हिंदू राष्ट्र का अर्थ, विश्व गुरु का कॉन्सेप्ट… संघ के सौ वर्ष पूरे होने पर मोहन भागवत ने बताया आगे का प्लान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक ऐतिहासिक संबोधन दिया, जो न केवल संघ की यात्रा का मूल्यांकन करता है, बल्कि भारत के भविष्य की दिशा भी निर्धारित करता है। इस कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू राष्ट्र के अर्थ, विश्व गुरु के कॉन्सेप्ट, और संघ की भावी योजनाओं को विस्तार से प्रस्तुत किया।

उनका संदेश स्पष्ट था—संघ का उद्देश्य केवल संगठन चलाना नहीं, बल्कि भारत को विश्व में अग्रणी स्थान दिलाना है। यह लेख उनके विचारों, आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका, और आगे की राह को गहराई से उजागर करता है, जो हर देशभक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

संघ की शताब्दी: एक ऐतिहासिक पल

मंगलवार को आयोजित इस भव्य कार्यक्रम में, जहाँ देश-विदेश से आए गणमान्य लोगों ने भाग लिया, मोहन भागवत ने संघ के सौ साल के सफर को याद किया। 1925 में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है, जिसकी शाखाएँ पूरे भारत में फैली हैं।

भागवत ने कहा कि यह शताब्दी केवल एक उपलब्धि का जश्न नहीं, बल्कि एक नए संकल्प की शुरुआत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ का मकसद भारत को उसकी प्राचीन महानता की ओर ले जाना है, जहाँ वह विश्व गुरु के रूप में उभरे। यह घोषणा न केवल संघ के स्वयंसेवकों, बल्कि पूरे हिंदू समाज के लिए एक आह्वान थी।

आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार को जन्मजात देशभक्त बताते हुए कहा कि उनके मन में बचपन से ही देश के लिए जीने और मरने का संकल्प था। हेडगेवार ने वंदे मातरम आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जो उस समय ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक शक्तिशाली आवाज थी। भागवत ने बताया कि नागपुर के विद्यालयों में जब भी इंस्पेक्टर निरीक्षण के लिए आते, छात्र वंदे मातरम का उद्घोष करते थे, जो एक साहसिक कदम था।

एक रोचक घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जब माफी माँगने का दबाव पड़ा, तो दो छात्रों ने इसे ठुकरा दिया। उनका तर्क था कि वंदे मातरम कहना हमारा अधिकार है, और हम इसे सपने में भी अस्वीकार नहीं कर सकते। इस साहस के कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय से पढ़ाई जारी रखी। यह घटना हिंदू समाज के उस स्वाभिमान को दर्शाती है, जो संघ की नींव में समाया हुआ है। भागवत ने जोर देकर कहा कि हेडगेवार का यह योगदान आजादी की लड़ाई में मील का पत्थर साबित हुआ।

हिंदू राष्ट्र का अर्थ: एक व्यापक दृष्टिकोण

संघ प्रमुख ने हिंदू राष्ट्र के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सत्ता से संबंधित नहीं है। उनका मानना है कि हिंदू राष्ट्र में पंथ, संप्रदाय, भाषा, या प्रजा में कोई भेद नहीं है, और न्याय सबके लिए समान है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब हम हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं, तो इसका मतलब किसी को छोड़ना या किसी का विरोध करना नहीं है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो समन्वय और एकता पर आधारित है।

भागवत ने एक उदाहरण देकर समझाया कि हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए व्यायाम करता है, और अगर मारपीट की स्थिति आती है, तो यह आत्मरक्षा के लिए काम आता है। लेकिन व्यायाम का मूल उद्देश्य किसी को पीटना नहीं, बल्कि स्वस्थ रहना है। इसी तरह, हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य समाज को संगठित और मजबूत करना है, न कि किसी के खिलाफ लड़ाई लड़ना। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग पहले मानते थे कि हिंदू धर्म खत्म हो रहा है और इसे छोड़ देना चाहिए, लेकिन संघ ने इस सोच को बदल दिया। उनका दावा है कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा स्वयंसेवकों द्वारा संचालित और स्वावलंबी है, जो परावलंबन को अस्वीकार करती है।

विश्व गुरु का कॉन्सेप्ट: भारत का मिशन

मोहन भागवत ने विश्व गुरु के कॉन्सेप्ट को विस्तार से समझाया और स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए कहा कि हर देश का एक मिशन होता है, जिसे पूरा करना उसका कर्तव्य है। भारत का योगदान विश्व में एक नई गति और दिशा प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि विश्व आज बहुत पास आ गया है, और ग्लोबल बातचीत का युग शुरू हो चुका है। इसके बावजूद, मानवता एक है, लेकिन उसकी विविधता—अलग-अलग रंग-रूप—दुनिया की सुंदरता को बढ़ाते हैं। हर रंग का अपना योगदान है, और भारत को इस विविधता में एकता स्थापित करनी है।

भागवत ने जोर देकर कहा कि किसी देश को बड़ा होना चाहिए, लेकिन यह अपने बड़प्पन के लिए नहीं, बल्कि विश्व के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का प्रायोजन भारत है, और उसकी सार्थकता भारत को विश्व गुरु बनने में निहित है। उनका मानना है कि यह समय आ गया है जब भारत को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। यह कॉन्सेप्ट न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी भारत को अग्रणी बनाना चाहता है।

आगे का प्लान: समाज की गुणात्मक उन्नति

संघ की भविष्य की योजना पर बात करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कोई भी परिवर्तन पूरे समाज के प्रयास से आता है। आज हम अपने देश को बड़ा करना चाहते हैं, लेकिन यह केवल नेताओं, नीतियों, पार्टियों, विचारों, संगठनों, या सत्ता पर निर्भर नहीं है। इन सबकी भूमिका सहायक है, लेकिन वास्तविक बदलाव समाज की गुणात्मक उन्नति से ही संभव है। उन्होंने कहा कि जो मुद्दे आज हल हो रहे हैं, उनकी पुनरावृत्ति की कोई गारंटी नहीं है। इसलिए समाज के कुछ दोषों को दूर करना जरूरी है, और यह जिम्मेदारी किसी को निभानी होगी।

भागवत ने जोर देकर कहा कि संगठित होना समाज की स्वाभाविक अवस्था है, और बिना संगठन के कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि संघ स्वयंसेवकों द्वारा संचालित है, जो खुद कार्यकर्ता तैयार करते हैं और शाखाओं के माध्यम से संगठन को आगे बढ़ाते हैं। यह स्वावलंबन की भावना संघ की ताकत है, जो इसे परावलंबी बनने से रोकती है। उनका प्लान स्पष्ट है—भारत को विश्व गुरु बनने के लिए समाज को मजबूत करना और हर नागरिक को इस मिशन में शामिल करना।

सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: एकता में विविधता

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत में पिछले 40,000 वर्षों से रहने वाले लोगों का डीएनए एक जैसा है, जो देश की एकता का आधार है। उन्होंने जोर दिया कि हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते; विविधता में ही एकता है, और यह विविधता एकता का ही परिणाम है। यह दृष्टिकोण हिंदू संस्कृति के समावेशी स्वभाव को दर्शाता है, जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं, और परंपराओं को अपनाता है।

उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि सभी को एक सूत्र में बांधना है। यह विचार आज के समय में, जब वैश्वीकरण और सांस्कृतिक टकराव बढ़ रहे हैं, विशेष रूप से प्रासंगिक है। भागवत का मानना है कि भारत को विश्व गुरु बनने के लिए अपनी इस समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाना होगा, जो मानवता को एक नई दिशा दे सके।

एक नया संकल्प

मोहन भागवत का यह संबोधन न केवल संघ के सौ साल का जश्न है, बल्कि भारत को विश्व गुरु बनाने का एक मजबूत संकल्प भी है। हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को उन्होंने समावेशी और संगठित समाज के रूप में प्रस्तुत किया, जो किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि सभी के लिए है। आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका और डॉक्टर हेडगेवार का योगदान इस यात्रा की नींव है। आगे का प्लान समाज की गुणात्मक उन्नति और स्वावलंबन पर केंद्रित है, जो भारत को उसकी प्राचीन महानता की ओर ले जाएगा। सुदर्शन परिवार इस संकल्प को सलाम करता है और भारत माता की जय का उद्घोष दोहराता है।

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