मेवाड़ के महान गहलोत सम्राट राणा कुंभा 15वीं सदी के इतिहास में एक गौरवशाली नाम हैं, जो बप्पा रावल का वंशज थे। उन्होंने अपने शासनकाल (1433-1468) में हिंदू शौर्य को बुलंद किया। वे कुम्भलगढ़ किले की मजबूत दीवारों के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने जिहादी आक्रमणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राणा कुंभा ने न केवल सैन्य शक्ति दिखाई, बल्कि कला और संस्कृति को भी संरक्षित किया। यह लेख उनके जीवन, किले के निर्माण, और जिहादी हमलों से मेवाड़ की रक्षा के प्रयासों को बताता है, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
प्रारंभिक जीवन: राजवंश की नींव
बप्पा रावल के वंशज: राणा कुंभा की हिंदू शौर्य की अटूट परंपरा
राणा कुंभा का जन्म 1433 में मेवाड़ के शाही गहलोत परिवार में हुआ था, जो बप्पा रावल के वंश से जुड़ा था। बप्पा रावल, 8वीं सदी के मेवाड़ के संस्थापक, ने अरब आक्रमणकारियों को हराकर हिंदू धर्म की रक्षा की थी, और उनकी यह वीरता राणा कुंभा में आगे बढ़ी। उनके पिता, राणा मोकल, एक साहसी राजा थे, जिन्होंने उन्हें वीरता और शासन की शिक्षा दी। बचपन से ही कुंभा को युद्धकला और हिंदू धर्म की गहरी समझ दी गई, जो उनके भविष्य के लिए आधार बनी।
1433 में, जब उनके पिता की हत्या हुई, वे मात्र 13 साल की उम्र में राजा बने। उनके चाचा राणा रणमल ने शुरुआत में उनकी मदद की, लेकिन कुंभा ने जल्दी ही अपने दम पर शासन संभाला और मेवाड़ को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। बप्पा रावल की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, राणा कुंभा ने जिहादी आक्रमणों से मेवाड़ की रक्षा का संकल्प लिया, जो उनकी शौर्य की अटूट कहानी बन गई।
सैन्य शक्ति: जिहादी आक्रमणों का जवाब
राणा कुंभा का शासनकाल सैन्य पराक्रम से भरा रहा। 15वीं सदी में, मेवाड़ पर गुजरात के सुल्तान अहमद शाह और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी जैसे जिहादी आक्रांताओं ने हमले किए। 1442 में, महमूद खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, लेकिन कुंभा ने अपनी सेना के साथ उसका डटकर मुकाबला किया। चित्तौड़ के पास हुए युद्ध में उन्होंने सुल्तान को हराया और मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा की। इस जीत ने न केवल उनकी सैन्य शक्ति को दिखाया, बल्कि जिहादी आक्रमणों के खिलाफ हिंदू एकता का संदेश दिया।
कुम्भलगढ़ किला: रक्षा का किला
राणा कुंभा की सबसे बड़ी उपलब्धि कुम्भलगढ़ किले का निर्माण था, जो 15वीं सदी में शुरू हुआ। यह किला राजस्थान के अरावली पर्वतों में स्थित है और अपनी 36 किलोमीटर लंबी दीवारों के लिए प्रसिद्ध है, जो विश्व की सबसे बड़ी दीवारों में से एक है। कुंभा ने इस किले को जिहादी आक्रमणों से मेवाड़ की रक्षा के लिए बनवाया। किले में 360 से ज्यादा मंदिर और मजबूत बुर्ज बनाए गए, जो हिंदू संस्कृति और सुरक्षा का प्रतीक बने। यह किला इतना मजबूत था कि बाद में अकबर जैसे शासकों ने भी इसे जीतने में असफल रहे।
जिहादी हमलों का प्रतिरोध: साहस की मिसाल
राणा कुंभा ने अपने शासन के दौरान कई जिहादी हमलों का सामना किया। 1456-1457 में, महमूद खिलजी ने फिर से मेवाड़ पर हमला किया और चित्तौड़ तक पहुँच गया। लेकिन कुंभा ने अपनी सेना और कुम्भलगढ़ की रणनीति से उसे खदेड़ दिया। इस युद्ध में उन्होंने 70 से ज्यादा छोटी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ीं और कभी हार नहीं मानी। उनकी यह दृढ़ता न केवल मेवाड़, बल्कि पूरे हिंदू राज्यों के लिए प्रेरणा बनी। कुम्भलगढ़ की दीवारें जिहादी आक्रमणों की राह में एक अभेद्य बाधा साबित हुईं।
कला और संस्कृति: शांति का संरक्षक
राणा कुंभा केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि कला और संस्कृति के संरक्षक भी थे। उन्होंने कुम्भलगढ़ और चित्तौड़ में कई मंदिर और स्मारक बनवाए, जैसे कि रणकपुर जैन मंदिर। वे खुद एक विद्वान थे और संगीत व साहित्य में रुचि रखते थे। उन्होंने “रघुराज प्रबंध” और “सुधाकर” जैसी रचनाएँ लिखीं, जो हिंदू संस्कृति की समृद्धि को दर्शाती हैं। उनकी यह उपलब्धि दिखाती है कि वे युद्ध के साथ-साथ शांति और ज्ञान के भी पक्षधर थे।
ऐतिहासिक प्रभाव: दीर्घकालिक गौरव
राणा कुंभा की मृत्यु 1468 में हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। कुम्भलगढ़ किला आज भी विश्व धरोहर के रूप में खड़ा है और हिंदू रक्षा का प्रतीक बना हुआ है। उनकी सैन्य रणनीति ने बाद के राजपूत शासकों, जैसे महाराणा प्रताप, को प्रेरणा दी। उनकी नीतियों ने मेवाड़ को जिहादी आक्रमणों से बचाए रखा, जो हिंदू एकता की मिसाल बनी। उनकी याद आज भी राजस्थान के गीतों और कथाओं में सुनाई देती है।
आधुनिक संदर्भ: हिंदू विरासत की प्रासंगिकता
राणा कुंभा की वीरता और रक्षा कार्य हमें प्रेरणा देते हैं। आज जब हिंदू संस्कृति पर खतरे हैं, उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हर कदम जरूरी है। कुम्भलगढ़ की दीवारें आज भी हमें याद दिलाती हैं कि एकजुट होकर हम हर चुनौती का सामना कर सकते हैं। उनकी विरासत को जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है।
अमर शौर्य की गाथा
हम राणा कुंभा को नमन करते हैं, जिन्होंने 1433-1468 में गहलोत वंश की शान बढ़ाई और कुम्भलगढ़ की दीवारों से जिहादी हमलों को रोका। उनका जीवन हिंदू शौर्य और गौरव का प्रतीक है। सुदर्शन परिवार उनके बलिदान और साहस को सलाम करता है और उनकी गाथा को हमेशा याद रखने का संकल्प लेता है। राणा