हिंदू पहचान को बनाए रखने का प्रतीक था, जो उनकी अमर विरासत को दर्शाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान
पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल में हिंदू संस्कृति को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार और अन्य मंदिरों के निर्माण को प्रोत्साहित किया। उनकी नीतियों ने हिंदू उत्सवों जैसे दशहरा और होली को बढ़ावा दिया, जो नेपाल की सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध करता था। उन्होंने स्थानीय परंपराओं को संरक्षित किया, जो हिंदू अस्मिता की रक्षा का हिस्सा था।
चुनौतियाँ और बलिदान
पृथ्वी नारायण शाह का जीवन चुनौतियों से भरा था। छोटे संसाधनों के बावजूद, उन्होंने मुगलों और ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनकी सेना ने कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में युद्ध किए, जिसमें कई योद्धाओं ने अपने प्राण न्योछावर किए। 1775 में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी दूरदर्शिता ने नेपाल को एकजुट रखा। यह बलिदान हिंदू अस्मिता और अखंड नेपाल की नींव का आधार बना।
नेपाल में वामपंथी शासन की बर्बादी
आज नेपाल में वामपंथी शासन ने पृथ्वी नारायण शाह की विरासत को कमजोर कर दिया है। हाल के महीनों में, खासकर सितंबर 2025 में, वामपंथी सरकार—जिसका नेतृत्व केपी शर्मा ओली जैसे नेताओं ने किया—ने देश को अस्थिरता में धकेल दिया। जनता के बड़े विरोध प्रदर्शनों ने सरकार को हिला दिया, जिसमें ओली को इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और नेताओं के घरों में तोड़फोड़ की, जिसमें 19 युवाओं की मौत और सैकड़ों घायल हुए। अर्थव्यवस्था डगमगा गई, और भ्रष्टाचार बढ़ा, जो वामपंथी नीतियों की विफलता को दर्शाता है। हिंदू अस्मिता और राष्ट्रीय एकता, जो शाह ने स्थापित की, आज खतरे में है।
वामपंथी अराजकता का प्रभाव
वामपंथी शासन ने नेपाल की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को नुकसान पहुँचाया। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और युवाओं पर अत्याचार ने जनाक्रोश को बढ़ाया। 17 साल में 14 बार सरकार बदलने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी, जो वामपंथी गठबंधन की कमजोरी को दिखाता है। पशुपतिनाथ जैसे मंदिरों की उपेक्षा और हिंदू उत्सवों पर नियंत्रण की कोशिश ने शाह की विरासत को ठेस पहुँचाई। यह बर्बादी पृथ्वी नारायण शाह के सपनों के विपरीत है।
आज की विरासत
आज पृथ्वी नारायण शाह को नेपाल का एक महान संस्थापक माना जाता है। लोग उन्हें हिंदू अस्मिता के प्रहरी और विधर्मियों के खिलाफ लड़ने वाले वीर के रूप में याद करते हैं। वामपंथी शासन की बर्बादी के बीच, उनकी नीतियाँ और एकता का सपना आज भी प्रेरणा देता है। नेपाल के लोग उनकी याद में उत्सव मनाते हैं और उनकी विरासत को पुनर्जनित करने की आशा रखते हैं।
गोरखा नरेश पृथ्वी नारायण शाह अखंड नेपाल के संस्थापक और हिंदू अस्मिता के अमर प्रहरी थे। उन्होंने मुगलों और ब्रिटिश की साज़िशों को कुचलकर नेपाल को हिंदू राज्य का गौरव दिया। हालाँकि, वामपंथी शासन ने उनकी विरासत को बर्बाद किया, लेकिन उनकी वीरता और बलिदान आज भी जीवित है। पृथ्वी नारायण शाह का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा।