पुण्यतिथि रानी अहिल्याबाई होल्कर- जिन्होंने विधर्मियों के तोड़े मंदिरों का किया पुनर्निर्माण और धर्मस्थलों की रक्षा की

13 अगस्त 2025 को, हम हिंदू धर्म की अमर शासिका रानी अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर उन्हें सलाम करते हैं, जिनका स्वर्गवास 13 अगस्त 1795 को हुआ था। वे मालवा की वह वीरांगना थीं, जिन्होंने विधर्मियों द्वारा तोड़े गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कर हिंदू गौरव को फिर से जागृत किया और धर्मस्थलों की रक्षा की।

उनके साहस और समर्पण ने हिंदू संस्कृति को मजबूत किया, जो आज भी हमारी शक्ति का आधार है। यह लेख उनकी वीरता, मंदिरों के पुनर्निर्माण, और धर्म की रक्षा की कहानी को समर्पित है, जो हर हिंदू देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रारंभिक जीवन: सादगी से शक्ति की ओर

भारत की प्राचीन परंपरा रही है नारी शक्ति को पूज्यनीया मानकर उसकी उपासना करने की। कुछ तथाकथित लोग नारी के सम्मान को कुचलने के लिए भले ही तमाम अदालतों के चक्कर लगाए, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उन तमाम पूज्यनीया नारियों में से एक हैं अहिल्याबाई होल्कर जी, जिनकी आज पुण्यतिथि है। रानी अहिल्या बाई होल्कर भारत की प्रमुख महिला शासिकाओं में से हैं, जिन्होंने अपना राज्य स्वयं संभाला।

अहिल्याबाई होल्कर मराठा रानी थीं, और उनकी प्रशासनिक क्षमता और राज्य को चलाने की योग्यता अद्भुत थी। रानी अहिल्या बाई का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छौंड़ी गाँव में पाटिल मनकोजी राव के घर 31 मई 1725 को हुआ। उनके पिता ने अपनी कन्या को शिक्षा दिलवाई। शिवभक्त अहिल्याबाई बचपन से ही अत्यंत शांत और संस्कारी थीं। उनका मृदुल और सौम्य व्यवहार उन्हें दूसरों से अलग करता था। इतिहासकारों के अनुसार, मल्हारराव होल्कर, जो एक मराठा सेनानायक थे और पेशवा बाजीराव की सेना में थे, एक बार पुणे जाते हुए छौंड़ी गाँव में रुके। वहाँ उन्होंने 8 वर्ष की अहिल्याबाई को देखा।

“होनहार बिरवान के होत चिकने पात” वाली बात यहाँ चरितार्थ हुई। नन्हीं अहिल्याबाई में मल्हारराव को वे खूबियाँ दिखीं जो एक राज्य की रानी में होनी चाहिए। उनके स्वभाव और चारित्रिक विशेषताओं को देखते हुए मल्हारराव ने अपने पुत्र खंडेराव के लिए अहिल्याबाई का हाथ माँग लिया। 1733 में अहिल्याबाई होल्कर, खंडेराव होल्कर की पत्नी, मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधू और इंदौर राज्य की रानी बन गईं।

जीवन के कठिन पल और शासन का आगाज

रानी अहिल्याबाई के पति खंडेराव की मृत्यु 1754 में हो गई, जब वे कुम्भेर युद्ध में लड़ रहे थे। उस समय अहिल्या बाई की आयु मात्र 29 वर्ष थी। रानी के रूप में अहिल्याबाई 1766 में मल्हारराव होल्कर की भी मृत्यु हो जाने पर राज्य की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ पड़ी। मेवाड़ महाराणाओं की भाँति उन्होंने भी स्वयं को महेश्वरी और इंदौर की शासिका नहीं माना।

उन्होंने अपना राज्य शंकर के चरणों में अर्पित कर स्वयं को शंकर और राज्य की सेविका मानते हुए प्रशासन संभाला। उनकी प्रत्येक राजाज्ञा और आदेश शंकर के नाम से हस्ताक्षरित रहते थे। उनका मानना था कि “ईश्वर ने मुझ पर जो उत्तरदायित्व रखा है, उसे मुझे निभाना है।” 1766 में ही उनके एकमात्र पुत्र मालेराव की मृत्यु हो जाने पर उन्होंने तुकोजीराव को अपना सेनापति बनाया। इस संकट के समय भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने राज्य को मजबूती से संभाला।

वीरांगना के रूप में साहस

महारानी अहिल्याबाई एक निपुण योद्धा थीं और अपने साहस के लिए प्रसिद्ध रहीं। वे दुश्मनों से सीधे युद्धभूमि में भिड़ंत लेती थीं और अपनी सेना का नेतृत्व करती थीं। घुड़सवारी में उनकी महारत और हाथी पर सवार होकर युद्ध में भाग लेने की क्षमता उन्हें अनूठी बनाती थी। उनका व्यक्तित्व, शासन क्षमता, और नेतृत्व शक्ति अप्रतिम थी।

वे उन भारतीय वीरांगनाओं में शामिल हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाया। जीवन में आए दुखों को सहते हुए भी उन्होंने अपनी प्रजा का पालन-पोषण पुत्र की तरह किया। इसी कारण जनता ने उन्हें देवी का दर्जा दिया और वे लोकमाता के नाम से जानी गईं। उनकी शासन संचालन की योग्यता और प्रशासनिक गुणों के कारण उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई का पूर्वगामी कहा जा सकता है, क्योंकि वे निपुण योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। रानी अहिल्या बाई विवाह के बाद ‘रानी’ कहलाईं, किंतु पहले वे एक साधारण परिवार की कन्या थीं।

धार्मिक कार्य और मंदिरों का पुनर्निर्माण

अहिल्याबाई होलकर धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं और उनके द्वारा धार्मिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए। उनकी धार्मिक निष्ठा का प्रमाण यह है कि उन्होंने भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों पर मंदिर और धर्मशालाएँ बनवाईं। इंदौर और महेश्वरी में अधिकतर मंदिर और धर्मशालाएँ उनके प्रयास से बनीं।

इसके अलावा, नासिक, गंगाघाट, सोमनाथ (गुजरात), और बैजनाथ जैसे स्थानों पर प्रसिद्ध शिवालयों का निर्माण भी उन्होंने करवाया। विशेष रूप से, विधर्मियों द्वारा नष्ट किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने काशी के विश्वनाथ मंदिर, गया के विशाल मंदिर, और उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, जो औरंगजेब जैसे शासकों ने तोड़े थे। यह कार्य हिंदू संस्कृति को पुनर्जीवित करने का प्रतीक बना।

धर्मस्थलों की रक्षा

रानी अहिल्याबाई ने मंदिरों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी। उन्होंने मंदिरों के चारों ओर मजबूत दीवारें बनवाई और सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया ताकि भविष्य में विधर्मी आक्रमणों से बचा जा सके। वे स्वयं मंदिरों का दौरा करती थीं और पुजारियों की सहायता करती थीं। मंदिरों की जमीन और संपत्ति की रक्षा के लिए उन्होंने कड़े नियम लागू किए। उनके शासनकाल में जारी सिक्कों पर शिवलिंग और नंदी का चित्रण उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाता था। यह सब उनकी धर्मस्थलों के प्रति अटूट समर्पण को प्रतिबिंबित करता है।

ऐतिहासिक प्रभाव: अमर विरासत

रानी अहिल्याबाई का महाप्रयाण 13 अगस्त 1795 को हुआ, किंतु उनकी विरासत आज भी जीवित है। उनके द्वारा निर्मित मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं के लिए आस्था के केंद्र बने हुए हैं। उनकी नीतियों ने मालवा को समृद्ध और शांतिपूर्ण क्षेत्र बनाया। उनकी प्रेरणा ने बाद की पीढ़ियों, जैसे रानी लक्ष्मीबाई, को प्रभावित किया। उनकी गाथाएँ आज भी गीतों और कथाओं में गूंजती हैं, जो हिंदू गौरव का प्रतीक हैं।

आधुनिक संदर्भ: प्रासंगिकता और प्रेरणा

13 अगस्त 2025 को, रानी अहिल्याबाई की पुण्यतिथि पर उनका साहस और समर्पण हमें प्रेरित करता है। आज जब हिंदू धर्मस्थलों पर खतरे मंडरा रहे हैं, उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए हर प्रयास अनिवार्य है। उनके पुनर्निर्माण कार्य हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि अतीत के घावों को भरकर नई शुरुआत संभव है। उनकी विरासत को संजोए रखना हमारा कर्तव्य है।

अमर शासिका की गाथा

13 अगस्त 2025 को, हम रानी अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हैं, जिन्होंने 1766-1795 के दौरान विधर्मियों के तोड़े मंदिरों का पुनर्निर्माण और धर्मस्थलों की रक्षा की। उनका जीवन हिंदू शौर्य और समर्पण का प्रतीक है। सुदर्शन परिवार उनके बलिदान और साहस को सलाम करता है और उनकी गौरवगाथा को सदा अमर रखने का संकल्प लेता है। रानी अहिल्याबाई का नाम भारत के इतिहास में हमेशा चमकेगा, जो हमें प्रेरित करता रहेगा कि धर्म और देश की रक्षा के लिए हर कदम अनमोल है।

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