योध्या आज एक ऐतिहासिक क्षण की दहलीज पर खड़ी है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के संपूर्ण निर्माण के बाद पहली बार मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजारोहण होने जा रहा है। सदियों की प्रतीक्षा के बाद मंदिर का वैभव अब धर्मध्वज के आरोहण के साथ पूर्णता को प्राप्त करेगा। राम मंदिर का शिखर जब भगवा रंग के विशाल ध्वज से सुशोभित होगा, तब यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं होगा, बल्कि आस्था, संस्कृति, परंपरा, और विजय का प्रतीकात्मक उद्घोष भी बनेगा।
अयोध्या के प्रमुख मार्गों से लेकर मंदिर प्रांगण तक भव्य सजावट की गई है। प्रकाश व्यवस्था ने पूरे शहर को उत्सव का स्वरूप दे दिया है। रात में मंदिर परिसर पर राम और सीता से जुड़े लेज़र शो ने वातावरण को अलौकिक बना दिया। श्रद्धालु यह अनुभव कर रहे हैं कि लंबे काल के संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में वह दिन आ गया है, जिसकी कामना करोड़ों भक्तों ने पीढ़ियों तक की थी।
प्रधानमंत्री की उपस्थिति और मुख्य समारोह
आज सुबह लगभग 10 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या पहुँचेंगे। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वे पहले सप्तमंदिर में दर्शन करेंगे, इसके बाद शेषावतार मंदिर जाएंगे और फिर रामलला के समक्ष पूजा-अर्चना करेंगे। दोपहर 12 बजे श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज फहराया जाएगा। प्रधानमंत्री की उपस्थिति के चलते सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा देश के विभिन्न भागों से प्रतिनिधियों और संतों को आमंत्रित किया गया है।
समारोह का पूरा स्वरूप इस बात को स्पष्ट करता है कि यह अवसर केवल किसी एक नगर का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र और विश्व के सनातन श्रद्धालुओं का है। धर्मध्वज का आरोहण उन सभी भावनाओं, संघर्षों और मान्यताओं को एक प्रतीकात्मक रूप देगा, जिन्हें अयोध्या इतिहास के लंबे कालखंड में धारण करती आई है।
ध्वजारोहण के लिए 44 मिनट का शुभ मुहूर्त क्यों महत्वपूर्ण
आज धर्मध्वजारोहण अभिजीत मुहूर्त में किया जाएगा। यह मुहूर्त आज सुबह 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा, कुल अवधि 44 मिनट।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अभिजीत मुहूर्त वह काल है, जब प्रकृति की आध्यात्मिक शक्ति संतुलित होती है और शुभता चरम पर रहती है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम का जन्म भी इसी अभिजीत मुहूर्त में हुआ था। इसलिए इसी मुहूर्त में धर्मध्वजारोहण को अत्यंत शुभ और सिद्ध फलदायी माना गया है। ज्योतिषीय मत के अनुसार यह कालारंभ विजय, धर्म और मर्यादा के प्रतीक कार्यों के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
इस प्रकार, राम मंदिर पर प्रथम बार ध्वज का आरोहण अभिजीत मुहूर्त में होना किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि सावधानीपूर्वक निर्धारित और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ चयन है।
25 नवंबर को ही ध्वजारोहण क्यों
अयोध्या के साधु-संतों और धार्मिक परंपराओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था। आज 25 नवंबर को उसी पंचमी तिथि का पुनरावर्तन हो रहा है। इसे विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है और इसे हिंदू पंचांग की सबसे शुभ तिथियों में से एक माना गया है।
विवाह पंचमी के दिन:
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मंगल और समृद्धि की ऊर्जा सर्वाधिक मानी जाती है
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शुभ संस्कारों का आयोजन श्रेष्ठ माना जाता है
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विष्णु और लक्ष्मी की कृपा का विशेष प्रभाव माना जाता है
इसलिए आज के लिए ध्वजारोहण का चयन विवाह पंचमी परंपरा और रामायण काल के दिव्य संदर्भों से गहरा संबंध रखता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे आयोजन केवल अनुष्ठान नहीं बल्कि परंपरा और काल के संगम का क्षण बन जाता है।
राम मंदिर पर चढ़ने वाले धर्मध्वज की विशेषताएँ और उसका धार्मिक प्रतीकवाद
राम मंदिर पर चढ़ने वाला ध्वज अपनी संरचना और प्रतीकों दोनों के कारण अत्यंत विशेष है। यह सामान्य ध्वज नहीं बल्कि सनातन संस्कृति की आध्यात्मिक चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाला ध्वज है।
ध्वज की विशेषताएँ यह हैं:
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रंग: केसरिया (भगवा)
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लंबाई: 22 फीट
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चौड़ाई: 11 फीट
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ध्वजदंड: 42 फीट ऊँचा
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स्थापना स्थल: 161 फीट ऊँचे मंदिर शिखर पर
ध्वज पर अंकित तीन चिन्ह इसे और विशिष्ट बनाते हैं:
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सूर्य
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ॐ
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कोविदार वृक्ष
सूर्य प्रकाश, ऊर्जा और सत्य का प्रतीक है। ॐ सृष्टि के मूल स्वर और परम सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। कोविदार वृक्ष का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है और इसे रघुवंश की परंपरा में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे आज के कचनार वृक्ष से मिलती-जुलती प्रजाति माना जाता है।
केसरिया रंग सनातन परंपरा में त्याग, बलिदान, वीरता, पराक्रम, समर्पण और धर्म के लिए सत्य के मार्ग पर अडिग रहने का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि धर्मध्वज केवल एक औपचारिक प्रतीक नहीं, बल्कि रामराज्य की मूल भावनाओं का प्रतिरूप है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से ध्वजारोहण का महत्व
राम मंदिर पर ध्वजारोहण तीन स्तरों पर महत्वपूर्ण है:
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धार्मिक स्तर
प्रभु श्रीराम की आराधना, मर्यादा पुरुषोत्तम के आदर्शों और सनातन मूल्य प्रणाली की पुनः प्रतिष्ठा। -
सांस्कृतिक स्तर
अयोध्या के गौरव और रघुवंश की ऐतिहासिक परंपरा का सम्मान। -
राष्ट्रीय स्तर
वह विरासत जिसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने युगों से संजो कर रखा है, उसका उत्सव और पुनर्मिलन।
ध्वज का फहराना केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि इसका अर्थ है कि सत्य, मर्यादा, करुणा, कर्तव्य, न्याय, and धर्म के आदर्श पुनः स्थापित हुए हैं। यह क्षण संघर्षों, प्रतीक्षा और सांस्कृतिक धैर्य के अंत का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
राम मंदिर ध्वजारोहण 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि इतिहास, परंपरा और श्रद्धा का पूर्ण संगम है। अभिजीत मुहूर्त की पवित्रता, विवाह पंचमी की ऐतिहासिक महत्ता, केसरिया ध्वज के गहन प्रतीक, और अयोध्या की भव्यता – ये सभी मिलकर उस क्षण को जन्म दे रहे हैं, जिसकी प्रतीक्षा करोड़ों लोगों ने लंबे समय से की थी।
जब राम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज लहराएगा, तब यह केवल मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज नहीं होगा, बल्कि यह विश्वास, सभ्यता, मानवीय मूल्यों और सांस्कृतिक गौरव का वह संदेश होगा जो आने वाली पीढ़ियों तक स्मरण रहेगा।
